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Hydrogen Cars: हाइड्रोजन कारें कितनी वाकई 'ग्रीन'? नए शोध ने स्वच्छ ऊर्जा के दावे पर उठाए सवाल
ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अमर शर्मा
Updated Sat, 20 Dec 2025 09:28 PM IST
सार
हाइड्रोजन को अक्सर एक क्लीन फ्यूल के तौर पर पेश किया जाता है जो दुनिया को फॉसिल फ्यूल से दूर ले जाने में मदद कर सकता है। क्योंकि कई देश आने वाले समय में ऑटोमोबाइल सेक्टर में इसका इस्तेमाल करने का लक्ष्य बना रहे हैं।
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EU Commissioners travel to Hyderabad House onboard bus powered by hydrogen fuel cell technology
- फोटो : External Publicity and Public Diplomacy (XPD) Division, MEA
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विस्तार
हाइड्रोजन को लंबे समय से एक ऐसे स्वच्छ ईंधन के तौर पर पेश किया जाता रहा है, जो दुनिया को जीवाश्म ईंधनों से बाहर निकालने में मदद कर सकता है। खासतौर पर ऑटोमोबाइल सेक्टर में हाइड्रोजन आधारित गाड़ियों को भविष्य की बड़ी तकनीक माना जा रहा है। लेकिन अब एक नई अंतरराष्ट्रीय स्टडी ने इस धारणा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। और संकेत दिए हैं कि हाइड्रोजन उतना "बेहद साफ" ईंधन नहीं है, जितना अक्सर बताया जाता है।
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रिसर्च क्या कहती है
जर्नल नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, 1990 से 2020 के बीच बढ़े हाइड्रोजन उत्सर्जन ने वैश्विक तापमान को लगभग 0.02 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ाने में योगदान दिया है। यह आंकड़ा भले ही औद्योगिक युग से अब तक हुई लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस की कुल ग्लोबल वार्मिंग के मुकाबले छोटा लगे। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह हाइड्रोजन के जलवायु प्रभावों को नजरअंदाज न करने की चेतावनी देता है।
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जर्नल नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, 1990 से 2020 के बीच बढ़े हाइड्रोजन उत्सर्जन ने वैश्विक तापमान को लगभग 0.02 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ाने में योगदान दिया है। यह आंकड़ा भले ही औद्योगिक युग से अब तक हुई लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस की कुल ग्लोबल वार्मिंग के मुकाबले छोटा लगे। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह हाइड्रोजन के जलवायु प्रभावों को नजरअंदाज न करने की चेतावनी देता है।
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हाइड्रोजन मिशन
- फोटो : पीटीआई
पूरी तरह बेगुनाह नहीं है हाइड्रोजन
हाइड्रोजन सीधे तौर पर कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) या मीथेन की तरह गर्मी को ट्रैप नहीं करती है। लेकिन यह अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु को गर्म करने में भूमिका निभाता है। स्टडी बताती है कि हाइड्रोजन वातावरण में मौजूद उन रसायनों को प्रभावित करता है, जो मीथेन को तोड़ने का काम करते हैं। नतीजा यह होता है कि मीथेन, जो CO₂ से कहीं ज्यादा ताकतवर ग्रीनहाउस गैस है, ज्यादा समय तक वातावरण में बनी रहती है।
अध्ययन के प्रमुख लेखक और अमेरिका की ऑबर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जुताओ ओयांग के मुताबिक, ज्यादा हाइड्रोजन का मतलब है वातावरण में कम "डिटर्जेंट" जैसे रसायन। जिससे मीथेन लंबे समय तक टिकती है और जलवायु को ज्यादा समय तक गर्म करती रहती है। इसके अलावा, ये प्रक्रियाएं बादलों के बनने और ओजोन जैसी अन्य गैसों को भी प्रभावित कर सकती हैं, जो वार्मिंग को और बढ़ाती हैं।
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हाइड्रोजन सीधे तौर पर कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) या मीथेन की तरह गर्मी को ट्रैप नहीं करती है। लेकिन यह अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु को गर्म करने में भूमिका निभाता है। स्टडी बताती है कि हाइड्रोजन वातावरण में मौजूद उन रसायनों को प्रभावित करता है, जो मीथेन को तोड़ने का काम करते हैं। नतीजा यह होता है कि मीथेन, जो CO₂ से कहीं ज्यादा ताकतवर ग्रीनहाउस गैस है, ज्यादा समय तक वातावरण में बनी रहती है।
अध्ययन के प्रमुख लेखक और अमेरिका की ऑबर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जुताओ ओयांग के मुताबिक, ज्यादा हाइड्रोजन का मतलब है वातावरण में कम "डिटर्जेंट" जैसे रसायन। जिससे मीथेन लंबे समय तक टिकती है और जलवायु को ज्यादा समय तक गर्म करती रहती है। इसके अलावा, ये प्रक्रियाएं बादलों के बनने और ओजोन जैसी अन्य गैसों को भी प्रभावित कर सकती हैं, जो वार्मिंग को और बढ़ाती हैं।
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भारत के लिए इसका क्या मतलब है
भारत ने अपनी जलवायु रणनीति में हाइड्रोजन पर बड़ा दांव लगाया है। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत सरकार का लक्ष्य स्टील, उर्वरक और भारी परिवहन जैसे क्षेत्रों में उत्सर्जन कम करना है। लेकिन हकीकत यह है कि आज इस्तेमाल होने वाला ज्यादातर हाइड्रोजन कोयले या प्राकृतिक गैस से बनता है। जिसकी प्रक्रिया में भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है।
ग्रीन हाइड्रोजन, जिसे नवीकरणीय ऊर्जा से इलेक्ट्रोलिसिस के जरिए बनाया जाता है, अभी भी महंगा है और बड़े पैमाने पर लागू करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। खासकर भारत जैसे देश के लिए।
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भारत ने अपनी जलवायु रणनीति में हाइड्रोजन पर बड़ा दांव लगाया है। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत सरकार का लक्ष्य स्टील, उर्वरक और भारी परिवहन जैसे क्षेत्रों में उत्सर्जन कम करना है। लेकिन हकीकत यह है कि आज इस्तेमाल होने वाला ज्यादातर हाइड्रोजन कोयले या प्राकृतिक गैस से बनता है। जिसकी प्रक्रिया में भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है।
ग्रीन हाइड्रोजन, जिसे नवीकरणीय ऊर्जा से इलेक्ट्रोलिसिस के जरिए बनाया जाता है, अभी भी महंगा है और बड़े पैमाने पर लागू करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। खासकर भारत जैसे देश के लिए।
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हाइड्रोजन कार
- फोटो : AI
चेतावनी, विरोध नहीं
यह अध्ययन हाइड्रोजन को पूरी तरह खारिज नहीं करता, बल्कि सावधानी बरतने की सलाह देता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जैसे-जैसे भारत और अन्य देश हाइड्रोजन के इस्तेमाल को बढ़ाएंगे। वैसे-वैसे इसके रिसाव को रोकना और इसके अप्रत्यक्ष जलवायु प्रभावों को समझना बेहद जरूरी होगा। वरना यह ईंधन जलवायु परिवर्तन से लड़ने के बजाय नुकसान भी पहुंचा सकता है।
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मानव गतिविधियां और बढ़ता उत्सर्जन
यह शोध ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट से जुड़े अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने किया है। इसके मुताबिक, 1990 से 2020 के बीच हाइड्रोजन का स्तर लगातार बढ़ा है और इसके पीछे मुख्य वजह मानवीय गतिविधियां हैं। जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल, पशुपालन और लैंडफिल से निकलने वाली मीथेन जब वातावरण में टूटती है, तो हाइड्रोजन पैदा करती है, जिससे एक तरह का फीडबैक लूप बन जाता है।
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यह शोध ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट से जुड़े अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने किया है। इसके मुताबिक, 1990 से 2020 के बीच हाइड्रोजन का स्तर लगातार बढ़ा है और इसके पीछे मुख्य वजह मानवीय गतिविधियां हैं। जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल, पशुपालन और लैंडफिल से निकलने वाली मीथेन जब वातावरण में टूटती है, तो हाइड्रोजन पैदा करती है, जिससे एक तरह का फीडबैक लूप बन जाता है।
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इसके अलावा, औद्योगिक गतिविधियों और हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्रों से होने वाले रिसाव भी एक अहम कारण बनकर उभरे हैं। स्टडी के वरिष्ठ लेखक और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक रॉब जैक्सन के अनुसार, अगर हमें एक सुरक्षित और टिकाऊ हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था बनानी है। तो वैश्विक हाइड्रोजन चक्र और उसके जलवायु से रिश्ते को गहराई से समझना होगा।
निष्कर्ष यही है कि हाइड्रोजन भविष्य का ईंधन जरूर हो सकता है। लेकिन बिना पूरी समझ और सख्त नियंत्रण के यह भी जलवायु संकट की एक नई कड़ी बन सकता है।
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