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EV PLI: भारत में बनी ईवी में सिर्फ 13% को ही पीएलआई लाभ, क्योंकि इस सेक्टर में चीनी आयात का दबदबा
ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अमर शर्मा
Updated Sat, 22 Nov 2025 06:48 PM IST
सार
भारत का इलेक्ट्रिक वाहन बाजार तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन एक नई रिपोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि देश की ईवी इंडस्ट्री अब भी बड़ी हद तक चीनी आयातित पुर्जों पर निर्भर है।
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Electric Car
- फोटो : Freepik
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विस्तार
भारत का इलेक्ट्रिक वाहन बाजार तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन एक नई रिपोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि देश की ईवी इंडस्ट्री अब भी बड़ी हद तक चीनी आयातित पुर्जों पर निर्भर है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बिकने वाली 46 इलेक्ट्रिक कारों में से केवल 6 मॉडल ही सरकार की प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) (पीएलाआई) योजना के मानकों को पूरा कर पाते हैं।
इसका मतलब है कि देश में बिकने वाले सिर्फ 13 प्रतिशत ईवी मॉडल ही लोकलाइजेशन के मापदंडों पर खरे उतरते हैं। जबकि 87 प्रतिशत मॉडल अधिकतर आयातित पुर्जों पर आधारित होने के कारण इस योजना के लिए अयोग्य हैं।
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इसका मतलब है कि देश में बिकने वाले सिर्फ 13 प्रतिशत ईवी मॉडल ही लोकलाइजेशन के मापदंडों पर खरे उतरते हैं। जबकि 87 प्रतिशत मॉडल अधिकतर आयातित पुर्जों पर आधारित होने के कारण इस योजना के लिए अयोग्य हैं।
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PLI नियम क्या है और ज्यादातर मॉडल क्यों फेल हो रहे हैं
पीएलाआई योजना के तहत वाहन निर्माताओं को कम से कम 50% घरेलू वैल्यू एडिशन हासिल करना होता है। जो कंपनियां बैटरी सेल आयात करती हैं, उनके लिए यह सीमा घटाकर 40 प्रतिशत कर दी गई है। इसके बावजूद JSW MG (जेएसडब्ल्यू एमजी), BMW (बीएमडब्ल्यू), Mercedes-Benz (मर्सिडीज-बेंज), Hyundai (ह्यूंदै), Kia (किआ), Citroen (सिट्रोएन), VinFast (विनफास्ट), Volvo (वोल्वो), Tesla (टेल्सा) और Audi (ऑडी) जैसी कंपनियों के अधिकांश ईवी मॉडल मानक पूरे नहीं कर पा रहे हैं। इसका मुख्य कारण है कि बैटरी सेल, सेमीकंडक्टर, रेयर-अर्थ मैग्नेट और इलेक्ट्रॉनिक मॉड्यूल जैसे अधिकांश महत्वपूर्ण कंपोनेंट अब भी चीन से आयात होते हैं।
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पीएलाआई योजना के तहत वाहन निर्माताओं को कम से कम 50% घरेलू वैल्यू एडिशन हासिल करना होता है। जो कंपनियां बैटरी सेल आयात करती हैं, उनके लिए यह सीमा घटाकर 40 प्रतिशत कर दी गई है। इसके बावजूद JSW MG (जेएसडब्ल्यू एमजी), BMW (बीएमडब्ल्यू), Mercedes-Benz (मर्सिडीज-बेंज), Hyundai (ह्यूंदै), Kia (किआ), Citroen (सिट्रोएन), VinFast (विनफास्ट), Volvo (वोल्वो), Tesla (टेल्सा) और Audi (ऑडी) जैसी कंपनियों के अधिकांश ईवी मॉडल मानक पूरे नहीं कर पा रहे हैं। इसका मुख्य कारण है कि बैटरी सेल, सेमीकंडक्टर, रेयर-अर्थ मैग्नेट और इलेक्ट्रॉनिक मॉड्यूल जैसे अधिकांश महत्वपूर्ण कंपोनेंट अब भी चीन से आयात होते हैं।
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कौन-से मॉडल PLI योजना में सफल हुए
सिर्फ कुछ भारतीय मॉडल ही सरकार के लोकलाइजेशन मानकों को पूरा कर पाए हैं। इनमें Tata Punch EV (टाटा पंच ईवी), Tata Nexon EV (टाटा नेक्सन ईवी), Tata Harrier EV (टाटा हैरियर ईवी), Tata Tiago EV (टाटा टियागो ईवी), Tata Tigor EV (टाटा टिगोर ईवी), Mahindra XEV9E (महिंद्रा एक्सईवी9ई) शामिल हैं।
चौंकाने वाली बात यह है कि आगामी लोकप्रिय मॉडल जैसे Tata Curvv EV (टाटा कर्व ईवी) और Mahindra BE6 (महिंद्रा बीई6) भी अभी तक योग्य नहीं हो पाए हैं। यह दिखाता है कि भारत के ईवी संक्रमण के शुरुआती दौर में लोकलाइजेशन हासिल करना कितना चुनौतीपूर्ण है।
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सिर्फ कुछ भारतीय मॉडल ही सरकार के लोकलाइजेशन मानकों को पूरा कर पाए हैं। इनमें Tata Punch EV (टाटा पंच ईवी), Tata Nexon EV (टाटा नेक्सन ईवी), Tata Harrier EV (टाटा हैरियर ईवी), Tata Tiago EV (टाटा टियागो ईवी), Tata Tigor EV (टाटा टिगोर ईवी), Mahindra XEV9E (महिंद्रा एक्सईवी9ई) शामिल हैं।
चौंकाने वाली बात यह है कि आगामी लोकप्रिय मॉडल जैसे Tata Curvv EV (टाटा कर्व ईवी) और Mahindra BE6 (महिंद्रा बीई6) भी अभी तक योग्य नहीं हो पाए हैं। यह दिखाता है कि भारत के ईवी संक्रमण के शुरुआती दौर में लोकलाइजेशन हासिल करना कितना चुनौतीपूर्ण है।
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क्यों मुश्किल है ईवी कंपोनेंट का लोकलाइजेशन
ऑटोमोबाइल कंपनियां तर्क देती हैं कि ईवी पुर्जों का घरेलू सप्लाई चेन अब भी बेहद कमजोर है। जबकि ICE (पेट्रोल-डीजल) वाहनों के लिए भारत में एक मजबूत इकोसिस्टम मौजूद है। अब तक ईवी बिक्री का स्तर ऐसा नहीं है कि सप्लायर बड़े पैमाने पर निवेश कर सकें।
एक यूरोपीय ऑटोमेकर के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि स्थानीय क्षमता की कमी के कारण कंपनियों के पास चीन और ताइवान से पुर्जे आयात करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
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ऑटोमोबाइल कंपनियां तर्क देती हैं कि ईवी पुर्जों का घरेलू सप्लाई चेन अब भी बेहद कमजोर है। जबकि ICE (पेट्रोल-डीजल) वाहनों के लिए भारत में एक मजबूत इकोसिस्टम मौजूद है। अब तक ईवी बिक्री का स्तर ऐसा नहीं है कि सप्लायर बड़े पैमाने पर निवेश कर सकें।
एक यूरोपीय ऑटोमेकर के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि स्थानीय क्षमता की कमी के कारण कंपनियों के पास चीन और ताइवान से पुर्जे आयात करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
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सबसे कठिन हिस्से जिन्हें भारत में बनाना मुश्किल
पीडब्ल्यूसी रिपोर्ट के अनुसार ईवी के कुल मूल्य का 50-60 प्रतिशत वही कंपोनेंट बनाते हैं जिनका लोकल उत्पादन सबसे कठिन है:
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पीडब्ल्यूसी रिपोर्ट के अनुसार ईवी के कुल मूल्य का 50-60 प्रतिशत वही कंपोनेंट बनाते हैं जिनका लोकल उत्पादन सबसे कठिन है:
- लिथियम-आयन बैटरी सेल
- रेयर-अर्थ मैग्नेट
- सेमीकंडक्टर चिप्स
- डीसी मोटर
- लैमिनेटेड स्टेटर
- पीसीबी (प्रिंटेड सर्किट बोर्ड)
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PLI योजना का उद्देश्य और चुनौती
पीएलआई योजना 2021 में भारत की ईवी निर्माण क्षमता बढ़ाने, सप्लाई चेन रिस्क कम करने और घरेलू उद्योग को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए शुरू की गई थी। सरकार का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में 50 GWh बैटरी निर्माण क्षमता स्थापित करना और 60 प्रतिशत वैल्यू एडिशन हासिल करना है। लेकिन इतनी बड़ी क्षमता के लिए भारी निवेश और अत्याधुनिक तकनीक की आवश्यकता है, यही वजह है कि प्रगति धीरे-धीरे हो रही है।
ग्लोबल संकटों ने बढ़ाई लोकलाइजेशन की जरूरत
महामारी के दौरान सप्लाई चेन में आए व्यवधान, भू-राजनीतिक तनाव और आयात निर्भरता के जोखिमों ने यह साफ कर दिया है कि भारत के लिए लोकलाइजेशन कितना जरूरी है। ईवी टेक्नोलॉजी अत्यधिक उन्नत है, और इसके कई महत्वपूर्ण पुर्जे भारत में नहीं बनते, यही बदलाव की सबसे बड़ी बाधा है।
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पीएलआई योजना 2021 में भारत की ईवी निर्माण क्षमता बढ़ाने, सप्लाई चेन रिस्क कम करने और घरेलू उद्योग को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए शुरू की गई थी। सरकार का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में 50 GWh बैटरी निर्माण क्षमता स्थापित करना और 60 प्रतिशत वैल्यू एडिशन हासिल करना है। लेकिन इतनी बड़ी क्षमता के लिए भारी निवेश और अत्याधुनिक तकनीक की आवश्यकता है, यही वजह है कि प्रगति धीरे-धीरे हो रही है।
ग्लोबल संकटों ने बढ़ाई लोकलाइजेशन की जरूरत
महामारी के दौरान सप्लाई चेन में आए व्यवधान, भू-राजनीतिक तनाव और आयात निर्भरता के जोखिमों ने यह साफ कर दिया है कि भारत के लिए लोकलाइजेशन कितना जरूरी है। ईवी टेक्नोलॉजी अत्यधिक उन्नत है, और इसके कई महत्वपूर्ण पुर्जे भारत में नहीं बनते, यही बदलाव की सबसे बड़ी बाधा है।
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EV बिक्री बढ़ रही है, लेकिन चुनौतियां भी बनी हुई हैं
भारत में ईवी की हिस्सेदारी इस वर्ष लगभग 5 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो पिछले साल की तुलना में लगभग दोगुनी है। लेकिन जब तक कंपनियाँ महत्वपूर्ण पुर्जों के लिए चीन पर निर्भर रहेंगी, तब तक:
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भारत में ईवी की हिस्सेदारी इस वर्ष लगभग 5 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो पिछले साल की तुलना में लगभग दोगुनी है। लेकिन जब तक कंपनियाँ महत्वपूर्ण पुर्जों के लिए चीन पर निर्भर रहेंगी, तब तक:
- ईवी की लागत ऊंची रहेगी
- सप्लाई चेन जोखिम बरकरार रहेंगे
- और PLI जैसे सरकारी प्रोत्साहनों का लाभ सीमित रहेगा
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