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Vehicles Price: दिल्ली में पेट्रोल और सीएनजी वाहन हो सकते हैं महंगे, सरकार ग्रीन सेस बढ़ाने पर कर रही है विचार
ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अमर शर्मा
Updated Mon, 29 Dec 2025 01:57 PM IST
सार
दिल्ली में पेट्रोल और CNG गाड़ियां जल्द ही महंगी हो सकती हैं। राज्य सरकार अपने मौजूदा ग्रीन सेस को डीजल गाड़ियों से आगे बढ़ाकर सभी ICE-पावर्ड वाहनों को कवर करने पर विचार कर रही है।
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Delhi Traffic
- फोटो : PTI
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विस्तार
दिल्ली में पेट्रोल और सीएनजी से चलने वाले वाहनों की कीमतें जल्द बढ़ सकती हैं। शहर की सरकार मौजूदा ग्रीन सेस को डीजल वाहनों से आगे बढ़ाकर सभी आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाहनों पर लागू करने पर विचार कर रही है। यह प्रस्ताव एक मसौदा इलेक्ट्रिक वाहन नीति का हिस्सा है, जिसका मकसद साफ-सुथरी और हरित मोबिलिटी की ओर बदलाव को बढ़ावा देना है।
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नए वाहनों पर 1-2 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क का प्रस्ताव
अधिकारियों के अनुसार, मसौदा नीति में नए पेट्रोल और सीएनजी वाहनों पर 1 से 2 प्रतिशत तक ग्रीन सेस लगाने का सुझाव दिया गया है। फिलहाल डीजल कारों पर 1 प्रतिशत सेस लगता है, जिसे बढ़ाकर 2 प्रतिशत किया जा सकता है। अगर यह प्रस्ताव लागू होता है, तो पारंपरिक वाहनों की ऑन-रोड कीमत सीधे तौर पर बढ़ेगी और ईवी एवं ICE वाहनों के बीच कीमत का अंतर कम हो जाएगा।
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मार्च तक नीति को अंतिम रूप देने की तैयारी
यह नीति मार्च तक कैबिनेट की मंजूरी के बाद अंतिम रूप ले सकती है। सरकार के भीतर यह माना जा रहा है कि सेस का दायरा बढ़ाना उन कई उपायों में से एक है, जिनके जरिए पेट्रोल, डीजल और सीएनजी वाहनों की नई खरीद की रफ्तार को धीमा किया जा सके। और उपभोक्ताओं को इलेक्ट्रिक विकल्पों की ओर प्रेरित किया जा सके।
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अधिकारियों के अनुसार, मसौदा नीति में नए पेट्रोल और सीएनजी वाहनों पर 1 से 2 प्रतिशत तक ग्रीन सेस लगाने का सुझाव दिया गया है। फिलहाल डीजल कारों पर 1 प्रतिशत सेस लगता है, जिसे बढ़ाकर 2 प्रतिशत किया जा सकता है। अगर यह प्रस्ताव लागू होता है, तो पारंपरिक वाहनों की ऑन-रोड कीमत सीधे तौर पर बढ़ेगी और ईवी एवं ICE वाहनों के बीच कीमत का अंतर कम हो जाएगा।
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मार्च तक नीति को अंतिम रूप देने की तैयारी
यह नीति मार्च तक कैबिनेट की मंजूरी के बाद अंतिम रूप ले सकती है। सरकार के भीतर यह माना जा रहा है कि सेस का दायरा बढ़ाना उन कई उपायों में से एक है, जिनके जरिए पेट्रोल, डीजल और सीएनजी वाहनों की नई खरीद की रफ्तार को धीमा किया जा सके। और उपभोक्ताओं को इलेक्ट्रिक विकल्पों की ओर प्रेरित किया जा सके।
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2020 की ईवी नीति और ग्रीन सेस का विस्तार
दिल्ली सरकार ने ग्रीन सेस को अपनी ईवी नीति 2020 के तहत पेश किया था। यह नीति अगस्त 2023 में समाप्त हो गई थी, लेकिन इसे मार्च 2026 तक बढ़ा दिया गया है। नई नीति के शुरुआती मसौदों में सेस को सभी ICE वाहनों तक बढ़ाने की बात शामिल थी, हालांकि बाद में कई प्रस्ताव हटा दिए गए। अब सेस का अंतिम स्वरूप पूरी तरह कैबिनेट की मंजूरी पर निर्भर करेगा।
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ईवी रजिस्ट्रेशन में बढ़त, लेकिन लक्ष्य अभी दूर
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, राजधानी में हर महीने होने वाले कुल वाहन पंजीकरण में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी लगभग 12-14 प्रतिशत है। VAHAN डेटा के अनुसार, इस साल अब तक दिल्ली में करीब आठ लाख वाहन रजिस्टर्ड हुए हैं, जिनमें लगभग 1.11 लाख इलेक्ट्रिक वाहन हैं। सरकार का संकेत है कि वह प्रोत्साहन और अतिरिक्त शुल्क दोनों के मिश्रण से इस हिस्सेदारी को तेजी से बढ़ाना चाहती है।
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दिल्ली सरकार ने ग्रीन सेस को अपनी ईवी नीति 2020 के तहत पेश किया था। यह नीति अगस्त 2023 में समाप्त हो गई थी, लेकिन इसे मार्च 2026 तक बढ़ा दिया गया है। नई नीति के शुरुआती मसौदों में सेस को सभी ICE वाहनों तक बढ़ाने की बात शामिल थी, हालांकि बाद में कई प्रस्ताव हटा दिए गए। अब सेस का अंतिम स्वरूप पूरी तरह कैबिनेट की मंजूरी पर निर्भर करेगा।
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ईवी रजिस्ट्रेशन में बढ़त, लेकिन लक्ष्य अभी दूर
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, राजधानी में हर महीने होने वाले कुल वाहन पंजीकरण में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी लगभग 12-14 प्रतिशत है। VAHAN डेटा के अनुसार, इस साल अब तक दिल्ली में करीब आठ लाख वाहन रजिस्टर्ड हुए हैं, जिनमें लगभग 1.11 लाख इलेक्ट्रिक वाहन हैं। सरकार का संकेत है कि वह प्रोत्साहन और अतिरिक्त शुल्क दोनों के मिश्रण से इस हिस्सेदारी को तेजी से बढ़ाना चाहती है।
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पुराने लक्ष्य और नए प्रोत्साहन
अगस्त 2020 में लॉन्च की गई दिल्ली की पहली ईवी नीति में नए पंजीकरणों में 25 प्रतिशत ईवी अपनाने का लक्ष्य रखा गया था। संशोधित नीति में भी रोड टैक्स और रजिस्ट्रेशन फीस की छूट, साथ ही बैटरी क्षमता के प्रति किलोवॉट-घंटे पर 5,000 रुपये की सब्सिडी जैसे प्रमुख प्रोत्साहन जारी रहने की संभावना है।
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अगस्त 2020 में लॉन्च की गई दिल्ली की पहली ईवी नीति में नए पंजीकरणों में 25 प्रतिशत ईवी अपनाने का लक्ष्य रखा गया था। संशोधित नीति में भी रोड टैक्स और रजिस्ट्रेशन फीस की छूट, साथ ही बैटरी क्षमता के प्रति किलोवॉट-घंटे पर 5,000 रुपये की सब्सिडी जैसे प्रमुख प्रोत्साहन जारी रहने की संभावना है।
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चार्जिंग, स्क्रैपेज और पुराने वाहनों पर नया शुल्क
मसौदा नीति में सेस के अलावा कई अन्य कदमों का भी प्रस्ताव है। इनमें ईवी लोन पर कम ब्याज दरें, पुराने वाहनों को स्क्रैप कर नए ईवी लेने पर प्रोत्साहन, और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर व बैटरी स्वैपिंग के लिए वित्तीय सहायता शामिल है।
इसके साथ ही, 10 साल से ज्यादा पुराने वाहनों के लिए पीयूसी रिन्यूअल के समय अलग लेवी लगाने का भी प्रस्ताव है, जो दोपहिया, पैसेंजर और कमर्शियल वाहनों पर लागू होगी। अधिकारियों का अनुमान है कि इससे सालाना करीब 300 करोड़ रुपये का राजस्व जुट सकता है। जिसे ईवी अपनाने से जुड़े कार्यक्रमों में लगाया जाएगा।
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मसौदा नीति में सेस के अलावा कई अन्य कदमों का भी प्रस्ताव है। इनमें ईवी लोन पर कम ब्याज दरें, पुराने वाहनों को स्क्रैप कर नए ईवी लेने पर प्रोत्साहन, और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर व बैटरी स्वैपिंग के लिए वित्तीय सहायता शामिल है।
इसके साथ ही, 10 साल से ज्यादा पुराने वाहनों के लिए पीयूसी रिन्यूअल के समय अलग लेवी लगाने का भी प्रस्ताव है, जो दोपहिया, पैसेंजर और कमर्शियल वाहनों पर लागू होगी। अधिकारियों का अनुमान है कि इससे सालाना करीब 300 करोड़ रुपये का राजस्व जुट सकता है। जिसे ईवी अपनाने से जुड़े कार्यक्रमों में लगाया जाएगा।
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उद्योग की चिंता और आगे की राह
ऑटो उद्योग के जानकार सेस में मामूली बढ़ोतरी के असर को लेकर सतर्क हैं। उनका कहना है कि ईवी अपनाने में सबसे बड़ी बाधा अब भी ऊंची शुरुआती कीमत है। ऐसे में केवल अतिरिक्त शुल्क से खरीदारों का व्यवहार बदलना सीमित असर डाल सकता है, और इसके लिए ज्यादा मजबूत संरचनात्मक सुधारों की जरूरत होगी।
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सार्वजनिक सुझावों के लिए खुलेगा मसौदा
ड्राफ्ट ईवी नीति को जल्द ही सार्वजनिक किया जाएगा, ताकि नागरिकों और हितधारकों से सुझाव लिए जा सकें। इसके बाद संशोधित प्रस्ताव को कैबिनेट के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। जो यह तय करेगा कि दिल्ली में ग्रीन सेस का दायरा कितना व्यापक होगा।
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ऑटो उद्योग के जानकार सेस में मामूली बढ़ोतरी के असर को लेकर सतर्क हैं। उनका कहना है कि ईवी अपनाने में सबसे बड़ी बाधा अब भी ऊंची शुरुआती कीमत है। ऐसे में केवल अतिरिक्त शुल्क से खरीदारों का व्यवहार बदलना सीमित असर डाल सकता है, और इसके लिए ज्यादा मजबूत संरचनात्मक सुधारों की जरूरत होगी।
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