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Driving: क्या 70 की उम्र के बाद गाड़ी चलाना सुरक्षित है? कहीं आप भी तो नहीं कर रहे ये गलती?

ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: सुयश पांडेय Updated Wed, 17 Dec 2025 10:53 AM IST
सार

बढ़ती उम्र के साथ ड्राइविंग क्षमता पर असर पड़ना आम बात है। लेकिन गाड़ी चलाने के लिए कोई तय 'ऊपरी उम्र सीमा' नहीं होती। विशेषज्ञों के अनुसार, ड्राइविंग छोड़ने का फैसला उम्र के आधार पर नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक फिटनेस को देखकर किया जाना चाहिए।

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When Should You Stop Driving? Experts Explain the Right Age and Warning Signs for Senior Drivers
किस उम्र में गाड़ी चलाना हमेशा के लिए छोड़ देना चाहिए? (सांकेतिक तस्वीर) - फोटो : Freepik
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विस्तार
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बढ़ती उम्र अपने साथ कुछ नकारात्मक शारीरिक और मानसिक बदलाव लेकर आती है। जो काम पहले चुटकियों में हो जाते थे, वो इस उम्र में चुनौतीपूर्ण लगने लगते हैं। ड्राइविंग, जो कभी एक सामान्य काम होता था, बुढ़ापे में भारी लगने लगता है। इसका मतलब ये नहीं है कि हर किसी को अपनी 'गोल्डन इयर्स' (बुढ़ापे) में ड्राइविंग छोड़ देनी चाहिए। कई बुजुर्ग ड्राइवर काफी अच्छे से गाड़ी चलाते हैं। लेकिन, बुजुर्ग ड्राइवरों की सुरक्षा को लेकर चिंताएं रहती हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर किस उम्र में गाड़ी चलाना हमेशा के लिए छोड़ देना चाहिए?

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क्या ड्राइविंग के लिए कोई 'ऊपरी आयु सीमा' है?

भारत में ड्राइविंग करने के लिए कोई ऊपरी आयु सीमा निर्धारित नहीं है। आप तब तक गाड़ी चला सकते हैं जब तक आप चिकित्सकीय रूप से स्वस्थ हैं। इसका मतलब है कि आपकी आंखें ठीक होनी चाहिए। आप कलर ब्लाइंड नहीं होने चाहिए और मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होने चाहिए। हालांकि, उम्र बढ़ने के साथ लाइसेंस रिन्यू कराने के नियम सख्त हो जाते हैं। शुरुआत में लाइसेंस आमतौर पर 20 साल के लिए या 40 वर्ष की आयु तक वैध होता है। 50 या 60 वर्ष की आयु के बाद लाइसेंस रिन्यूअल की अवधि घटा दी जाती है। इस उम्र के बाद आपको हर 5 साल में अपना लाइसेंस रिन्यू कराना होता है। रिन्यूअल के समय आपको एक रजिस्टर्ड डॉक्टर से मेडिकल सर्टिफिकेट जमा करना अनिवार्य होता है। यह प्रमाणित करता है कि आप ड्राइविंग के लिए फिट हैं।

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एक्सपर्ट्स की राय क्या है?

कई विशेषज्ञों के अनुसार, ड्राइविंग रोकने के लिए कोई एक निर्धारित उम्र नहीं है। इस विषय पर हर व्यक्ति के लिए अलग दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इसमें व्यक्ति की देखने-सुनने की क्षमता, वैकल्पिक परिवहन की उपलब्धता और उनकी व्यक्तिगत भावनाओं को ध्यान में रखना चाहिए। हालांकि, एक्सपर्ट्स यह भी मानते हैं कि ज्यादातर लोग अपनी क्षमता खत्म होने के 7 से 10 साल बाद तक गाड़ी चलाते रहते हैं। आंकड़े बताते हैं कि 70 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोग, किसी भी अन्य आयु वर्ग की तुलना में दुर्घटनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। 70 साल की उम्र एक सही समय है जब आपको अपनी ड्राइविंग क्षमता और सेहत के बारे में डॉक्टर से बात शुरू कर देनी चाहिए।

कब हो जाना चाहिए सावधान?

हार्डवर्ड हेल्थ पब्लिशिंग की रिपोर्ट में कुछ ऐसे संकेत बताए गए हैं जिनसे पता चलता है कि कब आपको ड्राइविंग हमेशा के लिए छोड़ देनी चाहिए। अगर सड़क पर दूसरे ड्राइवर आप पर बार-बार हॉर्न बजाते हैं। अगर आपके दोस्त या परिवार वाले आपकी कार में बैठने के बजाय किसी और साधन से जाना पसंद करते हैं। अगर आपकी गाड़ी पर अचानक से ज्यादा डेंट या खरोंचें दिखाई देने लगें और आपको पता न हो कि ये कैसे आईं। आंकड़े भी दिखाते हैं कि 80 वर्ष और उससे अधिक उम्र के ड्राइवरों के एक्सीडेंट्स का खतरा सबसे ज्यादा होता है।

भारत में बुजुर्ग ड्राइवरों के लिए मेडिकल नियम और चुनौतियां

भारत में भी अब ड्राइविंग लाइसेंस के नियम सख्त हो रहे हैं। यहां केवल आंखों की जांच काफी नहीं है, बल्कि एक निश्चित उम्र के बाद मेडिकल मूल्यांकन अनिवार्य कर दिया गया है। भारत के मोटर वाहन अधिनियम के अनुसार, अगर आपकी आयु 40 वर्ष से अधिक है। तो आपको लाइसेंस रिन्यू कराते समय एक पंजीकृत चिकित्सक से 'फॉर्म 1A' (मेडिकल सर्टिफिकेट) जमा करना अनिवार्य होता है। यह प्रमाण पत्र यह सुनिश्चित करता है कि आप शारीरिक और मानसिक रूप से वाहन चलाने के लिए फिट हैं। इसके अलावा, 50 वर्ष की आयु के बाद लाइसेंस रिन्यूअल की अवधि कम कर दी जाती है। जिससे बार-बार फिटनेस की जांच हो सके।

यह समस्या क्यों बढ़ रही है?

भले ही भारत को युवाओं का देश कहा जाता है, लेकिन यहां बुजुर्गों की आबादी भी तेजी से बढ़ रही है। बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के कारण लोगों की औसत आयु बढ़ी है। 'इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023' के अनुसार, भारत में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसका सीधा मतलब यह है कि आने वाले वर्षों में भारतीय सड़कों पर भी 60 वर्ष से अधिक उम्र के ड्राइवरों की संख्या पहले से कहीं ज्यादा होगी।

क्यो बुजुर्गों के लिए एक चुनौती है पब्लिक ट्रांसपोर्ट?

भारत में एकल परिवारों (Nuclear Families) का चलन बढ़ा है। बच्चे अक्सर नौकरी के लिए दूसरे शहरों या विदेशों में रहते हैं। ऐसे में बुजुर्ग माता-पिता अपनी रोजमर्रा की जरूरतों (सब्जी, दवाई, बैंक) के लिए खुद गाड़ी चलाने पर मजबूर हैं। भले ही मेट्रो शहरों में सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन भारत के अधिकांश हिस्सों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट (बसें, ट्रेन) बुजुर्गों के अनुकूल नहीं हैं। भीड़भाड़, ऊंची सीढ़ियां और 'लास्ट माइल कनेक्टिविटी' (घर से स्टेशन तक की दूरी) की समस्या के कारण बुजुर्ग अपनी निजी कार या स्कूटर का उपयोग करना सुरक्षित और सुविधाजनक मानते हैं।

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