Bihar: ईबीसी और अगड़ा समीकरण ने दो दशक में बदली सियासत की रवायत, मुस्लिमों पर दलों की निर्भरता हुई कम
Bihar Election 2025: बिहार में ईबीसी और अगड़ा समीकरण ने दो दशक में सियासत की रवायत बदल दी है। माय समीकरण में पलीता लगाया, जिससे मुस्लिमों पर दलों की निर्भरता कम हुई है। वहीं यादव और मुसलमानों को सर्वाधिक नुकसान हुआ है, उनके प्रतिनिधित्व में भी गिरावट आई है, जबकि अगड़ों को लाभ हुआ है।

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साल 2015 में बिहार विधानसभा में हर चौथा विधायक यादव बिरादरी से था जबकि 2020 में हर चौथा विधायक अगड़ा। बीते चुनाव में पहली बार अति पिछड़ी जाति (ईबीसी) का करीब 10 फीसदी तो लव-कुश (कुर्मी-कुशवाहा) का करीब 11 फीसदी प्रतिनिधित्व रहा। बिहार की सियासत में यह बदलाव करीब दो दशक पहले आना शुरू हुआ जब जदयू-भाजपा (राजग) ने हाथ मिलाया।
अपवाद स्वरूप 2015 में राजद-जदयू के हाथ मिलाने को छोड़ कर राजग के ईबीसी, अगड़ा और लवकुश समीकरण ने राजद के सबसे मजबूत माने जाने वाले माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण में पलीता लगा दिया। इस नए समीकरण के उदय के साथ ही सर्वाधिक सियासी नुकसान यादव और मुसलमान बिरादरी को हुआ। इस तथ्य को ऐसे समझ सकते हैं कि मंडल कमीशन लागू होने के बाद हुए पहले चुनाव में दोनों बिरादरी के विधानसभा में 100 विधायक थे। बीते चुनाव में यह संख्या घट कर 74 रह गई। साल 2015 के चुनाव में नीतीश और लालू के साथ आने के कारण इनके प्रतिनिधित्व में सुधार आया।
क्यों पिछड़ा महागठबंधन का समीकरण
दरअसल माय समीकरण के दायरे में 31 फीसदी वोट हैं। दूसरी ओर राजग के समीकरण अगड़ा, अतिपिछड़ा और लवकुश के दायरे में 55 फीसदी आबादी है। इसमें वैश्य वोट बैंक भी जुड़ गया है। बीते चुनाव में कांग्रेस के कारण महागठबंधन ब्राह्मण वोट बैंक में सेंधमारी कर पाई थी। इसके अलावा वाम दलों के कारण इनकी ईबीसी और दलित वोट बैंक में भी पैठ बनी थी।
अगड़ा के साथ लवकुश का भी बढ़ा प्रतिनिधित्व
सियासत में नए समीकरण के कारण 2015 के चुनाव को छोड़ कर बीते तीन चुनाव में अगड़ा, लवकुश, ईबीसी और वैश्य बिरादरी का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। मसलन 2005, 2010 और 2020 में अगड़ा वर्ग के क्रमश: 73, 79, 64, लवकुश के 23, 36, 26, ईबीसी के 21, 18, 21 और वैश्य बिरादरी के 6, 13, 22 उम्मीदवार विधानसभा पहुंचे। ध्यान देने वाली बात यह है कि संयुक्त बिहार के दौरान पहले और दूसरे चुनाव में ईबीसी के महज 3 और 4 विधायक ही चुनाव जीते थे।
मुसलमानों को लेकर असमंजस
मुसलमानों को बीते दो दशक में रणनीतिगत वोटिंग का नुकसान हुआ है। माय समीकरण के खिलाफ राजग का अगड़ा, ईबीसी और गैरयादव ओबीसी दांव फिट बैठा है। फिर यादव-मुस्लिम मतों के एक पक्ष में ध्रूवीकरण होने से इनके खिलाफ राजग के पक्ष में समानांतर ध्रूवीकरण हुआ।
इन बिरादरी के लिए मुश्किल यह है कि सत्तारूढ़ राजग बिरादरी के उम्मीदवारों को सफलता नहीं मिलने के कारण इनसे दूर हो रहा है। दूसरी ओर विपक्षी महागठबंधन इस बिरादरी के वोट बैंक में एआईएमआईएम के सेंध के साथ ही इस बार जनसुराज पार्टी की घुसपैठ के कारण असमंजस में है।
इस बार टिकट कम क्यों?
बीते चुनाव में एनआरसी के शोर के कारण जदयू के 11 उम्मीदवारों में से एक भी चुनाव नहीं जीत पाया। इस बार इस बिरादरी में वक्फ संशोधन अधिनियम और मतदाता सूची विशेष गहन परीक्षण (एसआईआर) को ले कर नाराजगी है। सत्तारूढ़ राजग को लगता है कि ऐसे में यह बिरादरी एक बार फिर उसके खिलाफ गोलबंद होगी। दूसरी ओर विपक्षी महागठबंधन को लगता है कि इस बिरादरी का एक बड़ा हिस्सा एआईएमआईएम और जनसुराज पार्टी की ओर जा सकता है।