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Ram Navami: बिहार के इस गांव में नहीं लहराई जाती महावीरी पताका, रामभक्तों की अपार श्रद्धा के बावजूद ऐसा क्यों?

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, शेखपुरा Published by: हिमांशु प्रियदर्शी Updated Sat, 05 Apr 2025 07:56 PM IST
सार

Ram Navami 2025: पूरे देश और बिहार में रामनवमी के अवसर पर हर शहर गांव में महावीरी पताकाएं लगी हुई देखने को मिलती हैं, सिवाय शेखपुरा के एक गांव को छोड़कर। पीढ़ियों पुरानी इस परंपरा के पीछे एक सूफी संत को माना जाता है। पढ़ें पूरी खबर...।

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Ram Navami: Mahaveeri flag is not hoisted in Pathlafar village Sheikhpura, Dargah of Sufi Saint Isaac Magribi
महावीरी पताका - फोटो : फाइल फोटो
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विस्तार
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रामनवमी के अवसर पर जहां देशभर में गांव-शहर भगवा पताकाओं और महावीरी झंडों से पट जाते हैं, वहीं शेखपुरा जिले के पथलाफार गांव में यह पर्व एक अलग ही परंपरा के साथ मनाया जाता है। यहां रामनवमी के दिन महावीरी पताका नहीं लगाई जाती और यह कोई हाल की परंपरा नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही एक आस्था और अनुभव से उपजी मान्यता है।

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गांव के बुजुर्गों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि रामनवमी का व्रत, पूजा और भजन कीर्तन तो पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाता है। लेकिन पताका लगाने से गांव के लोग परहेज करते हैं। इसकी वजह एक पुरानी घटना है, जिसने गांव के लोगों को भय और श्रद्धा के ऐसे संगम पर लाकर खड़ा कर दिया, जहां परंपरा बन गई भावना और विश्वास का प्रतीक।
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कभी लगी थी पताका, फिर आई अनहोनी
गांव के 78 वर्षीय कामेश्वर यादव, 55 वर्षीय मोती यादव, वार्ड सदस्य दर्शन चौहान और सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र यादव जैसे कई बुजुर्गों ने बताया कि कई पीढ़ी पहले रामनवमी के अवसर पर गांव में महावीरी पताका लगाई गई थी। अगले ही दिन गांव में कई लोगों की तबीयत बिगड़ गई। कुछ की गर्दन टेढ़ी हो गई, तो कई बीमार पड़ गए। इसे देवी प्रकोप माना गया और उसी दिन गांव से सारी पताकाएं हटा दी गईं।
 
लोगों का दावा है कि चमत्कार की तरह, जिन लोगों की तबीयत खराब हुई थी, वे धीरे-धीरे ठीक होने लगे। तब से लेकर आज तक किसी ने इस परंपरा को तोड़ने की हिम्मत नहीं की। पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा भय, आस्था और अनुभव का रूप लेकर जीवित है।
 
दरगाह के सम्मान में नहीं लहराते झंडे
इस अनोखी मान्यता का एक और पक्ष भी है। मोती यादव ने बताया कि गांव के पश्चिम में करीब डेढ़ किलोमीटर दूर सूफी संत इसहाक मगरबी की दरगाह स्थित है। यह दरगाह न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है, बल्कि इसका मुख्य द्वार भी पथलाफार गांव की ओर खुलता है।
 
कहा जाता है कि जब गांव में एक बार रामनवमी पर पताका लगाई गई थी, उसी के बाद अनहोनी हुई। ग्रामीणों ने इसे संत के सम्मान का उल्लंघन माना और तय किया कि अब से रामनवमी के दिन कोई भी महावीरी पताका गांव में नहीं लगेगी। तब से यह एक स्थायी परंपरा बन गई है, जिसे आज तक निभाया जा रहा है।

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पूजा-पाठ में नहीं है कोई कमी
हालांकि महावीरी पताका नहीं लगाना गांव में रामनवमी की आस्था को कम नहीं करता। हर घर में भगवान राम की विधिपूर्वक पूजा होती है। व्रत रखा जाता है, रामचरितमानस का पाठ होता है और संध्या आरती में पूरा गांव राम भक्ति में डूबा रहता है। इस परंपरा से जुड़ी एक और बात यह भी है कि अषाढ़ी पूजा के समय गांव के देवी स्थान पर एक झंडा जरूर लगाया जाता है। यानी झंडा लगाने की परंपरा पूरी तरह से नहीं टूटी है, लेकिन रामनवमी पर विशेष रूप से यह परहेज बरकरार है।

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