Bihar: बिक्रमगंज में परिचारी की गिरफ्तारी विवादित, देर शाम छोड़ा गया; सीसीटीवी फुटेज ने पलटा रिश्वत का मामला
Bihar: सोशल मीडिया पर वायरल फुटेज में देखा गया कि दो लोग परिचारी की कुर्सी के पीछे लिफाफा रख जाते हैं। विनोद कुमार न तो पीछे मुड़कर देखते हैं और न ही रुपये को छूते हैं। इसके बावजूद चंद सेकेंड बाद निगरानी विभाग की टीम आकर उन्हें गिरफ्तार कर लेती है।

विस्तार
सासाराम के बिक्रमगंज अनुमंडल कार्यालय में पदस्थापित परिचारी विनोद कुमार को रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार किए जाने का मामला नया मोड़ ले चुका है। इस घटनाक्रम का सीसीटीवी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद निगरानी विभाग की कार्यशैली सवालों के घेरे में है। हालांकि देर शाम निगरानी विभाग ने प्रेस बयान जारी कर विनोद कुमार को हिरासत से मुक्त कर दिया और मामले में अनुसंधान जारी रहने की बात कही है।

जमीन विवाद से जुड़ा मामला
धनगांईं गांव निवासी राकेश कुमार ने परिचारी विनोद कुमार पर जमीन विवाद निपटाने के लिए 1 लाख 60 हजार रुपये रिश्वत मांगने का आरोप लगाया था। शिकायत की जांच में निगरानी विभाग ने आरोप को सही पाया और पटना से आई टीम ने जाल बिछाकर कार्रवाई की।
निगरानी डीएसपी का बयान
गिरफ्तारी के बाद निगरानी डीएसपी नरेंद्र कुमार ने बताया कि शिकायत सही पाई गई थी और इसी आधार पर परिचारी को गिरफ्तार किया गया। उन्होंने कहा कि जमीन विवाद का मामला डीसीएलआर के अधीन लंबित है और आगे की जांच की जा रही है।
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सीसीटीवी फुटेज ने बढ़ाई हलचल
सोशल मीडिया पर वायरल फुटेज में देखा गया कि दो लोग परिचारी की कुर्सी के पीछे लिफाफा रख जाते हैं। विनोद कुमार न तो पीछे मुड़कर देखते हैं और न ही रुपये को छूते हैं। इसके बावजूद चंद सेकेंड बाद निगरानी विभाग की टीम आकर उन्हें गिरफ्तार कर लेती है। खास बात यह कि गिरफ्तारी के दौरान उनके हाथों की केमिकल टेस्टिंग भी नहीं की गई।
गिरफ्तारी से मुक्त, जांच जारी
सीसीटीवी सामने आने के बाद निगरानी विभाग ने बयान जारी कर कहा कि रकम परिचारी के कुर्सी के पीछे से बरामद हुई थी, लेकिन उन्होंने उसे स्पर्श नहीं किया। विभाग ने माना कि यह मामला परिवादी और आरोपी के बीच जमीन विवाद से जुड़ा है। इसलिए पूछताछ के बाद विनोद कुमार को छोड़ दिया गया और आगे की कार्रवाई साक्ष्य मिलने पर की जाएगी।
निगरानी विभाग की कार्यशैली पर सवाल
इस प्रकरण के बाद निगरानी विभाग की कार्रवाई संदेह के घेरे में आ गई है। सवाल उठ रहा है कि अगर आरोपी ने पैसे को छुआ ही नहीं तो शिकायत को सत्य क्यों माना गया? क्या झूठी शिकायत दर्ज कराने वाले पर कार्रवाई होगी? इस तरह की घटनाओं से प्रशासनिक विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।