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Bihar News: भूजल प्रदूषण की भयावह कीमत, मां के दूध तक पहुंचा यूरेनियम; कैंसर का भी खतरा चिंता में ये सब
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, आरा
Published by: पटना ब्यूरो
Updated Mon, 24 Nov 2025 07:08 PM IST
सार
आरा सदर अस्पताल के मैनेजर शशिकांत कुमार ने बताया कि गंगा के तटीय क्षेत्र में आर्सेनिक ज्यादा मात्रा पाया जाता है, इस वजह से इन क्षेत्रों में ऐसे मामले ज्यादा पाए जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण कृषि में खाद का इस्तेमाल करना बताया गया है।
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विस्तार
बिहार में माताओं के स्तन दूध में यूरेनियम की मौजूदगी का चौंकाने वाला खुलासा चिंता बढ़ाने वाला है। जिस दूध को शिशु के लिए जीवन का पहला और सबसे सुरक्षित आहार माना जाता है, वहीं अब ख़तरे का स्रोत बनता दिख रहा है। अगर उसी में जहर घुलने लगे तो यह केवल एक स्वास्थ्य संकट नहीं, बल्कि समाज की जड़ों को हिला देने वाली त्रासदी बन जाती है। यह खोज मां और बच्चे दोनों की सेहत पर गंभीर सवाल खड़े करती है। प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित एक नए अध्ययन ने चौंकाने वाला खुलासा किया है।
नए अध्ययन में खुलासा हुआ
प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय साइंस जर्नल नेचर में प्रकाशित एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि बिहार के छह जिलों भोजपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार और नालंदा में स्तनपान कराने वाली हर महिला के दूध में यूरेनियम (U-238) पाया गया। यह न सिर्फ वैज्ञानिक आंकड़ा है, बल्कि उस डरावने सच की गूंज है कि भूजल में घुला प्रदूषण अब सीधे मां के दूध के माध्यम से शिशुओं के शरीर में प्रवेश कर रहा है। यह अध्ययन पटना के महावीर कैंसर संस्थान के डॉ अरुण कुमार और प्रोफेसर अशोक घोष की अगुवाई में, नई दिल्ली एम्स के डॉ अशोक शर्मा के सहयोग से अक्टूबर 2021 से जुलाई 2024 के बीच किया गया।
हर एक नमूने में यूरेनियम मौजूद था
शोध के दौरान 17 से 35 वर्ष की आयु वाली 40 स्तनपान कराने वाली महिलाओं के दूध के नमूने लिए गए, और चौंकाने वाली बात यह रही कि हर एक नमूने में यूरेनियम मौजूद था। सबसे बड़ा खतरा यह है कि अभी तक दुनिया में किसी भी संस्था या देश ने मां के दूध में यूरेनियम की सुरक्षित सीमा तय नहीं की है। इसका मतलब है कि वैज्ञानिक दृष्टि से यूरेनियम की कोई भी मात्रा सुरक्षित नहीं मानी जाती। चौंकाने वाली बात यह है कि शोध में शामिल 70% शिशुओं में यूरेनियम से गैर-कैंसरजन्य स्वास्थ्य प्रभाव का खतरा उच्च पाया गया है।
ये भी पढ़ें- Bihar News : केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा में एसिड ब्लास्ट, चार सफाईकर्मी घायल; एक की हालत नाजुक
अस्पताल के मैनेजर शशिकांत कुमार का बयान
पूरे मामले को लेकर आरा सदर अस्पताल के मैनेजर शशिकांत कुमार ने बताया कि गंगा के तटीय क्षेत्र में आर्सेनिक का ज्यादा मात्रा पाया जाता है, इस वजह से इन क्षेत्रों में ऐसे मामले ज्यादा पाए जा रहे है। इसका मुख्य कारण कृषि में खाद का इस्तेमाल करना बताया गया है। क्योंकि इससे जल स्त्रोत काफी प्रभावित हो रहा है। जिसकी वजह से यह लोगों के बीच पहुंच रहा है, जिससे कैंसर की मात्रा बढ़ने की संभावना होती है।
तटीय इलाका होने की वजह से गंगा का पानी भी दूषित होता है, कृषि के खाद की वजह से, कचड़ा की वजह से मामला बढ़ सकता है। ऐसे में समय पर पानी की जांच करें।
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नए अध्ययन में खुलासा हुआ
प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय साइंस जर्नल नेचर में प्रकाशित एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि बिहार के छह जिलों भोजपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार और नालंदा में स्तनपान कराने वाली हर महिला के दूध में यूरेनियम (U-238) पाया गया। यह न सिर्फ वैज्ञानिक आंकड़ा है, बल्कि उस डरावने सच की गूंज है कि भूजल में घुला प्रदूषण अब सीधे मां के दूध के माध्यम से शिशुओं के शरीर में प्रवेश कर रहा है। यह अध्ययन पटना के महावीर कैंसर संस्थान के डॉ अरुण कुमार और प्रोफेसर अशोक घोष की अगुवाई में, नई दिल्ली एम्स के डॉ अशोक शर्मा के सहयोग से अक्टूबर 2021 से जुलाई 2024 के बीच किया गया।
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हर एक नमूने में यूरेनियम मौजूद था
शोध के दौरान 17 से 35 वर्ष की आयु वाली 40 स्तनपान कराने वाली महिलाओं के दूध के नमूने लिए गए, और चौंकाने वाली बात यह रही कि हर एक नमूने में यूरेनियम मौजूद था। सबसे बड़ा खतरा यह है कि अभी तक दुनिया में किसी भी संस्था या देश ने मां के दूध में यूरेनियम की सुरक्षित सीमा तय नहीं की है। इसका मतलब है कि वैज्ञानिक दृष्टि से यूरेनियम की कोई भी मात्रा सुरक्षित नहीं मानी जाती। चौंकाने वाली बात यह है कि शोध में शामिल 70% शिशुओं में यूरेनियम से गैर-कैंसरजन्य स्वास्थ्य प्रभाव का खतरा उच्च पाया गया है।
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अस्पताल के मैनेजर शशिकांत कुमार का बयान
पूरे मामले को लेकर आरा सदर अस्पताल के मैनेजर शशिकांत कुमार ने बताया कि गंगा के तटीय क्षेत्र में आर्सेनिक का ज्यादा मात्रा पाया जाता है, इस वजह से इन क्षेत्रों में ऐसे मामले ज्यादा पाए जा रहे है। इसका मुख्य कारण कृषि में खाद का इस्तेमाल करना बताया गया है। क्योंकि इससे जल स्त्रोत काफी प्रभावित हो रहा है। जिसकी वजह से यह लोगों के बीच पहुंच रहा है, जिससे कैंसर की मात्रा बढ़ने की संभावना होती है।
तटीय इलाका होने की वजह से गंगा का पानी भी दूषित होता है, कृषि के खाद की वजह से, कचड़ा की वजह से मामला बढ़ सकता है। ऐसे में समय पर पानी की जांच करें।

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