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Insurance: सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनियों को दी हिदायत, कहा- पॉलिसी के बारे में ग्राहकों को पूरी जानकारी दें

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कुमार विवेक Updated Fri, 12 Apr 2024 12:11 PM IST
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सार

Insurance: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि जिस तरह बीमित व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने बारे में सभी प्रासंगिक तथ्यों का खुलासा करे, उसी तरह बीमा कंपनियों का भी वैधानिक दायित्व है कि वह बीमा के बारे किसी भी विवरण को छिपाए बिना बीमाधारकों को पॉलिसी के नियमों और शर्तों के बारे में पूरी जानकारी दे।

Reveal all details about policy terms and conditions: Supreme Court to insurance companies
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : ANI
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विस्तार
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उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि जिस तरह बीमित व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने बारे में सभी प्रासंगिक तथ्यों का खुलासा करे, उसी तरह बीमा कंपनियों का भी वैधानिक दायित्व है कि वह बीमा के बारे किसी भी विवरण को छिपाए बिना बीमाधारकों को पॉलिसी के नियमों और शर्तों के बारे में पूरी जानकारी दे।

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न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने एक फैसले में कहा, "जिस तरह बीमित व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने बारे में सभी भौतिक तथ्यों का खुलासा करे, उसी तरह बीमाकर्ता को भी ग्राहक को पॉलिसी के नियमों और शर्तों के बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए। उन्हें प्रस्ताव फॉर्म या प्रॉस्पेक्टस में दी गई जानकारी या उसके एजेंटों की ओर से कही गई बातों का सख्ती से पालन करना चाहिए।"
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शीर्ष अदालत ने फ्यूचर जनरल इंडिया लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को शिकायतकर्ता महाकाली सुजाता के जीवन बीमा दावे भुगतान करने निर्देश दिया। सुजाता मूल रूप से बीमित व्यक्ति एस वेंकटेश्वरलू की एकमात्र कानूनी उत्तराधिकारी हैं। एस वेंकटेश्वरलू की फरवरी 2011 में मृत्यु हो गई थी।

फैसले में हालांकि यह स्पष्ट नहीं हुआ कि कंपनी ने वास्तव में क्या छिपाया था, लेकिन फर्म ने यह तर्क दिया था कि वेंकटेश्वरलू ने यह सूचित नहीं किया था कि उन्होंने विभिन्न कंपनियों से अलग-अलग पॉलिसी ले रखी थी।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "एनसीडीआरसी (राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग) द्वारा दिनांक 22.07.2019 को पारित आदेश को रद्द कर दिया गया है। प्रतिवादी कंपनी को अपीलकर्ता को दी गई दोनों पॉलिसियों के बीमा के दावे की राशि 750,000 रुपये और 960,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है। उन्हें शिकायत दर्ज करने की तारीख से 7% प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ (वास्तविक प्राप्ति की तिथि तक) भुगतान किया जाए।"

इससे पहले एनसीडीआरसी ने शिकायतकर्ता के दावे को खारिज कर दिया था और कंपनी के रुख को स्वीकार कर लिया था कि पॉलिसी के तहत दावे का भुगतान नहीं किया जा सकता। कंपनी ने कहा था कि मृतक ने विभिन्न फर्मों से 15 जीवन बीमा पॉलिसियां ले रखी थी और भौतिक तथ्यों को छिपाते हुए बीमा कंपनी फ्यूचर जनरल इंडिया को इसकी जानकारी भी नहीं दी गई थी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि बीमा कंपनी ने जिला फोरम के समक्ष यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेजी प्रमाण पेश नहीं किया जिससे यह साबित हो सके कि बीमित व्यक्ति ने विभिन्न कंपनियों से कई बीमा पॉलिसियां ले रखी थीं और इस तथ्य को छिपाया था।

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