Gold Silver Price: सोने-चांदी की कीमतों में उछाल, जानें क्या है आज का भाव
Gold Silver Price: सोने की कीमत बुधवार को 1,500 रुपये बढ़कर 1,27,300 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गयी। वहीं चांदी की कीमतों में भी उछाल आया और यह 4,000 रुपए बढ़कर 1,60,000 रुपए प्रति किलोग्राम (सभी करों सहित) हो गई
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मजबूत मांग के बीच राजधानी दिल्ली सोने की कीमत 1,500 रुपये बढ़कर 1,27,300 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गयी। 99.5 प्रतिशत शुद्धता वाली इस बहुमूल्य धातु का भाव 1,500 रुपए बढ़कर 1,26,700 रुपए प्रति 10 ग्राम (सभी करों सहित) हो गया। वहीं चांदी की कीमतों में भी उछाल आया और यह 4,000 रुपए बढ़कर 1,60,000 रुपए प्रति किलोग्राम (सभी करों सहित) हो गई, जिससे स्थानीय सर्राफा बाजार में तीन दिन से जारी गिरावट थम गई। अखिल भारतीय सर्राफा संघ ने इसकी पुष्टि की है।
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सुरक्षित निवेश की नई मांग से बढ़ी सोने की कीमत
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के वरिष्ठ विश्लेषक (कमोडिटीज) सौमिल गांधी ने कहा कि सुरक्षित निवेश की नई मांग के कारण बुधवार को सोने में तेजी आई, जबकि अमेरिकी श्रम बाजार में कमजोरी के लगातार संकेत से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद बनी हुई है।
वैश्विक बाजार में बढ़े सोने-चांदी के दाम
वैश्विक मोर्चे पर, हाजिर सोना लगातार दूसरे कारोबारी सत्र में बढ़त के साथ 46.32 डॉलर या 1.14 प्रतिशत बढ़कर 4,114.01 डॉलर प्रति औंस हो गया। विदेशी कारोबार में चांदी हाजिर 3.09 प्रतिशत बढ़कर 52.26 डॉलर प्रति औंस हो गई।
निवेशकों को है फेड के फैसलों का इंतजार
मिराए एसेट शेयरखान के कमोडिटीज प्रमुख प्रवीण सिंह ने कहा कि सोना हाजिर 4,084 डॉलर के स्तर से ऊपर कारोबार कर रहा है, क्योंकि निवेशक फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) की अक्तूबर बैठक के विवरण का इंतजार कर रहे हैं, जो आज रात जारी होगा।
कोटक सिक्योरिटीज की एवीपी एवं विश्लेषक कमोडिटीज रिसर्च, कायनात चैनवाला ने बताया कि मंगलवार को सोना एक सप्ताह के निचले स्तर से उबरकर 4,065 डॉलर प्रति औंस से ऊपर बंद हुआ। इसे अमेरिका में रोजगार के कमजोर आंकड़ों तथा कई विलंबित मैक्रो रिपोर्ट जारी होने से पहले सतर्कता का समर्थन प्राप्त हुआ। इस बीच, अमेरिका में बेरोजगारी के दावे अक्तूबर के मध्य में बढ़ गए, जबकि निरंतर दावे बढ़कर 1.9 मिलियन हो गए, जो श्रम बाजार की स्थिति में मंदी का संकेत है।
फेडरल रिजर्व के अधिकारियों ने मिश्रित संकेत दिए, थॉमस बार्किन ने मुद्रास्फीति और रोजगार के बीच संतुलित जोखिमों पर प्रकाश डाला, जबकि क्रिस्टोफर वालर ने कमजोर श्रम स्थितियों का हवाला देते हुए अधिक नरम रुख अपनाया।