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Indian Scrap: भारत में सालाना लगभग 420 लाख टन स्क्रैप की खपत, 90 लाख टन होता है आयात, जानें इस बारे में

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, मुंबई Published by: नविता स्वरूप Updated Wed, 26 Nov 2025 06:01 PM IST
सार

स्टील स्क्रैप देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता रखता है। हालांकि स्टील स्क्रैप को विकास का साधान बनाने में कई बाधाएं है। इसमें रीसायकलिंग सबसे बड़ी समस्या है। आइए विस्तार से जानते हैं। 

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India imports 9 million tonnes of scrap for an annual consumption of approximately 42 million tonnes of scrap
Steel Scrap - फोटो : Adobestock
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विस्तार
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भारत में लगातार स्टील स्क्रैप की मांग बढ़ रही है। इसका इस्तेमाल ग्रीन इस्पात योजनाओं के लिए प्रमुख इनपुट के रूप में हो रहा है। इस्पात उद्योग का कहना है कि भारत में सालाना लगभग 420 लाख टन स्क्रैप की खपत होती है और मांग में साल दर साल 6 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो रही है। इसके लिए भारत हर साल लगभग 90 लाख टन स्क्रैप का आयात करता है। इस मांग को पूरा करना एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है, क्योंकि भारत में घरेलू स्क्रैप बाजार विविधापूर्ण होने के बावजूद काफी हद तक असंगठित है।

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स्टील को किया जा सकता है रीसाइकिल

स्टील स्क्रैप देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता रखता है। मुंबई में हुए एक सम्मेलन में विशेषज्ञों ने कहा कि स्टील एक ऐसी धातु है, जिसकी मजबूती या गुणवत्ता खोए बिना अनगिनत बार इसको रीसायकल किया जा सकता है। इस वजह से यह औद्योगिक विकास के लिए इसे मील का पत्थर माना जा सकता है।

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स्टील स्क्रैप उद्योग के सामने में कई चुनौतियां

एमजंक्शन सर्विजेजस ( ई-नीलामी प्लेटफॉर्म प्रदान करता है) के प्रबंधन निदेशक विनय वर्मा कहते हैं कि स्टील स्क्रैप को विकास का साधान बनाने में कई बाधाएं है। इसमें वाहन में लगे स्टील का स्क्रैप चोरी होने से इसकी खरीदारी की दक्षता कम हो जाती है। कीमतों में लगातार उतार-चढ़ाव का भी प्रभाव पड़ता है। कई छोटे आपूर्तीकर्ताओं को कार्यशील पूंजी की कमी का सामना करना पड़ता है,  जिससे उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। परिणामस्वरूप अगर संगठित खरीदारों को गुणवत्ता और मात्रा में स्क्रैप घरेलू बाजार से प्राप्त करना है तो यह एक जटिल और चुनौतीपूर्ण काम बना हुआ है।  

सही रीसायकलिंग के हैं कई फायदें

मेटा मैटेरियल्य सर्कुलर मोर्केट्स के सीईओ नितिन चितकारा कहते है कि वर्तमान समय में देश में कुल 107 स्क्रैपिंग यूनिट हैं, जिसमें से 70 पंजीकृत है। देश में  स्क्रैपिंग पॉलिसी के तहत अगर पुराने वाहनों को स्क्रैप किया जाता है तो,  हम उचित प्रकार से वाहन या ई-कचरा (जिसमें लैपटॉप, कंप्यूटर स्क्रीन, मोबाइल फोन आते हैं) को स्क्रैप किया जाए तो हम स्टील स्क्रैप के साथ कई  रेयर अर्थ एलिमेंट्स को भी एकत्र कर सकते हैं और इसका इस्तेमाल दोबार से ऑटो कंपोनेंट के साथ कई उत्पादों में कर सकते हैं। इससे हमारे देश की  स्टील स्क्रैप, रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर भी आत्मनिर्भरता बढ़ाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि एक कार बनाने में 60 प्रतिशत स्टील, 10 प्रतिशत एल्यूमिनियम, 3 से 5 प्रतिशत प्लास्टिक, जिसमें टायर शामिल, और 2 प्रतिशत ग्लास का इस्तेमाल होता है। वैसे ही लैपटॉप और मोबाइल में चांदी सहित कई ऐसे रेयर मटेरियल का उपयोग किया जाता है, जिनको रीसाइकल कर उद्योग इस्तेमाल कर सकता है।

मेटा मैटेरियल्य के प्रमुख कार्बन,  बीयू यशोधन रामटेके कहते हैं, उचित रूप से स्क्रैप किए गए वाहनों से निकला 95 प्रतिशत मटेरियल रीसाइकल कर उपयोग में लाया जा सकता है, लेकिन असंगठित बाजार में स्क्रैप करने से स्क्रैप मटेरियल को नुकसान होता है, जिसके बाद रीसाइकल कर उपयोग नहीं कर सकते हैं।  

इस्पात की मांग बढ़ी लेकिन स्क्रैप स्टील की आपूर्ति एक चुनौती

सेल के कार्यकारी निदेशक सैयद जावेद अहमद ने मुंबई में हुए एक सम्मेलन में कहा कि जिस तरह से स्टील कंपनियां नई हरित इस्पात की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रही हैं। इसके लिए इस्पात की मांग तो बढ़ ही रही है, वहीं स्क्रैप स्टील की आपूर्ति भी एक चुनौती बनी हुई है। उन्होंने कहा कि स्क्रैप सोर्सिंग भारत के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है, क्योंकि इस्पात की मांग लगातार बढ़ रही है।

देश में रीसाइकलिंग की व्यवस्था मजबूत करने की जरूरत 

रेटिंग एजेंसी इक्रा के कॉर्पोरेट सेक्टर रिेटिंग्स के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और समूह के प्रमुख गिरीशक कुमार कदम बताते हैं कि भारत में इस्पात की मांग बढ़ रही है। इसकी आपूर्ति करने के लिए इसका आयात किया जाता है। वहीं हरित इस्पात की मांग भी बढ़ी है, इसके लिए  स्टील स्क्रैप की मांग में तेजी आई है। इस वजह से भी सरकारी पूंजी व्यय इस क्षेत्र पर 60 प्रतिशत देखा जा रहा है। इसलिए देश में रीसायकलिंग की व्यवस्था को मजबूत करना है, जिससे आयात की निर्भरता को कम किया जा सके।

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