Report: कोविड महामारी के बाद भारतीय कंपनियां मजबूत, अब विकास की रफ्तार पर ब्रेक क्यों? रिपोर्ट में पता चली वजह
नुवामा की रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के बाद भारतीय कंपनियां वित्तीय रूप से मजबूत जरूर हुई हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था में कमजोर मांग के कारण उनकी आगे की ग्रोथ सीमित हो गई है। कंपनियों के मुनाफे में सुधार मुख्य रूप से लागत कटौती और पुनर्गठन से आया, न कि मजबूत बिक्री से। मांग वृद्धि लंबे समय से 10% से नीचे बनी हुई है, जिसका कारण कमजोर निर्यात और धीमी वेतन बढ़ोतरी है।
विस्तार
कोविड-19 के बाद भारतीय कंपनियां वित्तीय रूप से पहले से अधिक मजबूत दिख रही हैं, लेकिन कमजोर मांग के कारण उन्हें नई विकास संभावनाएं खोजने में कठिनाई हो रही है। ब्रोकरेज फर्म नुवामा की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय कंपनियों में रिटर्न ऑन इन्वेस्टेड कैपिटल (I-CROIC) में जो सुधार दिखा, वह मुख्य रूप से लागत नियंत्रण और पुनर्गठन का नतीजा था, न कि मजबूत मांग वृद्धि का।
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वित्त वर्ष 2025 की भारतीय कंपनियों पूरी तरह तैयार हैं
रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड के बाद सुधार का यह दौर अब लगभग खत्म हो चुका है और पांच वर्षीय आई-सीआरओआईसी लगभग 15 प्रतिशत के आसपास स्थिर हो गया है। इसके उलट, मांग वृद्धि 10% सालाना से नीचे बनी हुई है और हाल के समय में इसमें और सुस्ती आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2025 की भारतीय कंपनियां पूरी तरह तैयार, लेकिन आगे बढ़ने का रास्ता नहीं, यह संकेत देता है कि मांग के बिना मुनाफे में टिकाऊ वृद्धि मुश्किल है।
कमजोर मांग के पीछे निर्यात और वेतन वृद्धि की सुस्ती
नुवामा के अनुसार, कमजोर मांग की मुख्य वजह नरम निर्यात और धीमी वेतन वृद्धि हैं। यह स्थिति दीर्घकालिक विकास के लिए जोखिम पैदा कर सकती है, क्योंकि आज की कमजोर मांग भविष्य में अर्थव्यवस्था की विकास क्षमता को सीमित कर सकती है।
रिपोर्ट में बताया गया कि विभिन्न क्षेत्रों में मांग का 10-वर्षीय चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) केवल लगभग 10% रही है। बीते दस वर्षों में से सात वर्षों में मांग वृद्धि 10% से नीचे रही, जबकि 2000 के दशक में कई वर्षों तक मांग करीब 20% CAGR की दर से बढ़ी थी।
गलत निवेश फैसलों से मुनाफे पर दबाव
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक के कमजोर मांग चक्र ने कंपनियों के लिए पुनर्निवेश को जोखिम भरा बना दिया है। कोविड के बाद मांग में आई अस्थायी तेजी के चलते आईटी, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, क्विक सर्विस रेस्टोरेंट (QSR) और केमिकल्स जैसे क्षेत्रों में भारी निवेश किया गया। लेकिन मांग में यह उछाल टिकाऊ साबित नहीं हुआ, जिससे इन सेक्टरों में मुनाफा तेजी से गिरा।
गलत निवेश निर्णयों और ऊंचे शेयर बाजार वैल्यूएशन के कारण कई शेयरों ने पिछले चार वर्षों में लगभग सपाट रिटर्न दिया है। यह स्थिति भी 2000 के दशक से अलग है, जब मजबूत मांग बढ़ती आपूर्ति को आसानी से समाहित कर लेती थी और कंपनियां मार्जिन बनाए रख पाती थीं।
प्रतिस्पर्धा बढ़ने से पारंपरिक बढ़त कमजोर
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तकनीक में सुधार और पूंजी तक आसान पहुंच के चलते ब्रांड और डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क जैसी पारंपरिक बढ़त कमजोर हो रही है। इसका असर एफएमसीजी और पेंट सेक्टर में पहले ही दिख चुका है, जहां ऊंचे मार्जिन बनाए रखना कठिन हो रहा है। नुवामा का मानना है कि ऊंचे वैल्यूएशन पर ऐसे सेक्टरों में मध्यम अवधि के शेयर रिटर्न कमजोर रह सकते हैं।
इन सेक्टरों में बढ़ रहा है जोखिम
नुवामा ने चेतावनी दी है कि बिजली, औद्योगिक क्षेत्र, अस्पताल, ऑटोमोबाइल और केबल व तार जैसे सेक्टरों में पुनर्निवेश का जोखिम बढ़ रहा है। बीते कुछ वर्षों में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद अब इन क्षेत्रों में सप्लाई बढ़ रही है, मांग कमजोर हो रही है और मुनाफे के मार्जिन चरम पर पहुंच चुके हैं, जिससे आगे की ग्रोथ अधिक अनिश्चित होती जा रही है।