H-1B Visa: 'अमेरिका में नवाचार-नौकरियों की रीढ़ हैं भारतीय वीजा धारक', ट्रंप के फैसले पर इंडियास्पोरा का बयान
इंडियास्पोरा ने कहा कि अगर एच-1बी वीजा की संख्या घटाई गई तो इसका असर सिर्फ कंपनियों पर नहीं पड़ेगा, बल्कि विश्वविद्यालयों और रिसर्च लैब में अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की कमी होगी। इससे उच्च शिक्षा के बजट कट सकते हैं और बड़े स्तर पर बौद्धिक नुकसान होगा।
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अमेरिका में भारतीय प्रवासी संगठन इंडियास्पोरा ने कहा कि एच-1बी वीजा सिर्फ खाली पदों को भरने का जरिया नहीं है, बल्कि यह पूरी नई आर्थिक व्यवस्था खड़ी करता है। संगठन ने कहा कि एच-1बी धारक अमेरिका में नवाचार के शिल्पकार साबित हुए हैं। उन्होंने कंपनियों की स्थापना की, जिनसे लाखों नौकरियां बनीं और अरबों डॉलर का टैक्स राजस्व अमेरिकी सरकार को मिला।
इंडियास्पोरा ने कहा कि अगर एच-1बी वीजा की संख्या घटाई गई तो इसका असर सिर्फ कंपनियों पर नहीं पड़ेगा, बल्कि विश्वविद्यालयों और रिसर्च लैब में अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की कमी होगी। इससे उच्च शिक्षा के बजट कट सकते हैं और बड़े स्तर पर बौद्धिक नुकसान होगा।
इंडियास्पोरा के मुताबिक, एच-1बी पेशेवर तकनीक, उद्यमिता और टैक्स प्रणाली को मजबूती देते हैं। स्टार्टअप भी इन्हीं पर निर्भर रहते हैं ताकि खास कौशल वाले लोगों को किफायती तरीके से नियुक्त कर सकें और बड़ी कंपनियों से मुकाबला कर सकें। वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास में भी एच-1बी वीजा धारकों की बड़ी भूमिका है, जो अमेरिका की दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि का इंजन है।
भारतीय प्रवासियों ने शुरू की 72 यूनिकॉर्न
बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की मदद से तैयार इंडियास्पोरा इम्पैक्ट रिपोर्ट 2024 के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में अमेरिका में बने यूनिकॉर्न (एक अरब डॉलर से ज्यादा मूल्य वाली कंपनियां) में भारत सबसे आगे रहा है। इन 358 यूनिकॉर्न में से 72 कंपनियां भारतीय मूल के प्रवासियों ने शुरू की हैं। इन कंपनियों की कीमत 195 अरब डॉलर से ज्यादा आंकी गई है और इनमें 55 हजार से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं।
शोध और कंप्यूटर क्षेत्र में भारतीयों का जलवा
ओपन डोर्स डाटा (2022-23) के अनुसार 2.7 लाख भारतीय छात्र अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं, जो कुल अंतरराष्ट्रीय छात्रों का 25 प्रतिशत हैं। ये छात्र हर साल करीब 10 अरब डॉलर का योगदान करते हैं और लगभग 93,000 नौकरियां भी पैदा करते हैं। इंडियास्पोरा ने यह भी बताया कि अमेरिकी शोध पत्रों में 13 प्रतिशत में भारतीय-अमेरिकी सह-लेखक होते हैं और कंप्यूटर सेक्टर के 11 फीसदी पेटेंट भारतीय नामों से जुड़े हैं।