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यादें: 'अगर चट्टान से कूदने को कहते...', नारायण मूर्ति से हुई पहली मुलाकात पर इंफोसिस के सह संस्थापक नीलेकणि
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: काव्या मिश्रा
Updated Thu, 28 Nov 2024 11:42 AM IST
सार
इन्फोसिस की नींव 1981 में एनआर नारायण मूर्ति ने रखी थी। मूर्ति के साथ नंदन नीलेकणि और क्रिस गोपालकृष्णन ने इन्फोसिस को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाया। अब नीलेकणि ने मूर्ति के साथ हुई पहली मुलाकात को याद किया।
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नंदन नीलेकणि
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
इंफोसिस के संस्थापक सदस्यों में से एक नंदन नीलेकणि ने हाल ही में उन दिनों को याद किया, जब वह पहली बार नारायण मूर्ति से मिले थे। साल 1978 में पुणे में पाटनी कंप्यूटर सिस्टम्स में नीलेकणि और मूर्ति के बीच एक अचानक मुलाकात ने एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया, जिसने इंडियन आईटी सेक्टर की दिशा बदल दी।
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मूर्ति के साथ-साथ इनका भी योगदान
बता दें, इन्फोसिस देश की दिग्गज आईटी कंपनी है। इसकी नींव 1981 में एनआर नारायण मूर्ति ने रखी थी। मूर्ति के साथ नंदन नीलेकणि और क्रिस गोपालकृष्णन ने इन्फोसिस को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाया। साल 2002 तक नारायण मूर्ति ने इसकी कमान संभाली। उनके नेतृत्व ने इन्फोसिस ग्लोबल पावरहाउस में तब्दील हुई। इसने भारत के आईटी उद्योग को आकार दिया।
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दरअसल, आईआईटी बॉम्बे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से ग्रेजुएट नंदन नीलेकणि बीमारी की वजह से पोस्ट ग्रेजुएट की प्रवेश परीक्षा नहीं दे पाए थे। जिसके बाद करियर की तलाश में उनकी नजर पाटनी कंप्यूटर सिस्टम्स पर पड़ी।
पाटनी कंप्यूटर्स के ऑफिस में हुई थी पहली मुलाकात
नीलेकणि ने लिंक्डइन के सीईओ रेयान रोसलांस्की के साथ बातचीत में याद करते हुए कहा, 'मैं ऐसे समय में आया था जब कंप्यूटिंग मेनफ्रेम से मिनी कंप्यूटर की ओर बढ़ रही थी। जब इस मिनी कंप्यूटर कंपनी के बारे में सुना तो मैंने कहा वाह यह बहुत ही जबरदस्त लग रहा है। पाटनी कंप्यूटर्स के ऑफिस में ही मेरी पहली मुलाकात मूर्ति से हुई थी, जो उस समय सॉफ्टवेयर के प्रमुख थे।'
उन्होंने आगे कहा, 'नारायण मूर्ति काफी प्रभावित करने वाले शख्स थे। वह महत्वाकांक्षी थे। उन्होंने जीवन में बड़ा लक्ष्य तय कर रखा था। उनके साथ काम करने के लिए मैं कुछ भी कर सकता था। अगर वह मुझसे चट्टान से कूदने के लिए कहते तो मैं चट्टान से भी कूद जाता। उनके साथ काम करना बहुत अच्छा अनुभव था।'
...इसी से संबंधों की शुरुआत हुई
नीलेकणि ने आगे कहा कि यह मुलाकात सिर्फ एक नौकरी के इंटरव्यू से कहीं अधिक थी। यह मुलाकात जीवन भर के संबंध की शुरुआत थी। नौकरी की पेशकश करना अपने आप में अपरंपरागत थी। उन्होंने उन दिनों को याद करते हुए कहा, 'नारायण मूर्ति ने मुझसे कुछ सवाल पूछे। सौभाग्य से मैं उन्हें हल करने में कामयाब रहा और उन्होंने मुझे नौकरी दे दी।'
हर दिन कुछ नया सीखने...
मूर्ति के इस फैसले ने न केवल नीलेकणि को कंप्यूटिंग के उभरते क्षेत्र में पैर जमाने में मदद की, बल्कि कुछ ही साल बाद उन्हें इंफोसिस के छह सह-संस्थापकों में से एक बनने के लिए भी तैयार कर दिया। नीलेकणी ने कहा कि उन्होंने कभी भी वैश्विक आईटी पावरहाउस बनाने या सार्वजनिक तकनीक पहल को आगे बढ़ाने का लक्ष्य नहीं रखा था। उन्होंने कहा, 'हर सुबह, मैं कुछ नया सीखने के लिए उत्सुक होकर उठता हूं।'