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Byju's: बायजू-बीसीसीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, पूछा- आपसी समझौते के लिए पैसा कहां से आया?
बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कुमार विवेक
Updated Wed, 25 Sep 2024 08:42 PM IST
सार
Byju's: प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने एड-टेक प्रमुख के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही बंद करते समय विवेक का प्रयोग नहीं किया। पीठ ने संकेत दिया कि वह विवाद को नए सिरे से निर्णय के लिए वापस भेज सकती है।
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सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : ANI
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिवाला अपीलीय न्यायाधिकरण एनसीएलएटी के उस फैसले पर सवाल उठाया जिसमें शिक्षा प्रौद्योगिकी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी बायजू के खिलाफ दिवाला कार्यवाही को खारिज कर दिया गया था और बीसीसीआई के साथ उसके 158.9 करोड़ रुपये के बकाये के निपटान को मंजूरी दे दी गई थी।
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प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने एड-टेक प्रमुख के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही बंद करते समय विवेक का प्रयोग नहीं किया। पीठ ने संकेत दिया कि वह विवाद को नए सिरे से निर्णय के लिए वापस भेज सकती है।
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एनसीएलएटी ने 2 अगस्त को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया निपटान को मंजूरी देने के बाद इसके खिलाफ दिवालिया कार्यवाही को रद्द करके संकटग्रस्त एड-टेक फर्म को राहत प्रदान की थी।
यह फैसला बायजू के लिए बड़ी राहत लेकर आया है, क्योंकि इससे इसके संस्थापक बायजू रवींद्रन का नियंत्रण फिर से वापस आ गया। हालांकि, यह राहत अल्पकालिक रही क्योंकि शीर्ष अदालत ने 14 अगस्त को एनसीएलएटी के फैसले को "अविवेकपूर्ण" करार दिया और दिवालियापन अपीलीय न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ एड-टेक फर्म के यूएस-आधारित लेनदार ग्लास ट्रस्ट कंपनी एलएलसी की अपील पर बायजू और अन्य को नोटिस जारी करते हुए इसके संचालन पर रोक लगा दी।
बुधवार को शीर्ष अदालत की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे, ने एनसीएलएटी के फैसले के खिलाफ अमेरिका स्थित ऋणदाता की याचिका पर सुनवाई शुरू की।
सीजेआई ने पूछा, "कंपनी 15,000 करोड़ रुपये के कर्ज में है। जब कर्ज की मात्रा इतनी बड़ी है, तो क्या एक लेनदार (बीसीसीआई) यह कह सकता है कि एक प्रमोटर मुझे भुगतान करने के लिए तैयार है।"
पीठ ने कहा, "बीसीसीआई को क्यों चुना जाए और केवल अपनी निजी संपत्ति से ही उनके साथ समझौता क्यों किया जाए?" साथ ही कहा, "एनसीएलएटी ने बिना सोचे-समझे यह सब स्वीकार कर लिया है।"
पीठ, जो गुरुवार को सुनवाई फिर से शुरू करेगी, ने संकेत दिया कि वह धन के स्रोत पर विचार करके मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए दिवालियापन अपीलीय न्यायाधिकरण को वापस भेजेगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी और एनके कौल बायजूस की ओर से पेश हुए, जबकि कपिल सिब्बल और श्याम दीवान अमेरिकी फर्म का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता बीसीसीआई की ओर से पेश हुए, जिसे पहले समझौते के तहत प्राप्त 158.9 करोड़ रुपये की राशि को एक अलग बैंक खाते में रखने के लिए कहा गया था।
शुरुआत में दीवान ने अमेरिकी कंपनी की ओर से दलील दी और एनसीएलएटी के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि बीसीसीआई द्वारा दावा की गई राशि के निपटान के बाद उसे बायजू के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही नहीं रोकनी चाहिए थी। इस बात पर जोर देते हुए कि यह “राउंड-ट्रिपिंग” का मामला है, दीवान ने कहा कि बीसीसीआई को बायजू रवींद्रन के भाई रिजु रवींद्रन द्वारा भुगतान किया गया था, और पैसा “दागी” था।
दूसरी ओर, सिंघवी और कौल ने कहा कि यह धनराशि रिजु रवींद्रन द्वारा अपनी निजी संपत्ति से भुगतान की गई थी और अमेरिकी कंपनी ने डेलावेयर कोर्ट में कार्यवाही के दौरान इसका उल्लेख किया है।
उन्होंने कहा कि मामले को बंद करने के एनसीएलएटी के आदेश में कुछ भी गलत नहीं था। विधि अधिकारी ने कहा कि बीसीसीआई को अपना दावा एक व्यक्ति की निजी संपत्ति से मिला है और क्रिकेट बोर्ड के कहने पर शुरू की गई दिवालियापन कार्यवाही को बंद करने में कुछ भी गलत नहीं है।
17 सितंबर को अमेरिकी कंपनी ने पीठ को बताया कि बायजू के खिलाफ दिवालियापन कार्यवाही से निपटने वाले अंतरिम समाधान पेशेवर (आईआरपी) द्वारा उसे गलत तरीके से ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) से हटा दिया गया था।
सिब्बल ने कहा था, "मैं गारंटर हूं, जिसकी कंपनी (बायजू) में 12,000 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी है। मेरी हिस्सेदारी 99.41 प्रतिशत है और आईआरपी ने इसे घटाकर शून्य कर दिया है।" उन्होंने कहा कि जिनके पास 0.59 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, अब उनके पास 100 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
उन्होंने कहा था, "मैं नहीं चाहता कि आईआरपी आगे बढ़े।" अमेरिकी कंपनी ने कहा कि एनसीएलएटी ने इस आधार पर कि याचिकाएं शीर्ष अदालत में लंबित हैं, आईआरपी पंकज श्रीवास्तव के खिलाफ उसकी नई याचिका पर कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया।