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US Tariff: टैरिफ की वजह से अप्रैल महीने में लगी महंगाई की जबरदस्त मार, अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट में खुलासा
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वॉशिंगटन
Published by: पवन पांडेय
Updated Tue, 13 May 2025 11:13 AM IST
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सार
अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ से लगाए गए टैरिफ के कारण अमेरिका में महंगाई की जबरदस्त मार पड़ी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल में उपभोक्ता कीमतों में पिछले वर्ष की तुलना में 2.4% की बढ़ोतरी होने का अनुमान है, जो मार्च में भी समान है और वर्ष की शुरुआत में 3% से कम है।

सांकेतिक तस्वीर
- फोटो : ANI

विस्तार
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से व्यापक टैरिफ लागू किए जाने के कारण पिछले महीने महंगाई में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है, अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि आने वाले महीनों में यह प्रवृत्ति और अधिक स्पष्ट होगी। फैक्टसेट के अनुसार, अप्रैल में उपभोक्ता कीमतों में पिछले वर्ष की तुलना में 2.4% की बढ़ोतरी होने का अनुमान है, जो मार्च में भी समान है और वर्ष की शुरुआत में 3% से कम है। फिर भी, मासिक आधार पर, अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि मार्च से अप्रैल तक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 0.3% की बढ़ोतरी हुई है, यह एक ऐसी गति है जो मुद्रास्फीति को और खराब कर देगी, क्योंकि पिछले महीने लगभग पांच वर्षों में पहली बार इसमें गिरावट आई थी।
यह भी पढ़ें - India-UK FTA: मुक्त व्यापार समझौते के बाद चाइनीज माल की एंट्री रोकने की चुनौती, घरेलू कंटेंट पर फोकस
किन वस्तुओं के दाम बढ़े?
रिपोर्ट में बताया गया है कि कपड़े, जूते, फर्नीचर, खाने-पीने का सामान, और कारों के दाम बढ़े हैं। इसकी वजह यह है कि फरवरी से मैक्सिको और कनाडा से आने वाले कई सामानों पर टैरिफ लग चुके हैं और अब चीन से भी बहुत सारे उत्पादों पर टैक्स लगाया गया है। उदाहरण के तौर पर कार खरीदने की होड़ इसलिए बढ़ी क्योंकि लोग टैरिफ लागू होने से पहले कार खरीद लेना चाहते थे। इससे कार की बिक्री बढ़ी और डीलरों को छूट देने की जरूरत नहीं पड़ी, जिससे कीमतें बढ़ीं। 'किराना और ग्रॉसरी' की चीजों के दाम भी बीते तीन महीनों में दो बार तेजी से बढ़े हैं।
कंपनियों का क्या कहना है?
कई कंपनियों ने कहा है कि वे अभी यह तय नहीं कर पा रही हैं कि टैरिफ के कारण बढ़ी लागत को उपभोक्ताओं पर कितना डाला जाए। यानी वे धीरे-धीरे कीमतें बढ़ा रही हैं ताकि मांग पर असर न पड़े। लॉरा रोस्नर-वारबर्टन, जो मैक्रो पॉलिसी पर्सपेक्टिव्स की सह-संस्थापक हैं, कहती हैं कि कंपनियां धीरे-धीरे कीमतें बढ़ा रही हैं ताकि ग्राहक चौंके नहीं।
चीन और अमेरिका के बीच समझौता
ट्रंप प्रशासन ने सोमवार को कहा कि चीन के साथ एक समझौता हुआ है, जिसमें चीन पर लगाए गए 145% के टैरिफ को घटाकर 30% कर दिया गया है। चीन ने भी अमेरिकी सामान पर लगाई गई ड्यूटी घटा दी है। लेकिन यदि 90 दिनों में दोनों देश कोई ठोस समझौता नहीं कर पाए, तो फिर से 24% तक के नए टैरिफ जुड़ सकते हैं। हालांकि, इसके बावजूद भी अमेरिकी टैरिफ औसतन 18% तक रहेंगे, जो कि 1934 के बाद सबसे ज्यादा हैं।
यह भी पढ़ें - US Market: अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर में कम हो रही तल्खी, रिश्तों में नई शुरुआत से शेयर बाजार में उछाल
फेडरल रिजर्व की मुश्किलें
महंगाई और बेरोजगारी दोनों एक साथ बढ़ रहे हैं, जिससे अमेरिकी केंद्रीय बैंक मुश्किल में है। आम तौर पर जब बेरोजगारी बढ़ती है, तो फेडरल रिजर्व ब्याज दरें घटाता है ताकि लोग ज्यादा खर्च करें और नौकरियां बढ़ें। लेकिन जब महंगाई बढ़ती है, तो ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं।
क्या है राष्ट्रपति ट्रंप का नजरिया?
राष्ट्रपति ट्रंप बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि 'कोई महंगाई नहीं है। उन्होंने सोशल मीडिया पर भी कहा कि पेट्रोल की कीमत $1.98 प्रति गैलन है। लेकिन एएए संस्था का कहना है कि पेट्रोल की औसत कीमत $3.14 प्रति गैलन है, यानी ट्रंप का दावा सही नहीं है। ट्रंप का मानना है कि टैरिफ से सरकार की आमदनी बढ़ेगी और इससे बजट घाटा कम होगा। उन्होंने यहां तक कहा है कि टैरिफ सबसे खूबसूरत शब्द है, यानी उन्हें टैरिफ बहुत पसंद है।
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किन वस्तुओं के दाम बढ़े?
रिपोर्ट में बताया गया है कि कपड़े, जूते, फर्नीचर, खाने-पीने का सामान, और कारों के दाम बढ़े हैं। इसकी वजह यह है कि फरवरी से मैक्सिको और कनाडा से आने वाले कई सामानों पर टैरिफ लग चुके हैं और अब चीन से भी बहुत सारे उत्पादों पर टैक्स लगाया गया है। उदाहरण के तौर पर कार खरीदने की होड़ इसलिए बढ़ी क्योंकि लोग टैरिफ लागू होने से पहले कार खरीद लेना चाहते थे। इससे कार की बिक्री बढ़ी और डीलरों को छूट देने की जरूरत नहीं पड़ी, जिससे कीमतें बढ़ीं। 'किराना और ग्रॉसरी' की चीजों के दाम भी बीते तीन महीनों में दो बार तेजी से बढ़े हैं।
कंपनियों का क्या कहना है?
कई कंपनियों ने कहा है कि वे अभी यह तय नहीं कर पा रही हैं कि टैरिफ के कारण बढ़ी लागत को उपभोक्ताओं पर कितना डाला जाए। यानी वे धीरे-धीरे कीमतें बढ़ा रही हैं ताकि मांग पर असर न पड़े। लॉरा रोस्नर-वारबर्टन, जो मैक्रो पॉलिसी पर्सपेक्टिव्स की सह-संस्थापक हैं, कहती हैं कि कंपनियां धीरे-धीरे कीमतें बढ़ा रही हैं ताकि ग्राहक चौंके नहीं।
चीन और अमेरिका के बीच समझौता
ट्रंप प्रशासन ने सोमवार को कहा कि चीन के साथ एक समझौता हुआ है, जिसमें चीन पर लगाए गए 145% के टैरिफ को घटाकर 30% कर दिया गया है। चीन ने भी अमेरिकी सामान पर लगाई गई ड्यूटी घटा दी है। लेकिन यदि 90 दिनों में दोनों देश कोई ठोस समझौता नहीं कर पाए, तो फिर से 24% तक के नए टैरिफ जुड़ सकते हैं। हालांकि, इसके बावजूद भी अमेरिकी टैरिफ औसतन 18% तक रहेंगे, जो कि 1934 के बाद सबसे ज्यादा हैं।
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फेडरल रिजर्व की मुश्किलें
महंगाई और बेरोजगारी दोनों एक साथ बढ़ रहे हैं, जिससे अमेरिकी केंद्रीय बैंक मुश्किल में है। आम तौर पर जब बेरोजगारी बढ़ती है, तो फेडरल रिजर्व ब्याज दरें घटाता है ताकि लोग ज्यादा खर्च करें और नौकरियां बढ़ें। लेकिन जब महंगाई बढ़ती है, तो ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं।
क्या है राष्ट्रपति ट्रंप का नजरिया?
राष्ट्रपति ट्रंप बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि 'कोई महंगाई नहीं है। उन्होंने सोशल मीडिया पर भी कहा कि पेट्रोल की कीमत $1.98 प्रति गैलन है। लेकिन एएए संस्था का कहना है कि पेट्रोल की औसत कीमत $3.14 प्रति गैलन है, यानी ट्रंप का दावा सही नहीं है। ट्रंप का मानना है कि टैरिफ से सरकार की आमदनी बढ़ेगी और इससे बजट घाटा कम होगा। उन्होंने यहां तक कहा है कि टैरिफ सबसे खूबसूरत शब्द है, यानी उन्हें टैरिफ बहुत पसंद है।
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