Rupee vs Dollar: भारत-अमेरिका व्यापार समझौता, बाहर जाता निवेश..क्यों पहली बार डॉलर के मुकाबले 90 के पार रुपया?
भारतीय रुपया लगातार दबाव में है और बुधवार को पहली बार 90 रुपये प्रति डॉलर के नीचे चला गया। आठ महीने से जारी गिरावट कई आर्थिक कारणों से और गहरी हो गई है। आइए जानते हैं कि रुपये में जारी गिरावट के मुख्य कारणों के बारे में।
विस्तार
भारतीय रुपया बुधवार को डॉलर के मुकाबले 90 के स्तर को पार कर गया। यह गिरावट पिछले आठ महीनों से जारी है। इसे वैश्विक व्यापार भुगतान, निवेश संबंधी डॉलर आउटफ्लो और कंपनियों द्वारा बाजरा में संभावित जोखिम से बचने के लिए उठाए जा रहे कदमों ने और गहरा कर दिया।
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रुपया ने इस साल एशिया में किया सबसे खराब प्रदर्शन
रुपया इस साल एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में शामिल हो गया है। डॉलर के मुकाबले रुपये में इस वर्ष अब तक 5% की गिरावट दर्ज की गई है। विश्लेषकों के मुताबिक, भारतीय उत्पादों पर अमेरिका की ओर से 50% तक बढ़ाए गए आयात शुल्क ने भारत के सबसे बड़े निर्यात बाजार को झटका दिया है। निर्यात दबाव और विदेशी निवेशकों की कमजोर दिलचस्पी ने भारतीय शेयर बाजार की आकर्षक बढ़त को भी कम कर दिया है।
मुद्रा में तेजी से गिरावट का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रुपये को 85 से 90 के स्तर तक पहुंचने में एक साल से भी कम समय लगा। यह उस अवधि का लगभग आधा है, जितने समय में यह 80 से 85 के स्तर तक गिरा था।
रुपये में गिरावट के ये मुख्य कारण
विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार से विश्वास घटा
भारत इस वर्ष दुनिया के उन बाजारों में शामिल रहा है, जहां विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) से सबसे अधिक निकासी हुई है। विदेशी निवेशकों ने इस साल अब तक भारतीय शेयरों में करीब 17 अरब डॉलर की शुद्ध बिकवाली की है, जिससे बाजार पर भारी दबाव बना हुआ है। पोर्टफोलियो निवेश की कमजोरी के साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में भी सुस्ती देखने को मिली है, जिसने स्थिति को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
हालांकि भारत में सकल निवेश प्रवाह मजबूत बना हुआ है और सितंबर में यह बढ़कर 6.6 अरब डॉलर तक पहुंचा, लेकिन तेजी से बढ़ रहे आईपीओ बाजार से बड़े पैमाने पर निकासी ने नेट इनफ्लो को कमजोर कर दिया है। प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल फर्मों द्वारा पुराने निवेशों की बुकिंग के चलते सितंबर में लगातार दूसरे महीने नेट FDI नकारात्मक रहा। आरबीआई ने अपने नवंबर बुलेटिन में बताया कि आउटवर्ड FDI और निवेशोx की वापसी में बढ़ोतरी से यह स्थिति और गहरी हुई है।
माल व्यापार घाटा रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा
उधर, अमेरिका के भारी शुल्क और सोने के आयात में तेज उछाल ने अक्तूबर में भारत का माल व्यापार घाटा रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा दिया। इसी दौरान भारतीय कंपनियों के विदेशी कर्ज और एनआरआई जमाओं से मिलने वाले डॉलर प्रवाह भी धीमे पड़ गए हैं।
अमेरिकी टैरिफ के बीच निर्यातक दिखा रहे सतर्कता
बाजार भागीदारों का कहना है कि रुपये की हर गिरावट, जिसमें बुधवार को 90 के स्तर के टूटने जैसी घटनाएं भी शामिल हैं ने आयातकों की तरफ से नई डॉलर मांग को जन्म दिया है। वहीं, निर्यातक ऊंचे रेट की उम्मीद में अपने डॉलर बेचने से हिचक रहे हैं। पूंजी प्रवाह कमजोर रहने से यह असंतुलन रुपये को और अधिक असुरक्षित छोड़ रहा है।
विशेषज्ञों की राय
एचएसबीसी के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि अगर रुपये को अपने हाल पर छोड़ दिया जाए, तो यह अर्थव्यवस्था के लिए शॉक एब्जॉर्बर की तरह काम करेगा और बाहरी वित्तीय दबाव को संतुलित करने में मदद करेगा। उनके मुताबिक, ऊंचे शुल्क के दौर में धीरे-धीरे कमजोर होता रुपया सबसे बेहतर स्वाभाविक समायोजन है।
भारत-अमेरिकी व्यापार वार्ता में देरी को लेकर अनिश्चितता का माहौल
भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताओं में लंबे समय से चल रही अनिश्चितता ने विदेशी मुद्रा हेजिंग परिदृश्य को भी प्रभावित किया है। आयातक हेजिंग को बढ़ा रहे हैं, जबकि निर्यातकों में झिझक बनी हुई है, जिससे दबाव सीधे आरबीआई पर आ रहा है।
आरबीआई की रुपये पर दबाव कम करने की कोशिशें जारी
हालांकि आरबीआई बीच-बीच में गिरावट की रफ्तार को रोकने के लिए बाजार में दखल देता रहा है, लेकिन बैंकरों का कहना है कि आयातकों की हेजिंग और लगातार हो रहे डॉलर आउटफ्लो के कारण मांग इतनी अधिक है कि मुद्रा पर दबाव बना हुआ है। केंद्रीय बैंक की कोशिशें इसके विदेशी मुद्रा भंडार में कमी और फॉरवर्ड मार्केट में डॉलर की छोटी स्थिति के 5 महीने के उच्च स्तर 63.4 अरब डॉलर तक पहुंचने में झलकती हैं। हेजिंग एक वित्तीय रणनीति है, जिसका उपयोग निवेशक बाजeर की अस्थिरता से होने वाले संभावित नुकसान को कम करने के लिए करते हैं।