गदगद पीयू: इस साल यूनिवर्सिटी की झोली में आए 10 पेटेंट, आठ और आने की संभावना, रैंकिंग में भी आएगा उछाल
पीयू के फार्मेसी विभाग की चेयरपर्सन प्रो. इंदु पाल कौर को पांच पेटेंट मिले हैं, जो जीवन को आसान बनाएंगे। इनके अलावा केमिकल इंजीनियरिंग विभाग की प्रो. सीमा कपूर व पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज की प्रो. उमा बत्रा ने संयुक्त शोध करके पेटेंट पाया है।

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चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी इस समय गदगद है। इसका कारण यह है कि पीयू की झोली में इस साल अब तक 10 पेटेंट आ चुके हैं। आठ और पेटेंट आने की पूरी संभावनाएं हैं। पेटेंट कार्यालय में इनकी जांच चल रही है। इसके जरिए पीयू की रैंकिंग में उछाल आएगा। साथ ही नए शोधार्थी प्रेरित होंगे और वह भी गुणवत्तायुक्त शोध की ओर बढ़ सकेंगे। पेटेंट की संख्या अचानक बढ़ने का कारण पेटेंट कार्यालय की ओर से शोध पत्रों की जांच बढ़ाना माना जा रहा है।

पीयू के पिछले साल के आंकड़ों पर गौर करें तो 12 पेटेंट प्रकाशित हुए थे और पांच पेटेंट भारत सरकार की ओर से मिले थे। जो पेटेंट मिले हैं, उन पर शोध पहले किया गया था और पेटेंट के लिए आवेदन भी काफी पहले हुआ था। क्योंकि एक पेटेंट ग्रांट होने में दो से पांच साल तक का समय लग जाता है। हालांकि कुछ पेटेंट एक साल में भी मिल जाते हैं।
इसी तरह 2018-19 में सात पेटेंट प्रकाशित हुए थे और चार पेटेंट पीयू को मिले थे। वर्ष 2017-18 में दो पेटेंट प्रकाशित हुए और एक पेटेंट ग्रांट हुआ था। फार्मेसी विभाग ने पिछले तीन वर्षों में छह पेटेंट प्रकाशित किए और आठ पेटेंट पीयू को मिले। इंजीनियरिंग विभाग यहां का सबसे बड़ा विभाग है। यहां शिक्षकों की संख्या लगभग 200 है। इस विभाग से वर्ष 2017 से लेकर वर्ष 2019-20 में दो पेटेंट प्रकाशित हुए, लेकिन एक पेटेंट इन तीन वर्षों में नहीं मिला।
इसी तरह डेंटल व मेडिकल विभाग में भी तीन वर्षों में कोई पेटेंट प्रकाशित नहीं किया गया और न ही कोई पेटेंट मिला जबकि मेडिकल जगत के संस्थान पीजीआई में काफी पेटेंट प्रकाशित हुए और ग्रांट भी हुए। यह आंकड़ा पीयू की आईक्यूएसी सेल ने निरफ रैंक के लिए भी दर्ज कराया है।
इस साल पीयू के हाथ लगे ये पेटेंट
पीयू के फार्मेसी विभाग की चेयरपर्सन प्रो. इंदु पाल कौर को पांच पेटेंट मिले हैं, जो जीवन को आसान बनाएंगे। इनके अलावा केमिकल इंजीनियरिंग विभाग की प्रो. सीमा कपूर व पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज की प्रो. उमा बत्रा ने संयुक्त शोध करके पेटेंट पाया है। पंजाब यूनिवर्सिटी और पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसरों को बोन ग्राफ्ट विकसित करने के लिए पेटेंट दिया गया है। पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज, चंडीगढ़ की प्रोफेसर उमा बत्रा ने कहा, "हमने रासायनिक प्रतिक्रिया और बिना किसी प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करके बोन ग्राफ्ट बनाया है। यह पूरी तरह से सिंथेटिक है।
कुछ दिनों पहले यूआईईटी के डॉ. प्रशांत जिंदल व उनकी टीम को पेटेंट मिला है। कुछ समय पहले रसायन विज्ञान विभाग की डॉ. गुरप्रीत कौर को पेटेंट हासिल हुआ। कुछ अन्य शिक्षक भी इस लाइन में हैं, जिनके पेटेंट की रिपोर्ट आना बाकी है। बताया जाता है कि नैक रैंकिंग का समय नजदीक आने के कारण भी पेटेंट पीयू के हाथ लग रहे हैं।
पिछले वर्षों में रिसर्च प्रोजेक्ट खूब मिले, पर पेटेंट कम रहे
पिछले वर्षों के आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2019-20 में पीयू को 163 प्रोजेक्ट मिले। इन पर 28.67 करोड़ रुपये खर्च हुए। 25 एजेंसियों ने फंड दिया था। इसी तरह वर्ष 2018-19 में 148 रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए 19.43 करोड़ रुपये पीयू के हाथ लगे। इसमें फंडिड एजेंसियां 28 थीं। वर्ष 2017-18 में 138 प्रोजेक्ट थे, जिन पर 25.42 करोड़ रुपये व्यय हुआ। इस साल भी शोध प्रस्ताव 150 से अधिक चल रहे हैं। जानकारों का कहना है कि जिस तरह रिसर्च प्रोजेक्ट मिले हैं उस हिसाब से पेटेंट की संख्या कम रही।
क्या है पेटेंट
ऐसे मिलता है पेटेंट
भारतीय पेटेंट कार्यालय में अपने उत्पाद या तकनीकी पर पेटेंट लेने के लिए आवेदन किया जाता है और साथ ही अपनी नई खोज का ब्योरा देना होता है। उसके बाद पेटेंट कार्यालय उसकी जांच करता है और अगर वह उत्पाद या तकनीकी या विचार नया है तो पेटेंट का आदेश जारी कर दिया जाता है। मालूम हो कि किसी उत्पाद या सेवा के लिए लिया गया पेटेंट सिर्फ उसी देश में लागू होगा, जहां पर पेटेंट करवाया गया है।
पीयू को इस बार 10 पेटेंट हासिल हुए हैं। कोरोना काल में भले ही पीयू बंद रहा हो, लेकिन यहां के शोधकर्ताओं ने काफी मेहनत की है। अभी कुछ और पेपर जर्नल में प्रकाशित होने हैं। शोध पर पीयू तेजी से कार्य कर रही है। -रेनुका बी सलवान, निदेशक जनसंपर्क कार्यालय पीयू