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Haryana: 25 सप्ताह के गर्भ को खत्म करने की अनुमति देने से HC का इनकार, कहा-भ्रूण के जीवित पैदा होने की संभावना

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: चंडीगढ़ ब्यूरो Updated Wed, 17 Jul 2024 08:27 PM IST
सार

याचिका 21 साल की दुष्कर्म पीड़िता ने दायर की थी। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि याची बच्चे को जन्म देती है तो इसका कोई मेडिकल शुल्क नहीं लिया जाएगा। बच्चे को हिसार की चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को सौंप दिया जाएगा। याची बच्चे को लेकर नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट देगी ताकि बच्चे को गोद दिया जा सके।

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Possibility of fetus being born alive, High Court refuses permission for abortion.
पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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दुष्कर्म पीड़िता की 25 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने की मांग को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने इस आधार पर ठुकरा दिया है कि यदि इसकी अनुमति दी गई तो भ्रूण जीवित पैदा हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो इसकी बहुत अधिक संभावना है कि उसे जीवन अपंगता के साथ बिताना पड़े, वह भी तब जब उसकी कोई गलती नहीं थी।
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हाईकोर्ट के समक्ष हिसार निवासी दुष्कर्म पीड़िता ने याचिका दाखिल करते हुए बताया था कि उसके साथ उसके पड़ोसी ने दुष्कर्म किया था। वह उस पर लगातार दबाव बना रहा था और इसी के चलते याची गर्भवती हो गई। इसके बाद उसने अपने परिजनों को इस बारे में जानकारी दी। हिसार पुलिस ने 21 जून को इस मामले में एफआईआर दर्ज की थी। हाईकोर्ट ने इसके बाद मेडिकल बोर्ड के गठन का आदेश दिया था। 
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मेडिकल बोर्ड ने कहा कि यदि गर्भपात का प्रयास किया गया तो भ्रूण के जीवित पैदा होने की संभावना 50-70 प्रतिशत के बीच होगी। याची के साथ जो गलत हुआ है, उसे बदला तो नहीं जा सकता। लेकिन सुधारात्मक उपाय किए जा सकते हैं।

हाईकोर्ट ने गर्भपात की अनुमति देने से इनकार करते हुए कहा कि याची यदि चाहे तो गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 के तहत पुन: जांच के लिए मेडिकल बोर्ड के समक्ष उपस्थित हो सकती है। यदि पीजीआई का मेडिकल बोर्ड गर्भ के चिकित्सीय समापन के पक्ष में राय देता है, तो गर्भ के समापन की अपेक्षित प्रक्रिया कानून के अनुसार की जा सकती है।

हाईकोर्ट ने कहा कि गर्भावस्था दुष्कर्म का परिणाम है और बच्चा होने पर पीड़िता आघात के साथ जीएगी। याची केवल 21 साल की है और उसका पूरा करियर सामने है, बच्चा उसके भविष्य की संभावनाओं को भी नुकसान पहुंचाएगा। आवश्यक महत्वपूर्ण कारक चिकित्सा दृष्टिकोण है, जो न केवल मां और भ्रूण के स्वास्थ्य को ध्यान में रखता हैं बल्कि भ्रूण के जीवित रहने की व्यवहार्यता को भी ध्यान में रखता है।

हाईकोर्ट ने गर्भपात की अनुमति नहीं दी है।
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