{"_id":"6946fe14137a50e3c4027f52","slug":"steering-became-a-way-out-of-domestic-violence-earning-money-and-respect-chandigarh-news-c-16-pkl1079-902103-2025-12-21","type":"story","status":"publish","title_hn":"Chandigarh News: घरेलु हिंसा से बाहर निकलने का रास्ता बना स्टीयरिंग, पैसे के साथ सम्मान भी मिला","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Chandigarh News: घरेलु हिंसा से बाहर निकलने का रास्ता बना स्टीयरिंग, पैसे के साथ सम्मान भी मिला
विज्ञापन
विज्ञापन
चंडीगढ़। पंजाब यूनिवर्सिटी की रिसर्च स्कॉलर सोनिया कुमारी ने दिल्ली-एनसीआर की महिला कैब ड्राइवरों पर एक रोचक और आंखें खोलने वाला शोध किया है। इस रिसर्च में सोनिया ने 120 महिला कैब ड्राइवरों से बातचीत की और उनके जीवन, संघर्ष और काम के अनुभवों को करीब से समझा।
शोध में सामने आया कि महिला कैब ड्राइवर बनने के पीछे अलग-अलग वजहें हैं। कुछ महिलाएं अपने शौक से इस पेशे में आईं, तो कई ने आर्थिक मजबूरी के कारण ड्राइविंग को अपना करियर बनाया।
खास बात यह रही कि करीब 60 प्रतिशत महिलाओं के लिए यह उनकी पहली नौकरी थी। 40 प्रतिशत महिलाएं पहले घरेलू कामगार, केयर टेकर या चपरासी जैसी डी-क्लास नौकरियों में काम कर चुकी थीं। महिलाओं ने बताया कि पहले की नौकरियों में उन्हें न तो सही सम्मान मिलता था और न ही पर्याप्त कमाई। कैब ड्राइवर बनने के बाद उन्हें पैसों के साथ-साथ सम्मान भी मिला, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा।
सोनिया की रिसर्च में एक और अहम पहलू सामने आया। इन महिला ड्राइवरों में तलाकशुदा, विधवा और वे शादीशुदा महिलाएं भी शामिल हैं, जो घरेलू हिंसा का शिकार रहीं और अपने ससुराल से अलग रह रही हैं। ऐसे में यह पेशा उनके लिए नई जिंदगी की शुरुआत बना। यात्रियों ने बताया कि महिला ड्राइवर बहुत प्यार और शालीनता से बात करती हैं, जिससे सफर ज्यादा सुरक्षित और सहज लगता है।
पहले भी कर चुकी हैं अनोखा शोध
इससे पहले सोनिया कुमारी ने एमफिल के दौरान चंडीगढ़ की 108 महिला कंडक्टरों पर भी रिसर्च किया था। इसमें सामने आया कि 45 प्रतिशत महिलाएं ग्रेजुएट थी और 35 प्रतिशत पोस्ट ग्रेजुएट थीं। शुरुआत में न तो महिलाओं ने खुद सोचा था कि वह कंडक्टर बन सकती हैं और न ही परिवार इसके लिए तैयार था। नौकरी जॉइन करने के बाद भी कई बार सवारियां महिला कंडक्टर को देखकर हैरान हो जाती थीं और टिकट लेने में आनाकानी करती थीं।
हालांकि, बस सवारियों से बातचीत में यह भी सामने आया कि महिला कंडक्टर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा ईमानदार मानी गईं। वे यात्रियों का बकाया खुद लौटाती थीं और बहुत प्यार से लोगों से पेश आती थीं। सोनिया का यह शोध दिखाता है कि मौका मिले तो महिलाएं हर क्षेत्र में नई पहचान बना सकती हैं।
Trending Videos
शोध में सामने आया कि महिला कैब ड्राइवर बनने के पीछे अलग-अलग वजहें हैं। कुछ महिलाएं अपने शौक से इस पेशे में आईं, तो कई ने आर्थिक मजबूरी के कारण ड्राइविंग को अपना करियर बनाया।
विज्ञापन
विज्ञापन
खास बात यह रही कि करीब 60 प्रतिशत महिलाओं के लिए यह उनकी पहली नौकरी थी। 40 प्रतिशत महिलाएं पहले घरेलू कामगार, केयर टेकर या चपरासी जैसी डी-क्लास नौकरियों में काम कर चुकी थीं। महिलाओं ने बताया कि पहले की नौकरियों में उन्हें न तो सही सम्मान मिलता था और न ही पर्याप्त कमाई। कैब ड्राइवर बनने के बाद उन्हें पैसों के साथ-साथ सम्मान भी मिला, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा।
सोनिया की रिसर्च में एक और अहम पहलू सामने आया। इन महिला ड्राइवरों में तलाकशुदा, विधवा और वे शादीशुदा महिलाएं भी शामिल हैं, जो घरेलू हिंसा का शिकार रहीं और अपने ससुराल से अलग रह रही हैं। ऐसे में यह पेशा उनके लिए नई जिंदगी की शुरुआत बना। यात्रियों ने बताया कि महिला ड्राइवर बहुत प्यार और शालीनता से बात करती हैं, जिससे सफर ज्यादा सुरक्षित और सहज लगता है।
पहले भी कर चुकी हैं अनोखा शोध
इससे पहले सोनिया कुमारी ने एमफिल के दौरान चंडीगढ़ की 108 महिला कंडक्टरों पर भी रिसर्च किया था। इसमें सामने आया कि 45 प्रतिशत महिलाएं ग्रेजुएट थी और 35 प्रतिशत पोस्ट ग्रेजुएट थीं। शुरुआत में न तो महिलाओं ने खुद सोचा था कि वह कंडक्टर बन सकती हैं और न ही परिवार इसके लिए तैयार था। नौकरी जॉइन करने के बाद भी कई बार सवारियां महिला कंडक्टर को देखकर हैरान हो जाती थीं और टिकट लेने में आनाकानी करती थीं।
हालांकि, बस सवारियों से बातचीत में यह भी सामने आया कि महिला कंडक्टर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा ईमानदार मानी गईं। वे यात्रियों का बकाया खुद लौटाती थीं और बहुत प्यार से लोगों से पेश आती थीं। सोनिया का यह शोध दिखाता है कि मौका मिले तो महिलाएं हर क्षेत्र में नई पहचान बना सकती हैं।