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छत्तीसगढ़: 'भाजपा सरकार के दो साल, जनता के लिए निराशा के साल', पूर्व मंत्री अमरजीत भगत का हमला
अमर उजाला नेटवर्क, अंबिकापुर
Published by: विजय पुंडीर
Updated Thu, 04 Dec 2025 05:04 PM IST
सार
भगत ने आगे कहा कि सरगुजा जिले के मैनपाट में बिना ग्राम सभा के प्रस्ताव लिए मैनपाट के कई ग्रामों में माइनिंग की तैयारी हो रही है। जिससे स्थानीय लोगों में असंतोष देखने को मिल रहा है।अगर मैनपाट में माइनिंग हुआ तो पर्यटन की संभावना समाप्त हो जाएगी।
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पूर्व मंत्री अमरजीत भगत
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री अमरजीत भगत ने अंबिकापुर बौरीपारा स्थित अपने निवास में पत्रकारों से वार्ता करते हुए राज्य सरकार पर जमकर हमला बोला। भगत ने कहा कि भाजपा की विष्णु देव सरकार 2 वर्ष पूर्ण होने पर प्रदेश भर में बड़ा उत्सव मानने की तैयारी में हैं। लेकिन जनता किस चीज को लेकर खुशियां मनाए कि कांग्रेस सरकार की 400 यूनिट बिजली बिल हाफ योजना को बंद कर दिया गया, काफी विरोध के बाद 200 यूनिट तक ही हाफ योजना का लाभ अब जनता को मिलेगा। किसानों का धान खरीदी के लिए पंजीयन नहीं हो पा रहा है, प्रदेश भर में हजारों किसानों का रकबा काट दिया गया है।
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भगत ने आगे कहा कि सरगुजा जिले के मैनपाट में बिना ग्राम सभा के प्रस्ताव लिए मैनपाट के कई ग्रामों में माइनिंग की तैयारी हो रही है। जिससे स्थानीय लोगों में असंतोष देखने को मिल रहा है।अगर मैनपाट में माइनिंग हुआ तो पर्यटन की संभावना समाप्त हो जाएगी।
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सरकार पर्यटन और माइनिंग को एक साथ बढ़ावा देने की बात कर रही है, जो सरासर लोगों के साथ धोखा है। या तो पर्यटन बढ़ेगा या माइनिंग को बढ़ावा मिलेगा। शासन प्रशासन राजस्व बढ़ाने के लिए इस प्रकार का कार्य कर रही है, विकास के नाम पर धूल प्रदूषण फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका दिखा रही है। घुनघुट्टा नदी एवं मछली नदी के साथ अन्य जल स्त्रोत को क्षति पहुंचाने में कोई भी कसर सरकार नहीं छोड़ रही है, पर्यावरण विभाग द्वारा इन बातों का ख्याल नहीं रखा जा रहा है।
भगत ने कहा कि धान खरीदी के लिए किसानों का अब तक पंजीयन नहीं हो पाया है, रकबा में कटौती से किसान परेशान है। किसानों को धान बेचने में काफी परेशानी हो रही है। 15 नवंबर से धान खरीदी की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन अभी तक पंजीयन एग्रीस्टैक का काम पूर्ण नहीं हो सका है। वन भूमि पट्टा धारियों के लिए भी धान खरीदी की व्यवस्था नहीं हो सका है। जिससे वनांचल में रहने वाले आदिवासी एवं अन्य परंपरागत लोगों को सामना करना पड़ रहा है।