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Polygamy Law: असम में बहुविवाह विरोधी कानून पर बहस और विवाद
सार
इस नए कानून में दोषियों को दस साल तक की सजा हो सकती है। उनके अलावा माता-पिता, पुरोहित औऱ काजियों समेत विवाह में मदद करने वालों को भी दो साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
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असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा
- फोटो : ANI
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विस्तार
असम सरकार ने राज्य में एक से ज्यादा विवाह पर पाबंदी लगाने वाला बहुविवाह विरोधी विधेयक पारित कर दिया है। इसके तहत अब ऐला करना संज्ञेय अपराध माना जाएगा और दोषियों को दस साल तक की सजा हो सकती है।
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हालांकि, आदिवासी तबके और कुछ अन्य समुदायों को इससे छूट दी गई है। लेकिन इस कानून पर विवाद भी शुरू हो गया है। आरोप उठ रहे हैं कि सरकार ने एक खास समुदाय को निशाना बनाने के लिए ही यह कानून बनाया है।
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वैसे, असम सरकार बीते करीब दो साल से बहुविवाह पर रोक लगाने की बात कह रही थी। सरकार ने उस समय गौहाटी हाईकोर्ट की रिटायर्ड जज रूमी फुकन की अध्यक्षता में बहुविवाह प्रथा पर रोक लगाने संबंधी कानून बनाने के लिए राज्य सरकार के अधिकारों की समीक्षा करने के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया था। लेकिन वर्ष 2024 में उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता पारित होने के बाद सरकार ने समिति के कामकाज पर रोक लगा दी थी।
उस समय मुख्यमंत्री ने कहा था कि सरकार समान नागरिक संहिता के अनुरूप ही बहुविवाह प्रथा पर रोक लगाने संबंधी कानून बनाने का प्रयास करेगी।
इससे पहले मंत्रिमंडल ने इसे 10 नवंबर को ही हरी झंडी दिखा दी थी। उसके बाद इसे 25 नवंबर को विधानसबा के शीतकालीन अधिवेशन में इसे पेश किया गया था। वहां दो दिनों की बहस के बाद इसे पारित कर दिया गया।
इस नए कानून में दोषियों को दस साल तक की सजा हो सकती है। उनके अलावा माता-पिता, पुरोहित औऱ काजियों समेत विवाह में मदद करने वालों को भी दो साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
इसके तहत पहली पत्नी से तलाक के बिना कोई भी व्यक्ति दूसरी शादी नहीं कर सकता। दूसरी शादी के लिए पहली शादी की बात छिपाने को भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
इसमें कहा गया है कि अपनी पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी करने वाले को सात साल तक की सजा हो सकती है। लेकिन अगर उसने जानबूझ कर पहली शादी की बात चिपाई हो तो यह सजा बढ़ कर दस साल तक की हो जाएगी।
लेकिन राइजोर दल और आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) समेत विपक्षी दलों का सवाल है कि भारतीय न्याय संहिता के तहत जब बहुविवाह पर पहले से ही प्रतिबंध हैं तो असम में इसके लिए नया कानून बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?
लेकिन मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का कहना है कि यह कानून महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया है। उनको बहुविवाह की सदियों पुरानी परंपरा से बचाने के लिए यह कानून जरूरी था।
उनकी दलील है कि न्यायिक प्रणाली में बहुविवाह के खिलाफ पहले से ही प्रावधान हैं। लेकिन शरीयत कानून मुस्लिम पुरुषों को इन प्रावधानों से सुरक्षा कवच मुहैया कराता है। इसी वजह से यह कानून बनाना जरूरी था।
इस कानून के तहत पुलिस को बहुविवाह की जानकारी देने की जिम्मेदारी गांव के मुखिया, स्थानीय काजी और माता-पिता पर होगी। सरमा का कहना था कि अनुसूचित जनजातियों और संविधान की छठी अनुसूची वाले इलाकों में रहने वालों को इस कानून से छूट दी गई है। इसकी वजह यह है कि उनकी अपनी परंपराएं और कानून हैं।
मुख्यमंत्री के मुताबिक, यह कानून राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में एक ठोस कदम है। अगले चुनाव के बाद दोबारा मुख्यमंत्री बनते ही समान नागरिक संहिता विधेयक विधानसभा के पहले अधिवेशन में पेश किया जाएगा।
आखिर अभियुक्त को सजा मिलने की स्थिति में उस महिला का क्या होगा जिसके साथ जाने या अनजाने में उसकी दूसरी शादी हुई है? कानून के प्रावधानों के मुताबिक, सरकार ऐसी महिलाओं की मदद के लिए एक मुआवजा कोष बनाएगी। मुआवजे की रकम फिलहाल तय नहीं की गई है।
एआईयूडीएफ और सीपीएम ने इस विधेयक में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया था। लेकिन उनको ध्वनि मत से खारिज कर दिया गया।
एआईयूडीएफ के विधायक रफीकुल इस्लाम की दलील है कि असम में हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों में बहुविवाह की दर ज्यादा नहीं है। कम मुस्लिम आबादी वाले मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश में बहुविवाह की दर ज्यादा है।
शिवसागर के विधायक अखिल गोगोई का आरोप है कि भारतीय न्याय संहिता में पहले से ही बहुविवाह पर पाबंदी के बावजूद असम सरकार ने एक खास समुदाय को निशाना बनाने के लिए ही यह कानून बनाया है। इसके तहत माता-पिता को सजा देना भी गलत है।
सरकार के इस फैसले के बाद अब इस बात पर बहस छिड़ गई है कि यह फैसला राजनीतिक है या फिर सचमुच सरकार सामाजिक बदलाव की पक्षधर है। अल्पसंख्यक संगठन इस कानून को अल्पसंख्यकों के खिलाफ सरकार के अभियान का हिस्सा मानते हैं।
लेकिन सरकार का दावा है कि यह राज्य में जनसांख्यिकी संतुलन बनाए रखने की कवायद है। हाल के वर्षों में आबादी का संतुलन गड़बड़ हुआ है। इस कानून के जरिए उसे दुरुस्त करने की कोशिश की जाएगी।
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा खुद विभिन्न धर्मों के बीच आबादी के असंतुलन का जिक्र करते रहे हैं। वो कई बार कह चुके हैं कि राज्य के हिंदू समुदाय में आबादी की वृद्धि दर घट रही है। लेकिन मुस्लिम आबादी कई गुनी बढ़ गई है।
लेकिन अल्पसंख्यक संगठनों का कहना है कि उनके धर्म में पुरुष को कानूनी तौर पर बहुविवाह की इजाजत है। ऐसे में सरकार का यह फैसला सदियों पुराने धार्मिक नियमों पर सवाल उठाता है।
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