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संविधान दिवस: विश्व के सबसे पुराने गणतंत्र का जन्मदाता है भारत

Raajesh Verma राजेश वर्मा
Updated Wed, 26 Nov 2025 10:59 AM IST
सार

देश के लिए संविधान का विचार या इसकी जरूरत के पीछे भी बेहद रोचक कहानी है, इसका विचार आया कहां से इसको समझने के लिए अतीत को जानना बेहद जरूरी है। प्राचीन भारत में शासक ‘धर्म’ से बंधे होते थे और प्रजा को भी ‘धर्म’ का पालन करना होता था।

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India is the birthplace of the world's oldest republic
विश्व के सबसे पुराने गणतंत्र का जन्मदाता है भारत - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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देश के लिए संविधान का विचार या इसकी जरूरत के पीछे भी बेहद रोचक कहानी है, इसका विचार आया कहां से इसको समझने के लिए अतीत को जानना बेहद जरूरी है। प्राचीन भारत में शासक ‘धर्म’ से बंधे होते थे और प्रजा को भी ‘धर्म’ का पालन करना होता था। ‘धर्म’ का मतलब किसी मजहब, संप्रदाय या पंथ से जुड़ा होना नहीं था। आजकल जिसे कानून का या विधि-विधान का शासन कहा जाता है दरअसल वही धर्म के शासन की भावना थी। कहने का तात्पर्य है राजधर्म ही संविधान था।

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संविधान किसी व्यक्ति विशेष या समूह के दिमाग की उपज मात्र नहीं थी।  वेद, स्मृति, पुराण, महाभारत, रामायण और फिर बौद्ध और जैन साहित्य, कौटिल्य के अर्थशास्त्र और शुक्रनीति आदि में भारत में शासन तंत्र और संविधान के प्रथम सूत्र मिलते हैं। प्राचीन भारत में ‘सभा’, ‘समिति’ और ‘संसद’ के अनेक उल्लेख मिलते हैं, इनकी उत्पत्ति कोई संविधान के बनने के बाद नहीं हुयी। प्राचीन काल में कितने ही गणतंत्रों के होने के प्रमाण मिलते हैं तभी विश्व के सबसे पुराने गणतंत्र का भारत में  जन्म होना माना जाता है।
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ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यप्रणाली की जांच और उसमें बदलाव के सुझाव देने के लिए साइमन आयोग का गठन कर उसे भारत भेजा था। ‘भारतीय वैधानिक आयोग’ के नाम से भी इसे जाना जाता था। ब्रिटिश शासकों का मानना था कि भारतीयों में अपने लिए संविधान बनाने की क्षमता नहीं है।

इस चुनौती के जवाब में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में बनी समिति ने एक संविधान का प्रारूप तैयार किया जो ‘नेहरू रिपोर्ट’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अंग्रेजी शासन में स्वयं भारतीयों द्वारा बनाए गए किसी संविधान की यह पहली रूपरेखा थी। इसे सभी दलों का समर्थन प्राप्त हुआ था। 31 दिसंबर 1929 को जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य अपनाया।

1930 से हर वर्ष 26 जनवरी को स्वाधीनता का प्रण दोहराया जाने लगा। जब तक देश स्वाधीन न हो गया तब तक 26 जनवरी स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाई जाती रही। संविधान सभा के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित हुए और इनका चुनाव जुलाई 1946 में संपन्न हुआ। 6 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की स्थापना हुई।

कांग्रेस के 208 सदस्य, मुस्लिम लीग के 73 व अन्य 15 सदस्य निर्वाचित हुए। कुल 296 सदस्यों का चुनाव हुआ जबकि 93 सदस्य देसी रियासतों द्वारा मनोनीत हुए। इस तरह संविधान सभा में कुल 389 सदस्य बने। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई। 11 दिसंबर 1946 को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुन लिया गया।

15 अगस्त को देश स्वतंत्र हुआ लेकिन दो भागों में विभाजित हो गया। नए भारत के लिए संविधान सभा का कार्य बहुत महत्वपूर्ण हो चुका था। देश के सभी लोगों के लिए अधिकारों के साथ-साथ नए कानून बनाने की जिम्मेदारी भी संविधान सभा की थी। इसके लिए बहुत सी कमेटियां बनायी गयी।

संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को ही हो गई थी। 15 अगस्त 1947 से संविधान सभा स्वाधीन भारत की पूर्ण प्रभुसत्ता-संपन्न संविधान सभा बन गई। 29 अगस्त 1947 को गठित संविधान सभा की प्ररूप समिति का अध्यक्ष डॉक्टर भीम राव आंबेडकर को बनाया गया। यह कोई मामूली बात नहीं थी कि संविधान सभा एक ऐसा संविधान बना सकी जो इस विशाल देश के एक छोर से दूसरे छोर तक लागू हो तथा कितनी ही विविधताओं के बीच एकता पुष्ट करने में सफल हो।

डॉ. आंबेडकर ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में बोलते हुए बड़े महत्वपूर्ण शब्दों में कहा था, ‘मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग जिन्हें संविधान को चलाने का काम सौंपा जाएगा, खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, यदि उसे चलाने वाले अच्छे लोग हुए तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा।“

India is the birthplace of the world's oldest republic
विश्व के सबसे पुराने गणतंत्र का जन्मदाता है भारत - फोटो : Adobe Stock

26 नवंबर, 1949 को डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने समापन भाषण में स्मरणीय शब्दों में देशवासियों को चेतावनी देते हुए कहा था कि कुल मिलाकर संविधान सभा एक अच्छा संविधान बनाने में सफल हुई थी और उन्हें विश्वास था कि यह संविधान देश की आवश्यकताओं को पूरा कर सकेगा। किंतु, “यदि लोग, जो चुनकर आएंगे, योग्य, चरित्रवान और ईमानदार हुए तो वे दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देंगे। यदि उनमें इन गुणों का अभाव हुआ तो संविधान देश की कोई मदद नहीं कर सकता।“

‘ संविधान पर सदस्यों द्वारा 24 जनवरी, 1950 को हस्ताक्षर किए गए। इसके बाद राष्ट्रगान के साथ अनिश्चित काल के लिए संविधान सभा स्थगित कर दी गई। किंतु, इसके साथ संविधान की यात्रा समाप्त नहीं हुई। यह तो कहानी का आरंभ था। इसके बाद संविधान का कार्यकरण शुरू हुआ। अदालतों द्वारा इसकी व्याख्या हुई।

विधानपालिका द्वारा इसके अंतर्गत कानून बनाए गए। सांविधानिक संशोधन हुए। इन सबके द्वारा संविधान निर्माण की प्रक्रिया जारी रही। संविधान विकसित होता रहा, बदलता रहा, समय-समय पर जिस जिस प्रकार और जैसे-जैसे लोगों ने संविधान को चलाया, वैसे- वैसे नए-नए अर्थ इसे मिलते गए।

भारतीय नागरिकों को बराबरी का दर्जा चाहे वह मताधिकार की बात हो, छुआछूत के भेदभाव को ख़त्म करने की बात हो, धार्मिक स्वतंत्रता, सामाजिक व न्यायिक समानता,लैंगिक समानता जिनमें महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने, पिछड़े व अछूत समझे जाने वाले वर्ग के लोगों को नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की आदि बात हो यह सब व्यवस्थाएं संविधान लागू होने से पहले किसी ने सपने में भी नहीं सोची थी। इन्होनें संविधान को इतना लचीला रखा कि जरूरी होने पर इसमें संशोधन भी किया जा सकता है।

संविधान वह दस्तावेज है जिसमें वर्णित मौलिक अधिकारों के बल पर हम देश-प्रदेश के हर कोने में अपनी हर प्रकार की स्वतंत्रता का आनंद भोगते हैं। प्रत्येक भारतीय खुद को सौभाग्यशाली समझता है कि उसे ऐसे मौलिक अधिकार मिले जिससे वह अपने जीवन को बिना किसी डर भय के व्यतीत कर सकता है। संविधान में मौलिक अधिकारों पर विशेष बल दिया गया है। इनकी सुरक्षा के लिए कोई भी नागरिक देश के सर्वोच्च न्यायालय तक जा सकता है।

डाॅक्टर आंबेडकर ने संविधान में राज्यों की स्वतंत्रता व मजबूत केंद्र सरकार की बात की है। भारत देश को एकजुट रखने के लिए पूरे देश के ज्यूडिशियल ढांचे व अखिल भारतीय सेवाओं की नीवं भी इनकी ही देन है जिसका प्रावधान संविधान में हुआ है।

भारतीय संविधान दुनिया के बेहतरीन संविधानों में ली गयी विशेषताओं का समूह है, इसमें अमेरिका के संविधान की बुद्धिमत्ता, आयरिश संविधान से नीति निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल सहित विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों को सम्मानित करने जैसा नयापन आदि लिया गया है। इसी तरह ब्रिटेन के संविधान की व्यवाहारिक विशेषताओं की झलक भी इसमें देखने को मिलती हैं।

स्वतंत्रता के बाद भारत को कानूनी रूप से जो संविधान मिला है उसे लागू करने के बाद भारत की छवि दुनिया भर में सम्मानित रूप से उभर कर सामने आई है।

देश के प्रथम राष्ट्रपति रहे डाॅक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 26 नवंबर 1949 को पार्लियामेंट में डाॅक्टर भीमराव आंबेडकर की तारीफ करते हुए कहा था कि “ मैंने संविधान बनते देखा है, जिस लगन और मेहनत से संविधान प्रारूप समिति के सदस्यों और विशेषता डाॅक्टर आंबेडकर ने अपनी खराब सेहत के वाबजूद काम किया, मैं समझता हूं कि डाॅक्टर आंबेडकर को इस समिति का अध्यक्ष बनाने के सिवाए कोई और अच्छा कार्य हमनें नहीं किया। उन्होंने न केवल अपने चुनाव को सही साबित किया बल्कि अपने कार्य को भी चार चांद लगा दिए।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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