चिंता: विकास के पंखों के नीचे दम तोड़ते अंडमान और निकोबार के मैंग्रोव
- मैंग्रोव एक अत्यंत महत्वपूर्ण तटीय आर्द्रभूमि हैं, जो अनेक प्रकार की प्रजातियों को पोषक तत्वों से भरपूर वातावरण और उनके जीवन के लिए आवश्यक आवास प्रदान करती हैं।
विस्तार
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के तटीय क्षेत्र केवल समुद्र की सुंदरता के लिए ही नहीं जाने जाते बल्कि यहां फैले मैंग्रोव के जंगल इन द्वीपों की असली पूंजी हैं। मैंग्रोव न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखते हैं, बल्कि तटीय क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने की अग्रिम पंक्ति में खड़े प्रहरी भी हैं। वास्तव में, मैंग्रोव तटों के रक्षक और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की जीवनधारा हैं।
भारत स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (ISFR) 2023 के अनुसार, देश में कुल मैंग्रोव क्षेत्र 4,991.68 वर्ग किलोमीटर है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 0.15 प्रतिशत हिस्सा बनाता है। इनमें से सबसे अधिक मैंग्रोव पश्चिम बंगाल (42.45%), उसके बाद गुजरात (23.66%) और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह (12.39%) में पाए जाते हैं।
वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक डॉ. नेहरू प्रभाकरण कहते हैं,-
“मैंग्रोव एक अत्यंत महत्वपूर्ण तटीय आर्द्रभूमि (coastal wetland) हैं, जो अनेक प्रकार की प्रजातियों को पोषक तत्वों से भरपूर वातावरण और उनके जीवन के लिए आवश्यक आवास प्रदान करती हैं।”
जब समुद्र की लहरें तेजी से तटों पर आती हैं, तो यही वृक्ष अपनी मज़बूत जड़ों से मिट्टी को बाँधे रखते हैं और कटाव को रोकते हैं। चक्रवात और सुनामी जैसी आपदाओं के दौरान ये लहरों की ऊर्जा को अवशोषित कर तटीय क्षेत्रों को गंभीर नुकसान से बचाते हैं। इन वनों के भीतर की शांत जलधाराएं असंख्य मछलियों, केकड़ों, झींगों और पक्षियों का घर हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि मैंग्रोव एक महत्वपूर्ण कार्बन सिंक भी हैं, ये वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को अपने भीतर संग्रहित कर जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को कम करने में मदद करते हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मैंग्रोव का महत्व और भी बढ़ जाता है। ये प्राकृतिक ‘जैव-ढाल’ (bio-shield) के रूप में काम करते हैं, जो तटों को चक्रवातों, समुद्री लहरों और क्षरण से बचाते हैं।
समुद्री लहरों की तीव्रता के लिए ढाल है मैंग्रोव
डॉ. प्रभाकरण बताते हैं, “मैंग्रोव की उपस्थिति चक्रवात, समुद्री लहरों की तीव्रता और तटीय कटाव के विरुद्ध एक जैविक ढाल (bio-shield) के रूप में कार्य करती है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में अधिकांश स्थानीय समुदाय अपनी आजीविका के लिए मैंग्रोव से प्राप्त खाद्य संसाधनों पर निर्भर हैं, इसलिए इनका संरक्षण तटीय मानव समुदायों की स्थिरता और जीवन-निर्वाह के लिए अत्यंत आवश्यक है।”
पर्यटन विस्तार जैसी परियोजनाएं इन नाजुक पारितंत्रों (ecosystem) के लिए गंभीर खतरा बनती जा रही हैं। भूमि पुनर्निर्माण (land reclamation) और निर्माण कार्यों के कारण मैंग्रोव की जड़ें अस्थिर हो रही हैं, जिससे समुद्री जैवविविधता पर सीधा असर पड़ सकता है।
एक अध्ययन के अनुसार तटीय प्रदूषण, प्लास्टिक कचरा और भूमि उपयोग में तेजी से हो रहे बदलाव के चलते दक्षिण अंडमान के कई मैंग्रोव क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह प्रवृत्ति नहीं रोकी गई, तो आने वाले दशक में द्वीपों का एक बड़ा हिस्सा कटाव और बाढ़ के खतरे में पड़ सकता है।
डॉ. प्रभाकरण के अनुसार-
2004 की सुनामी के बाद अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मैंग्रोव वनों में भारी गिरावट देखी गई थी। अपनी प्राकृतिक पुनर्जीवित होने की क्षमता के कारण, कई स्थानों पर मैंग्रोव ने स्वयं को फिर से स्थापित कर लिया है। वन विभाग द्वारा किए गए वृक्षारोपण अभियानों ने भी कुछ क्षेत्रों में मैंग्रोव के सफल पुनर्स्थापन में योगदान दिया है।
हालांकि, प्राकृतिक पुनर्जीवन क्षमता और वन विभाग के प्रयासों के बावजूद, कई कारण ऐसे हैं जिन्होंने मैंग्रोव के अस्तित्व को और अधिक बाधित, एवं उसके सीमित पुनर्जीवन में योगदान दिया है। विशेष रूप से, आक्रामक प्रजाति ‘स्पॉटेड डियर’ (चित्तीदार हिरण) द्वारा चराई ने मैंग्रोव के प्राकृतिक पुनर्जीवन को गंभीर रूप से बाधित किया है, खासकर राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों जैसे संरक्षित क्षेत्रों में।
इसके अतिरिक्त, दक्षिण अंडमान के कुछ हिस्सों में भूमि पुनर्ग्रहण (land reclamation) ने भी मैंग्रोव के पुनर्जीवन को सीमित कर दिया है। इसलिए, अंडमान द्वीपों में स्पॉटेड डियर की आबादी को नियंत्रित करना और तटीय क्षेत्रों को नियंत्रित करने वाले उपलब्ध कानूनों और नीतियों का कड़ाई से पालन करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मैंग्रोव का प्राकृतिक पुनर्जीवन सुचारू रूप से हो सके।”
मैंग्रोव क्षेत्र का संरक्षण जरूरी
इन परिस्थितियों में, संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाना समय की मांग है। स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना, संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण कार्यों पर सख्त निगरानी और प्रभावी पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) लागू करना ज़रूरी है। साथ ही प्राकृतिक पुनर्जनन कार्यक्रमों के माध्यम से नष्ट हुए मैंग्रोव क्षेत्रों में पुनः पौधारोपण किया जाना चाहिए।
तटीय क्षेत्रों में समुद्री कचरे की सफाई, प्लास्टिक-मुक्त अभियान और उपग्रह मॉनिटरिंग से भी स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।
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