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संविधान दिवस विशेष: संवैधानिक मूल्यों को जन सरोकारों से जोड़ने की दिशा में एक निर्णायक दशक

Prem shukla प्रेम शुक्ल
Updated Wed, 26 Nov 2025 10:31 AM IST
सार

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कई अवसरों पर कहा है कि भारत का लोकतंत्र किसी बाहरी मॉडल की देन नहीं बल्कि हजारों वर्षों से विकसित हमारी गण परंपरा से उपजा हुआ है।

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constitution day of india A decisive decade in connecting constitutional values with public concerns
संविधान दिवस - फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
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आज संविधान दिवस है। आज ये याद करने का समय है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में विगत 11 वर्षों में देश के संविधान की जड़ें कितनी और मजबूत हुई हैं। भारत का संविधान केवल शासन व्यवस्था का आधार नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र के सामूहिक आत्मबोध का प्रतीक है।

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यह दस्तावेज हमें बताता है कि विविधताओं से भरा भारत एक साझा नागरिकता, साझा आकांक्षा और साझा भविष्य की दिशा में कैसे आगे बढ़ता है, संविधान दिवस इसी विश्वास का उत्सव है। यह वह अवसर है जब देश अपने उन मूल्यों को याद करता है जिन्होंने स्वतंत्र भारत को राजनीतिक स्थिरता, सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक परिपक्वता का आधार दिया।
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पिछले एक दशक में यह दिवस इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण बना है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में संविधान को केवल संरक्षित करने का कार्य नहीं हुआ, बल्कि इसे अधिक जीवंत, अधिक प्रभावी और अधिक जनकेंद्रित बनाने के लिए व्यापक सुधार किए गए।

ये भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि संविधान दिवस को मनाने की शुरुआत भी मोदी जी ने ही की थी लेकिन कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष ने इसका बॉयकॉट किया था। इसी से स्पष्ट हो जाता है कि संविधान में आस्था किसकी है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कई अवसरों पर कहा है कि भारत का लोकतंत्र किसी बाहरी मॉडल की देन नहीं बल्कि हजारों वर्षों से विकसित हमारी गण परंपरा से उपजा हुआ है। इसी दृष्टि के अनुरूप संविधान को भारतीय समाज के यथार्थ और भारतीय मूल्यों के निकट लाने का प्रयास किया गया। न्याय संहिता में भारतीय सोच को समाहित करना इसी व्यापक सुधार यात्रा का हिस्सा रहा।

दंड व्यवस्था को आधुनिक वैज्ञानिक आधार पर खड़ा करते हुए इसे भारतीय संवेदनाओं के अनुरूप बनाना केवल कानूनी परिवर्तन नहीं था बल्कि यह उस भावना को सम्मान देने का प्रयास था जिसमें न्याय केवल दंड नहीं बल्कि सुधार, संरक्षण और समाज कल्याण का माध्यम माना जाता है। इन सुधारों ने यह सुनिश्चित किया कि सामान्य नागरिक को अधिक पारदर्शी, सरल और शीघ्र न्याय मिले।

भाजपा सरकार ने संविधान और उसके निर्माताओं के प्रति राष्ट्रीय कृतज्ञता को भी नए आयाम दिए। बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर को भारत रत्न प्रदान करना उसी राष्ट्रीय कृतज्ञता का सर्वोच्च रूप था। यह सम्मान केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि उन करोड़ों लोगों की आकांक्षाओं का सम्मान था जिन्हें बाबा साहेब ने समानता, अधिकार और न्याय का मार्ग दिखाया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बाबा साहेब के विचारों को केवल सांकेतिक श्रद्धांजलि तक सीमित नहीं रखा गया बल्कि उन्हें शासन व्यवस्था और नीतियों की आधारभूमि बनाया गया। उनके विचारों पर आधारित कई पहलें सामाजिक समावेश और अवसर की समानता को मजबूत करती रही हैं।

संविधान को अधिक सुलभ बनाने की दिशा में भी ऐतिहासिक कदम उठाए गए, संविधान का अनुवाद कई भारतीय भाषाओं में कराना सुनिश्चित किया। अभी तक यह अनुवाद 18 भाषाओं में हो चुका है। यह प्रयास केवल भाषाई सुविधा प्रदान करने की दिशा में उठाया गया कदम नहीं था बल्कि संविधान को हर नागरिक के लिए समझने योग्य और अपनत्व से भरा दस्तावेज बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य था।

भाषा किसी भी लोकतंत्र को जीवंत बनाती है और संविधान का भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होना लोकतांत्रिक भागीदारी को गहरा करता है। इससे यह संदेश भी स्पष्ट हुआ कि भारतीय लोकतंत्र का आधार किसी एक भाषा या क्षेत्र पर नहीं बल्कि पूरे देश की विविध भाषाई संस्कृति पर आधारित है।

संविधान के निर्देशक सिद्धांतों में उल्लिखित समान नागरिक संहिता की दिशा में उठाए गए प्रयास भी संविधान को और मजबूत बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा रहे हैं। भाजपा सरकार ने स्पष्ट किया कि यूसीसी का उद्देश्य किसी समुदाय को लक्षित करना नहीं बल्कि सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार और समान न्याय सुनिश्चित करना है।

यह पहल उन सामाजिक कानूनी भेदभावों को समाप्त करने का प्रयास है जो दशकों से समानता के अधिकार के समक्ष चुनौती बने रहे। इस विषय को राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बनाकर सरकार ने सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों को आगे बढ़ाने की एक जिम्मेदार और क्रमबद्ध प्रक्रिया आरम्भ की।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में शासन व्यवस्था को ईमानदार, पारदर्शी और नागरिक-केन्द्रित बनाने की दिशा में कई ठोस प्रयास हुए हैं। इन्हीं प्रयासों की श्रृंखला में एसआईआर प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में सामने आई है। यह विशेष गहन पुनरीक्षण अभ्यास मतदाता सूची को पूरी तरह से सुव्यवस्थित और विश्वसनीय बनाने का माध्यम है।

इसके तहत घर-घर जाकर मतदाताओं की पहचान, उनके पंजीकरण का सत्यापन और आवश्यक संशोधन किए जाते हैं, जिससे सूची में मौजूद डुप्लिकेट, निष्क्रिय या अवैध रूप से दर्ज नामों की पहचान की जा सके। यह व्यवस्था केवल प्रशासनिक सुधार भर नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखने का एक सशक्त साधन है।

दुखद यह है कि इस जिम्मेदार और सुविचारित प्रक्रिया को लेकर कुछ राजनीतिक दलों ने भ्रम उत्पन्न करने का प्रयास किया और कई स्थानों पर तनाव का वातावरण भी बनाने की कोशिश की। जिस विपक्ष ने संविधान की रक्षा का नैतिक दायित्व उठाने का दावा किया है, वही व्यवहार में न्यायपालिका सहित कई संवैधानिक संस्थाओं पर प्रश्नचिह्न लगाता रहा है।

लोकतंत्र की मजबूती केवल सरकार की नीतियों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी, संयम और संस्थाओं के प्रति सम्मान पर भी आधारित होती है। वर्तमान समय में विपक्ष की राजनीति का केंद्र संविधानिक बहस से अधिक भ्रम फैलाने, अविश्वास पैदा करने और संस्थाओं की विश्वसनीयता को कमजोर करने पर दिखता है।

संवैधानिक संस्थाओं पर निरंतर प्रश्न खड़े करने की यह प्रवृत्ति जनता के बीच असंतोष और अस्थिरता पैदा करने का उपकरण बनी हुई है। भारत का लोकतंत्र मजबूत संस्थाओं पर खड़ा है और इन संस्थाओं को अस्थिर करने का कोई भी प्रयास सीधे संविधान की आत्मा पर चोट करता है।

देश में विरोध का अधिकार होना चाहिए, लेकिन विरोध का आधार तथ्य, तर्क और संवैधानिक दृष्टि होना चाहिए। विपक्ष यदि वास्तव में संविधान का सम्मान करना चाहता है तो उसे संस्थाओं को कमजोर करने के बजाय उन्हें और सशक्त बनाने की दिशा में सकारात्मक योगदान देना चाहिए।

भारत ने दुनिया को यह दिखाया है कि जब राजनीतिक इच्छाशक्ति सुदृढ़ हो और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि रखा जाए, तब लोकतांत्रिक ढांचा नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर सकता है। डिजिटल शासन, पारदर्शिता, नागरिक अधिकारों का विस्तार, आर्थिक अवसरों का सृजन और सामाजिक न्याय की दिशा में किए गए सुधार संविधान को अधिक जीवंत बनाते हैं। यह प्रयास यह सिद्ध करते हैं कि संविधान केवल एक ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं बल्कि भविष्य की दिशा देने वाला मार्गदर्शक है।

संविधान दिवस उसी विश्वास को पुनर्स्थापित करता है कि भारत की लोकतांत्रिक यात्रा सतत, विकसित होती और जनता के अधिकारों को सर्वोच्च मानने वाली प्रक्रिया है। सरकार ने संस्थाओं को मजबूत किया है, न्याय व्यवस्था को आधुनिक बनाया है और संविधान को अधिक सुलभ और प्रासंगिक बनाया है।

अब यह जिम्मेदारी हर नागरिक की भी है कि वह संविधान के मूल्यों का सम्मान करे और किसी भी प्रकार की हिंसा, भ्रम और विघटन के प्रयासों के विरुद्ध खड़ा हो। संविधान केवल शासन का आधार नहीं बल्कि भारत की सामूहिक चेतना का जीवंत दस्तावेज है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने यह प्रदर्शित किया है कि लोकतंत्र की वास्तविक शक्ति संविधान की रक्षा में ही निहित है। यह दिवस हमें स्मरण कराता है कि राष्ट्र सर्वोपरि है और संविधान वही धरोहर है जो भारत को दुनिया के सबसे सक्षम और समावेशी लोकतंत्र के रूप में निरंतर आगे बढ़ाती रहेगी। 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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