सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   Columns ›   Blog ›   Electoral politics intensifies in Bengal after Bihar results

Bengal Politics: बिहार के नतीजों के बाद तेज हुई बंगाल में चुनावी सियासत

Prabhakar Mani Tewari प्रभाकर मणि तिवारी
Updated Tue, 25 Nov 2025 05:59 PM IST
सार

भाजपा नेताओं को भरोसा है कि पार्टी बंगाल में भी बिहार के नतीजों को दोहरा सकती है। इसलिए पहले के मुकाबले रणनीति में बदलाव किए जा रहे हैं।

विज्ञापन
Electoral politics intensifies in Bengal after Bihar results
सीएम ममता बनर्जी। - फोटो : एएनआई
विज्ञापन

विस्तार
Follow Us

बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के रिकॉर्ड प्रदर्शन के बाद पश्चिम बंगाल में चुनावी सियासत तेज होने लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी के तमाम नेताओं ने 'अब बंगाल की बारी' जैसे नारे दिए हैं। लेकिन सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने एक वीडियो के जरिए उसके दावे पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि सपने देखना अच्छी बात है। पार्टी का दावा है कि बिहार के नतीजों का बंगाल पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

Trending Videos


भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने बंगाल में बिहार दोहराने के लक्ष्य के साथ प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व और प्रबारियो को सक्रिय कर दिया है। यही वजह है कि नतीजों के अगले दिन ही यहां भाजपा की प्रदेश कोर कमिटी की बैठक में आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की गई।
विज्ञापन
विज्ञापन


भाजपा नेताओं को भरोसा है कि पार्टी बंगाल में भी बिहार के नतीजों को दोहरा सकती है। इसलिए पहले के मुकाबले रणनीति में बदलाव किए जा रहे हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, बदली हुई रणनीति के तहत पार्टी युवा तबके के साथ ही रोजगार के लिए पलायन करने वाले प्रवासी मजदूरों को साथ जोड़ने के अलावा राज्य में बड़े पैमाने पर आधारभूत परियोजनाओं और रोजगार के अवसर पैदा करने वाली योजनाओं पर विचार कर रही है।

कोर कमिटी की बैठक में भी इन मुद्दों पर गहन चर्चा की गई और प्रदेश नेताओं से सुझाव मांगे गए कि कहां क्या हो सकता है।

पार्टी के एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि बिहार के चुनावी नतीजों से पार्टी के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह है।

ममता हर बार चुनाव में स्थानीय मुद्दों के साथ ही लक्ष्मी भंडार जैसी विभिन्न योजनाओं के कारण महिला वोटरों का समर्थन हासिल करती रही है। वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव और बीते साल के लोकसभा चुनाव में इन दोनों मुद्दों ने पार्टी को भाजपा की चौतरफा चुनौतियों से निपटने में काफी मदद की थी। लेकिन भाजपा राष्ट्रीय मुद्दों के साथ स्थानीय मुद्दों को जोड़ कर इस बार उनके इस समर्थन की काट की रणनीति बना रही है।

पार्टी ने औद्योगिक विकास, बड़े पैमाने पर आर्थिक सुधार के जरिए पूंजी निवेश आकर्षित करने और रोजगार के अवसर पैदा करने जैसे मुद्दो पर जोर देकर ममता के वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति बनाई है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता शुभेंदु अधिकारी का कहना है कि एसआआआर के बाद साफ-सुथरी मतदाता सूची से होने वाले चुनाव में भाजपा की जीत तय है। इलाके के तीन क्षेत्रों को कलिंग (ओडिशा), अंग (बिहार और बंग (बंगाल) के नाम से भी जाना जाता है। हमने कलिंग और अंग जीत लिए हैं, अब बंग की बारी है।

तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष का कहना है कि भाजपा चाहे जो भी दावे करे, यहां चौथी बार भी तृणमूल कांग्रेस ही सरकार बनाएगी। पार्टी को अगली बार कम से कम 250 सीटें मिलेंगी। बंगाल के लोगों ने भाजपा की हिंदुत्व और नफरत की राजनीति को कई बार खारिज कर दिया हैं।

पार्टी ने केंद्र पर राज्य की महिलाओं के अपमान और उनको मिलने वाले पैसों को रोकने का अपना पारंपरिक आरोप दोहराया है। पार्टी की वरिष्ठ नेता और मंत्री शशी पांजा ने कहा कि अगले चुनाव में भाजपा को महिलाएं इसका जवाब देंगी।

वैसे, तृणमूल कांग्रेस खेमे में बिहार के नतीजों से चिंता या आशंका की बजाय उत्साह है। पार्टी की राय में ममता बनर्जी के महिला सशक्तिकरण के हथियार की नकल कर ही बिहार में भाजपा को कामयाबी मिली है। लेकिन बंगाल में असली के सामने नकल नहीं चलेगा।

पार्टी के एक नेता ने बताया कि बिहार के नतीजों को ध्यान में रखते हुए ममता बनर्जी महिलाओं में लोकप्रिय लक्ष्मी भंडार योजना के तहत रकम बढ़ाने के अलावा महिलाओं के हित में कुछ अन्य योजनाएं शुरू करने पर भी विचार कर रही है।

लक्ष्मी भंडार के तहत हर महीने सामान्य वर्ग की महिलाओं को एक हजार और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग को 1200 रुपए महीने की रकम मिलती है।

पार्टी के एक प्रमुख नेता ने बताया कि चुनाव से पहले पेश होने वाले अंतरिम बजट में लक्ष्मी भंडार के लिए आवंटन बढ़ाने के लिए प्रशासनिक स्तर पर बातचीत हो रही है।

बिहार चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने साफ कर दिया है कि वो अगले चुनाव में उसके (कांग्रेस के) साथ कोई तालमेल नहीं करेगी। यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि सीटों पर सहमति नहीं बनने की वजह से बीते साल लोकसभा चुनाव में इन दोनों दलों में तालमेल नहीं हो सका था।

तृणमूल के एक नेता ने बताया कि संसद में दोनों दलों के बीच समन्वय जारी रहेगा। लेकिन स्थानीय स्तर पर हम अकेले ही लड़ेंगे। बंगाल में हमें कांग्रेस की कोई जरूरत नहीं है।

उनके मुताबिक, बिहार में भाजपा को भले सबसे ज्यादा सीटें मिली हैं, यह बात समझनी होगी कि पार्टी ने वहां जद(यू) के साथ गठजोड़ किया था। इसलिए अल्पसंख्यकों के भी कुछ वोट उसे मिल गए। लेकिन बंगाल की चुनावी तस्वीर अलग है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार के नतीजों के बाद बदले राजनीतिक परिदृश्य में अब यह बात साफ हो गई है कि राज्य में अगले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होगा।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

Election
एप में पढ़ें

Followed