{"_id":"69269a4d84511322f40d3322","slug":"the-constitution-of-the-world-largest-republic-and-its-anonymous-architect-2025-11-26","type":"feature-story","status":"publish","title_hn":"संविधान दिवस: विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र का संविधान और उसके गुमनाम शिल्पी","category":{"title":"Blog","title_hn":"अभिमत","slug":"blog"}}
संविधान दिवस: विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र का संविधान और उसके गुमनाम शिल्पी
सार
ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन 29 अगस्त 1947 को हुआ, जिसमें सात सदस्य थे। आंबेडकर के अलावा अन्य सदस्यों ने कानूनी विशेषज्ञता प्रदान की, लेकिन कई कारणों से जैसे स्वास्थ्य समस्याएं, मृत्यु या अनुपस्थिति, बोझ मुख्यतः आंबेडकर पर पड़ा।
विज्ञापन
संविधान (सांकेतिक)
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट / एजेंसी
विज्ञापन
विस्तार
भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जो 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ। यह दस्तावेज न केवल स्वतंत्र भारत की नींव है, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और लोकतंत्र के सिद्धांतों का प्रतीक भी है।
Trending Videos
संविधान सभा ने लगभग तीन वर्षों के दौरान, 1946 से 1949 तक, 11 सत्रों और 165 दिनों की बहसों के बाद इसे तैयार किया। इन बहसों में 7,635 संशोधनों पर विचार किया गया, जिनमें से 2,473 को अपनाया गया।
विज्ञापन
विज्ञापन
इसका प्रारंभिक रूप सरकारी दस्तावेजों जैसे गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 से प्रेरित था, लेकिन इसमें विश्व के विभिन्न संविधानों के तत्व शामिल किए गए, जैसे अमेरिकी, आयरिश और कनाडाई। कुल मिलाकर, यह 395 अनुच्छेदों, 8 अनुसूचियों और 22 भागों वाली एक व्यापक कृति है, जिसकी तैयारी पर लगभग 64 लाख रुपये खर्च हुए।
डॉ. भीमराव आंबेडकर को संविधान के शिल्पी के रूप में जाना जाता है, जो ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष थे। उन्होंने अस्पृश्यता उन्मूलन, मौलिक अधिकारों और आरक्षण जैसे प्रावधानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन यह कार्य एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि सैकड़ों लोगों का सामूहिक प्रयास था।
आंबेडकर ने स्वयं अपने समापन भाषण में, 25 नवंबर 1949 को, कहा था कि श्रेय मुख्य रूप से संवैधानिक सलाहकार सर बी.एन. राव और चीफ ड्राफ्ट्समैन एस.एन. मुखर्जी को जाता है। इन अनजाने शिल्पियों ने बिना किसी प्रसिद्धि के शोध, ड्राफ्टिंग, लेखन, साज-सज्जा आदि में वर्षों का श्रम लगाया।
ड्राफ्टिंग कमेटी: प्रमुख सदस्य और उनकी भूमिकाएं
ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन 29 अगस्त 1947 को हुआ, जिसमें सात सदस्य थे। आंबेडकर के अलावा अन्य सदस्यों ने कानूनी विशेषज्ञता प्रदान की, लेकिन कई कारणों से जैसे स्वास्थ्य समस्याएं, मृत्यु या अनुपस्थिति, बोझ मुख्यतः आंबेडकर पर पड़ा। अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर कानूनी विशेषज्ञ थे और मौलिक अधिकारों तथा संघीय ढांचे पर बहसों में सक्रिय रहे।
एन. गोपालास्वामी अयंगर कश्मीर एकीकरण के बाद राज्य मामलों में व्यस्त रहे और प्रशासनिक प्रावधानों पर सलाह दी। के.एम. मुंशी गुजराती विद्वान थे, जिनका सांस्कृतिक अधिकारों और हिंदू कोड बिल पर प्रभाव पड़ा।
सैयद मोहम्मद सादुल्ला मुस्लिम प्रतिनिधि थे जिन्होंने अल्पसंख्यक अधिकारों पर योगदान दिया। डी.पी. खेतान प्रारंभिक सदस्य थे, लेकिन उनकी जल्दी मृत्यु हो गई, जिसके बाद टी.टी. कृष्णामाचारी ने स्थान लिया, जो वित्तीय प्रावधानों और अंतिम संशोधनों में सहायक रहे।
बी.एल. मित्तर प्रारंभिक सदस्य थे, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से हट गए, और बाद में एन. माधव राव आए। ये सदस्य सभा की उप-समितियों से सुझावों को एकीकृत करने में लगे रहे।
अनजाने शिल्पी: शोध, ड्राफ्टिंग और लेखन में योगदानकर्ता
संविधान निर्माण में कई पर्दे के पीछे के नायक थे, जिन्होंने बिना प्रसिद्धि के वर्षों का श्रम लगाया। सर बेनेगल नरसिंह राव 1946 से संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार थे। उन्होंने 1946 में अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड और ब्रिटेन का दौरा कर संवैधानिक विशेषज्ञों जैसे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस फेलिक्स फ्रैंकफर्टर से परामर्श लिया।
फरवरी 1948 में उन्होंने 243 अनुच्छेदों और 13 अनुसूचियों वाला प्रारंभिक ड्राफ्ट तैयार किया, जो ड्राफ्टिंग कमिटी का आधार बना।
मौलिक अधिकारों को दो भागों में विभाजित करने का सुझाव दिया, जो कानूनी रूप से प्रवर्तनीय और गैर-प्रवर्तनीय थे, और यह आयरिश संविधान से प्रेरित था। आंबेडकर ने कहा कि श्रेय मेरा नहीं, बल्कि राव का है। उनकी पुस्तकें जैसे कॉन्स्टिट्यूशनल प्रीसिडेंट्स 1947 शोध का आधार बनीं।
सुरेंद्र नाथ मुखर्जी संविधान सभा के संयुक्त सचिव और चीफ ड्राफ्ट्समैन थे। जटिल प्रस्तावों को सरल कानूनी भाषा में बदलने में उनकी महारत थी। उन्होंने अंतिम ड्राफ्ट की तैयारी की, जिसमें सभा की बहसों को शामिल किया। आंबेडकर ने कहा कि उनके बिना यह कार्य वर्षों लग जाता। वे रात-रात भर स्टाफ के साथ काम करते रहे।
महिला योगदानकर्ता
सभा में 15 महिलाएँ थीं, जिनमें से आठ ने हस्ताक्षर किए। वे स्वतंत्रता संग्राम की योद्धा थीं और महिलाओं के अधिकारों जैसे समान वेतन और संपत्ति अधिकारों पर जोर दिया। हंसा मेहता इंडियन विमेंस चार्टर ऑफ राइट्स एंड ड्यूटीज की ड्राफ्टर थीं और उन्होंने यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स में मेन शब्द को ऑल ह्यूमन बीइंग्स में बदलवाया।
सुचेता कृपलानी प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनीं और उन्होंने सामाजिक न्याय पर बहस की। अम्मू स्वामीनाथन विमेंस इंडिया एसोसिएशन की सह-संस्थापक थीं और संपत्ति अधिकारों की वकील रहीं।
दुर्गाबाई देशमुख ने एंडोमेंट एक्ट के माध्यम से महिलाओं के लिए फंडिंग सुनिश्चित की। राजकुमारी अमृत कौर ने स्वास्थ्य और शिक्षा प्रावधानों पर प्रभाव डाला। अन्य प्रमुख महिलाओं में सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित, रेणुका राय और पूर्णिमा बनर्जी शामिल थीं।
साज-सज्जा और कला: चित्रण का जादू
संविधान केवल कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि एक कलात्मक कृति भी है। मूल प्रतिलिपि हाथ से लिखी गई, जिसमें 251 पृष्ठ हैं। प्रेम बिहारी नारायण रायजादा दिल्ली के मशहूर कैलिग्राफर थे। उन्होंने छह महीनों में इटैलिक शैली में पूरे संविधान को हाथ से लिखा, जिसमें 432 पेन-निब्स और 25 पेंसिलों का उपयोग किया।
संविधान हॉल, अब संविधान क्लब, में बैठकर उन्होंने यह कार्य किया। उनकी पुस्तक द इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन में वर्णन है कि यह राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक था।
नंदलाल बोस और शांतिनिकेतन टीम ने कलात्मक सज्जा की जिम्मेदारी संभाली। बोस, शांतिनिकेतन के कला भवन प्रमुख, ने 22 चित्र बनाए, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति को दर्शाते हैं, जैसे अशोक चक्र, हड़प्पा सभ्यता और रामायण के दृश्य।
उनकी टीम में बिहार के राममनोहर सिन्हा, नंदकिशोर आदि शामिल थे। यह सज्जा संविधान को राष्ट्रीय महाकाव्य बनाती है। इसकी फोटोलिथोग्राफी सर्वे ऑफ इंडिया, देहरादून में हुई। जिसकी एक मूल प्रति अब भी सर्वे ऑफ़ इंडिया देहरादून में मौजूद है.
संविधान की मूल प्रतिलिपि संसद भवन में
भारत का संविधान एक सामूहिक सपना था, जिसमें सिविल सर्वेंट्स, कलाकार, महिलाएँ और स्टाफ ने बिना किसी आकर्षण के योगदान दिया। आंबेडकर ने कहा कि यह दस्तावेज जीवंत है, इसे जीवित रखना हमारा कर्तव्य है।
इन अनजाने शिल्पियों को याद करना हमें लोकतंत्र की सच्ची भावना सिखाता है। अधिक जानकारी के लिए, संविधान की मूल प्रतिलिपि संसद भवन में देखी जा सकती है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।