विश्व सिनेमा की जादुई दुनिया: पुरस्कृत स्क्रीनप्ले राइटर रूथ प्रवेर झाबवाला
- कमाल की कहानी कहने वाली रूथ ने हेनरी जेम्स (‘द बोटानिस्ट्स’), नोबेल पुरस्कृत काज़ुओ इशिगुरो (‘द रिमैन्स ऑफ द डे’) की रचनाओं को फिल्म के लिए तैयार किया।
- ‘द बोटानिस्ट्स’ को दो ऑस्कर के लिए तथा ‘द रिमैन्स ऑफ द डे’ को आठ ऑस्कर के लिए नामांकन मिला।

विस्तार
एक कुशल स्क्रीनप्ले राइटर के पास सृजनात्मकता, कथन-कला, चरित्र गढ़ने की क्षमता, लेखन प्रतिभा, निरंतर लेखन का अभ्यास एवं धैर्य का गुण होना चाहिए। रूथ प्रवेर झाबवाला के पास इन गुणों के अलावा सुनने की बेहतर क्षमता भी थी, नतीजन उनके डॉयलॉग चुस्त-दुरुस्त एवं स्पष्ट होते हैं।

रूथ का जन्म भले ही जर्मनी में हुआ, लेकिन उनके जीवन का एक लंबा हिस्सा भारत में गुजरा। 7 मई 1927 को जन्मीं वे 1939 में परिवार सहित वहां से भाग निकलीं। 12 साल क उम्र में वे इंग्लैंड आईं और इस तरह अनगिनत यहूदियों की दुर्भाग्यपूर्ण मौत से बच गईं। परंतु उनके पुलिस-वकील पिता अपने परिवार के होलोकास्ट में नष्ट होने को पचा न सके और उन्होंने आत्महत्या कर ली। इस हादसे को सीधे हम उनके लेखन में नहीं पाते हैं, हालांकि उसकी छाया वहां मिलती है।
वे लोग इंग्लैंड में आ बसे थे, वहीं रूथ ने इंग्लिश साहित्य में एम. ए. किया। 1951 में रूथ ने भारतीय वास्तुकार साइरस झाबवाला से विवाह किया और दिल्ली में आ बसीं, 1975 तक वे भारत में रहीं। इसके बाद न्यू यॉर्क, इंग्लैंड बाहर आना जाना लगा रहा। बुकर पुरस्कृत (‘हीट एंड डस्ट’) रूथ का जीवन बदल गया जब 1961 में उन्होंने निर्देशक जेम्स आइवरी एवं निर्माता इस्माइल मरचेंट का साथ पाया। तीनों मिल कर ऐतिहासिक फिल्में बनाते रहे। उनकी दोस्ती ताजिंदगी कायम रही।
रूथ की सिने-यात्रा
असल में 1960 में उनके उपन्यास ‘द हाउसहोल्डर’ पर जेम्स और मर्चेंट फिल्म बनाना चाहते थे, उन्होंने न केवल रूथ झाबवाला से इसकी अनुमति मांगी बल्कि उन्हें ही स्क्रीनप्ले लिखने का प्रस्ताव भी दिया। और यहीं से रूथ की सिने-यात्रा प्रारंभ हुई। झाबवाला औपन्यासिक कृतियों को स्क्रीनप्ले में ढालतीं, वे दोनों मिल कर फिल्म बनाते और ये फिल्में पुरस्कृत होतीं। किसी फिल्म की सफलता-असफलता में स्क्रीनप्ले राइटर की प्रमुख भूमिका होती है। इस दृष्टि से देखें तो रूथ झाबवाला का काम अवश्य गुणवत्तापूर्ण नजर आता है।
‘उन्होंने लेखक बनना चुना नहीं, वे ऐसी ही पैदा हुई थीं।’ मानने वाली रूथ ने प्रसिद्ध उपन्यासकार ई. एम. फॉस्टर के उपन्यास ‘ए रूम विद ए व्यू’ को स्क्रीनप्ले में रूपांतरित किया। जिस पर जेम्स आइवरी ने फिल्म बनाई। जिसकी कहानी कुछ फिल्म में थोड़ी भिन्न है, मगर तीनों ने मिल कर ऐसा कमाल किया कि फिल्म को 8 ऑस्कर हेतु नामांकन मिला, जिसमें से 3 उसकी झोली में आए।
जाहिर-सी बात है, उनमें से एक ऑस्कर रूथ के स्क्रीनप्ले केलिए सुरक्षित रहा। अन्य दो में से एक आर्ट डॉयरेक्शन/सेट डिजाइनिंग (जिसे चार लोगों ने साझा किया) केलिए और दूसरा जेनी भीवान एवं जॉन ब्राइट ने सर्वोत्तम कस्ट्यूम डिजाइनिंग केलिए साझा किया।
रूथ के स्क्रीनप्ले के नाम ऑस्कर
एक बार फिर कमाल हुआ, रूथ ने फॉस्टर के एक अन्य उपन्यास ‘हॉर्वर्ड्स एंड’ को स्क्रीनप्ले में ढाला, जेम्स आइवरी ने निर्देशन किया और फिल्म कई ऑस्कर हेतु नामांकित हुई और एक बार फिर 3 ऑस्कर उसकी झोली में आए, जिसमें से एक रूथ के स्क्रीनप्ले के नाम रहा। 1993 की सर्वोत्तम अभिनेत्री के लिए यह एम्मा थॉम्प्सन को यह मिला और सर्वोतम आर्ट डॉयरेक्शन एवं सेट डिजाइनिंग केलिए इसे लुसिआना एरेघी तथा इआन विटाकेर ने साझा किया। ‘ए रूम विद ए व्यू’ तथा ‘हॉर्वर्ड्स एंड’ दोनों फिल्मों को ब्रिटिश फिल्म में 20वीं सदी की फिल्मों की कसौटी माना जाता है।
अस्सी के दशक में रूथ झाबवाला न्यूयॉर्क सिटी में बस गईं। पर भारत से उनका संबंध बना रहा। यह उनके लेखन में धड़कता रहा। जब मर्चेंट और आइवरी उनसे मिलने, उनके उपन्यास पर फिल्म बनाने की अनुमति लेने एवं उन्हें उसका स्क्रीनप्ले लिखने के लिए कहने भारत आए, तो उन लोगों ने एक बहुत कठिन शर्त रखी। उन्होंने रूथ से कहा, उन्हें यह स्क्रीनप्ले मात्र आठ दिन में लिख कर देना है। रूथ की अपनी रचना थी, सो उन्होंने यह काम कर डाला।
ऑस्कर सहित स्क्रीनप्ले केलिए 11 पुरस्कार पाने वाली रूथ का नाम 27 फिल्मों के स्क्रीनप्ले केलिए दर्ज है। इसके अलावा उन्हें कई और पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हैं, जिसमें 1998 में मिला क्वीन्स ऑनर्स भी शामिल है। उन्होंने टेलिविजन केलिए भी स्क्रिप्ट लिखी।
कमाल की कहानी कहने वाली रूथ ने हेनरी जेम्स (‘द बोटानिस्ट्स’), नोबेल पुरस्कृत काज़ुओ इशिगुरो (‘द रिमैन्स ऑफ द डे’) की रचनाओं को फिल्म के लिए तैयार किया। ‘द बोटानिस्ट्स’ को दो ऑस्कर केलिए तथा ‘द रिमैन्स ऑफ द डे’ को आठ ऑस्कर केलिए नामांकन मिला।
‘शेक्सपियर वाला’, ‘द यूरोपियद’, हीट एण्ड डस्ट’ (उनके अपने पुरस्कृत उपन्यास पर आधारित), ‘मैडम सौसाज़्का’, ‘मिस्टर एंड मिसेज’. ‘सर्वाविंग पिकासो’, ‘द डिवर्स’ आदि उनके फीचर फिल्मों के स्क्रीनप्ले हैं। ‘एबीसी अफ्टरस्कूल स्पेसिअल्स’, ‘द प्लेस ऑफ पीस’, ‘द कोर्टिसन्स ऑफ बॉम्बे’ (उनकी अपनी रचना), ‘अमेरिकन प्लेहाउस’ आदि कुछ टीवी के लिए लिखे गए उनके स्क्रीनप्ले हैं।
‘राइटिंग फिल्म स्क्रिप्ट’ में उनका नाम शामिल है। वे अंत-अंत तक सक्रिय थीं। गुजरने के एक महीने पहले उनकी एक कहानी न्यू यॉर्कर में प्रकाशित हुई थी। दो दर्जन से ऊपर स्क्रीनप्ले, दर्जन भर उपन्यास तथा आठ कहानी संग्रह की रचनाकार रूथ झाबवाला 3 अप्रैल 2013 को गुजर गईं।
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