विश्व साहित्य का आकाश: एमा बोवारी- रोमांस के सपने
- 1964 में बीबीसी मिनी सिरीज बनी और इस बार एम्मा बनी नायरी डॉन पोर्टर। 1975 में बीबीसी ने फ़िर फ्रांसिस्का एनिस को ले कर ‘मैडम बोवरी’ बनाई। सन 2000 में एक भव्य साज-सज्जा के साथ टीवी फिल्म बनी, जिसमें फ्रांसेस ओ’कोन्नोर ने एमा की भूमिका निभाई।
विस्तार
‘मैडम बोवरी’ कालजयी फ्रेंच उपन्यास के मात्र इंग्लिश अनुवाद की एक लंबी लिस्ट है। एलीनोर मार्क्स-एवलिंग तथा पॉल ड मैन के अलावा जेम्स लेविस में, जेरॉल्ड होप्किन्स, एलन रसल, फ्रांसिस स्टीगमुलर, लिडिया डेविस, मिलर्ड मरमर और भी कई अनुवादकों के काम आज उपलब्ध हैं। इसके हिन्दी अनुवाद भी हैं। मगर मुझे लगता है, इंग्लिश भाषा फ्रेंच भाषा के अधिक निकट है।
उपन्यास में एमा को संवेदनशील निगाह से देखा गया है और उसके एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर्स को कुशलता से बुना गया है। एमा बोवारी के जीवन में वे तार्किक उपस्थिति से लगते हैं।
कॉन्वेंट में रहते हुए विभिन्न तरह के रोमांच और रोमांस वाली पुस्तकें पढ़ना और एक सपनीली दुनिया को इस तरह से अपने अंदर बैठा लेना कि वास्तविक, यथार्थ जीवन असहनीय लगने लगे। उसे शांति-सरलता-स्निग्ध प्रेम नहीं चाहिए। उसे आवेग, रोमांचित करने वाली चीजें, ऐसा कुछ चाहिए, जो कहानियों में मिला था। घुड़सवार प्रिंस, विस्काउंट, हजार तरह के उत्तेजक काम कर पाने वाला साथी और प्रेम चाहिए। पेरिस, आर्ट गैलरीज की विजिट्स, थिएटर, बॉल और वाल्ट्ज चाहिए।
पुरुषों की गैर-जिम्मेदार प्रवृत्ति फ्लॉबेयर की निगाह से छिपी नहीं रही। प्रेम में पुरुष स्त्री के बराबर पैशनेट हो सकता है, लेकिन उत्तरदायी नहीं है। पति पुरुष चार्ल्स को लक्ष्य करके जो बात फ्लॉबेयर ने कही है, वह कम मूल्यवान नहीं है। उसमें भी जीवन के सबक हैं।
कैसा है एमा का पति? उपन्यास उसका चित्रण करता है। चार्ल्स, सीधा-साधा डॉक्टर। कुशलता, नाक नक्श, जीवन सब साधारण हैं, उत्तेजनाएं, व्यसन, रोमांचक कुछ है ही नहीं है। चेहरा मोटा होता हुआ, आंखें छोटी होती हुई, पेट निकलता हुआ, खर्राटों का शोर बढ़ता हुआ और जाहिर है, समय के साथ यह सब एमा बोवारी को बदरंग, नीरस, उबाऊ, चिढ़भरा लगने लगता है। लगातार अधिक बुरा लगता हुआ।
नाबोकोव ने मैडम बोवरी के विषय में कहा, ‘एक किताब एक लड़की से अधिक लंबे समय जीवित रहती है।’ फ्रेंच लेखक गुस्तॉव फ्लॉबेयर ने 30 साल की उम्र में अपना पहला उपन्यास 1856 में सिरीज के रूप में प्रकाशित कराया था। इसे लिखने में उन्हें 5 साल का लंबा समय लगा था और पेरिस की एक पत्रिका ‘ला रेव्यू ड पेरिस’ में यह 1 अक्तूबर 1856 से 15 दिसम्बर 1856 प्रकाशन के तत्काल बाद इस किताब पर मुकदमा चला।
पब्लिक अभियोक्ता ने आक्रमण करते हुए केस दायर कर दिया। इस पर अश्लीलता का आरोप लगा। फ्लॉबेयर व्यभिचार के पक्ष में बोल रहे हैं। उदाहरण दिया गया, ‘आई हैव ए लवर!’ फ्लॉबेयर को बरी कर दिया गया, पर जज ने फैसले में कहा, ‘शरारती लड़के, क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि साहित्य का एक मिशन है। आत्मा को उच्च स्तर पर ले जाना, न कि बुराई को संत्रास की एक वस्तु के रूप में दिखलाना?’
उन्मुक्त एमा पर समाज के नियम तोड़ने, पति को धोखा देने, विवाह संस्था को बदनाम करने, परिवार की मर्यादा को भंग करने, मातृत्व को उपेक्षित करने और न जाने कौन-कौन से लांछन लगे। तमाम आरोपों के साथ मैडम बोवरी पर चारों ओर से प्रहार होने लगे। समाज जब लीक से हट कर चलने वाले व्यक्ति को समझ नहीं पाता है, तो उस पर थू-थू तो कर ही सकता है।
एमा के साथ उसने तब यही किया, आज भी यदि कोई एम्मा है, तो उसके साथ यही किए जाने की अधिक संभावना है। मगर क्या एम्मा अनैतिक है? शायद वह नैतिक अथवा अनैतिक न हो कर अ-नैतिक (अमोरल) है। एमा के काल में नारीवाद का नामोनिशान न था, वरना इसे लोग ले उड़ते और खूब विचार-विमर्श चलता। अब लगातार चल रहा है।
1982 के नोबेल पुरस्कृत रचनाकार गैब्रियल गार्षा मार्केस ने कहा था, वे एड्स से नहीं, प्रेम में मरना चाहते हैं। एमा बोवरी एड्स से नहीं मरी, उन दिनों की अधिकतर लोगों को होने वाली बीमारी टीबी से भी नहीं मरी। वह प्रेम से और प्रेम में भी नहीं मरी। मगर वह प्रेम विहीन वैवाहिक जीवन और प्रेम की छलना से मरी। प्रार्थना है, किसी को ऐसी भयंकर त्रासद मौत न मिले।
‘उपन्यासकारों का उपन्यासकार’
गुस्तॉव फ्लॉबेयर की उत्कृष्ट शैली और नए तरीके के कथन के कारण हेनरी जेम्स उन्हें ‘उपन्यासकारों का उपन्यासकार’ कहते हैं। मार्शल प्रूस्त फ्लॉबेयर की शैली की व्याकरणिक शुद्धता की प्रशंसा करते हैं, तो वाल्दिमीर नाबोकोव कहते हैं कि स्टाइल की दृष्टि से जो काव्य को करना चाहिए, वह इसका गद्य करता है।
मिलन कुंदेरा मानते हैं, ‘मैडम बोवरी’ के पूर्व गद्य को पद्य की ऊंचाई का दर्जा प्राप्त न था, उसे कमतर माना जाता था। इसने उपन्यास कला को काव्य की बराबरी दी है। जिओर्जिओ डे चिरिको मानते हैं, नरेटिव पॉइंट से ‘मैडम बोवरी’ फ्लॉबेयर की सर्वाधिक पूर्ण किताब है। गुस्तॉव फ्लॉबेयर का असर भाषा, साहित्य तथा समाज सब पर पड़ा।
रेनुआं, चब्रोल, मिनेली के बाद भी एम्मा पर फिल्म बनाने का सिलसिला रुका नहीं है। 1964 में बीबीसी मिनी सिरीज बनी और इस बार एम्मा बनी नायरी डॉन पोर्टर। 1975 में बीबीसी ने फिर फ्रांसिस्का एनिस को ले कर ‘मैडम बोवरी’ बनाई।
सन 2000 में एक भव्य साज-सज्जा के साथ टीवी फिल्म बनी, जिसमें फ्रांसेस ओ’कोन्नोर ने एम्मा की भूमिका निभाई। 2014 में युवा फ्रेंच निर्देशिका सोफी बार्थ ने एम्मा की भूमिका में मिआ वासिकोवस्का को परदे पर उतारा।
हालांकि फ्लॉबेयर की माने तो यह हास्यास्पद रचना है, जैसा उसने 1852 में अपनी मिस्ट्रेस को लिखा, ‘मैं सोचता हूं, यह पहली बार होगा जब कोई किताब अपनी नायिका और इसके प्रमुख पुरुष की हंसी उड़ा रही होगी। शैक्षिक जगत इसे विडम्बना कहता है, मैं इसे हास्यास्पद कहता हूं।’
विडम्बना हो, हास्यजनक हो अथवा आत्ममुग्धता हो या फिर बेवफाई हो, पर है यह एक कालजयी रचना। इसकी नायिका एमा बोवरी मात्र कुछ दशक जीवित रही (फ्रांसिस स्टीगमुलर के अनुमान से उपन्यास अक्टूबर 1827 में प्रारंभ हो कर अगस्त 1846 में समाप्त होता है।) मगर उपन्यास ‘मैडम बोवरी’ आज करीब दो सदी के बाद भी जीवित है और इसमें शक नहीं कि आगे भी जीवित रहेगा। न केवल जीवित है वरन विश्व साहित्य जगत में सम्मानित है। इस पर साहित्य के कई दिग्गजों ने लिखा है।
किताब का पूरा मांसल सौंदर्य, गुदाज प्रेम, लयात्मक गद्य अनुवाद संस्करणों में नहीं आ सकता है। इस पर बनीं फिल्में भी देखें।
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