भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच: ‘हैंड शेक स्ट्राइक’...पहले बल्ले से ठुकाई फिर जज्बात से धुलाई !
- सूर्यकुमार यादव की कप्तानी में एशिया कप क्रिकेट टूर्नामेंट में पहले भारतीय टीम ने पाक टीम को 7 विकेट से धोया और फिर पारंपरिक सौजन्य को बाउंड्री से बाहर कर भारतीय कप्तान ने पाक कप्तान सलमान अली आगा से हाथ तक न मिलाया।
- संदेश साफ था कि जब सामने वाले के दिल में काला हो तो अपने हाथ भी क्यों खराब किए जाएं।

विस्तार
नामुराद पाकिस्तान पर भारत की अब यह खेल मैदान में चौथी ‘हैंड शेक स्ट्राइक’ है। यानी सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, ऑपरेशन सिंदूर के बाद हलवाई स्ट्राइक और अब हैंड शेक स्ट्राइक।

सूर्यकुमार यादव की कप्तानी में एशिया कप क्रिकेट टूर्नामेंट में पहले भारतीय टीम ने पाक टीम को 7 विकेट से धोया और फिर पारंपरिक सौजन्य को बाउंड्री से बाहर कर भारतीय कप्तान ने पाक कप्तान सलमान अली आगा से हाथ तक न मिलाया। संदेश साफ था कि जब सामने वाले के दिल में काला हो तो अपने हाथ भी क्यों खराब किए जाएं। कुछ लोग इसे भारत की ‘स्पोर्टिंग डिप्लोमेसी’ (खेल कूटनीति) भी मान रहे हैं तो आलोचकों का तर्क है कि हमारी विेदेश नीति की कमजोरी को नई खेल कूटनीति से पाटा जा रहा है।
जो भी हो, दुबई के इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में भारत पाक मैच के बाद इस अप्रत्याशित ‘हैंड शेक स्ट्राइक’ से बौखलाए पाकिस्तानी टीम के कप्तान सलमान आगा ने मैच के उपरांत माइक पर आने से परहेज किया और पाक क्रिकेट बोर्ड ने आईसीसी में अपील कर इस घटनाक्रम के लिए मैच के रैफरी को दोषी मानते हुए टूर्नामेंट से हटाने की मांग की, जिसे अपेक्षानुरूप आईसीसी ने खारिज कर दिया।
हालांकि इतनी बेइज्जती के बाद पाक टीम टूर्नामेंट छोड़ने की धमकी दे रही है, हकीकत में ऐसा होने की संभावना कम है।
हैंड शेक न करने को लेकर बौखलाया पाकिस्तान
रहा सवाल बौखलाए पाकिस्तान द्वारा रेफरी एंडी पायक्रॉफ्ट को टूर्नामेंट से हटाने का तो यह मांग बेतुकी ही थी। रेफरी का काम मैच के दौरान खेल नियमों के मुताबिक निर्णय देना है न कि प्रतिद्वंद्वी टीमों के कप्तानों के हाथ मिलवाना। हाथ मिलाना सौजन्य की परंपरा है, खेल रणनीति या दांव-पेंच का हिस्सा नहीं।
वैसे जानकारों का यह भी कहना है कि एशियन क्रिकेट काउंसिल (एसीसी) के कुछ अधिकारी, जिनमें पीसीबी (पाक क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड) के डायरेक्टर भी शामिल थे, को पहले से पता था कि दोनों कप्तान मैच के बाद हैंडशेक नहीं करेंगे। इसके बावजूद पीसीबी और उसके अध्यक्ष मोहसिन रजा नकवी, जो एसीसी के अध्यक्ष भी हैं, ने बखेड़ा खड़ा किया।
पीसीबी की लिखित शिकायत के मुताबिक रेफरी एंडी पायक्रॉफ्ट ने पाकिस्तान के कप्तान सलमान अली आगा को सुझाव दिया था कि वे सूर्यकुमार यादव से हाथ न मिलाएं। ऐसा करना आचार संहिता का उल्लंघन है। लेकिन जय शाह की अध्यक्षता वाली आईसीसी ने जांच के बाद पीसीबी की मांग को खारिज कर दिया।
हालांकि इसके बाद तिलमिलाए पाक ने अपना गुस्सा अपने इंटरनेशनल क्रिकेट ऑपरेशंस के डायरेक्टर उस्मान वहला को निलंबित कर उतारा। कहा गया कि उस्मान हैंडशेक विवाद पर समय रहते कदम नहीं उठा पाए।
पाक टीम से हाथ मिलाने से इंकार, इस मैच के पहले भारत-पाक मैच की मुखालिफत करने वालों को भी संदेश है कि मैच भले खेल भावना को कायम रखने के लिए खेला गया, लेकिन जीत हासिल होने के बाद हाथ मिलाने की कोई मुरव्वत नहीं की गई।
सूर्यकुमार यादव ने कहा कि हम खिलाड़ी हैं, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर में हुए आतंकी हमले में षड्यंत्रपूर्वक मारे गए लोगों के दुख में सहभागी हैं। कुछ बातें खेल भावना से ऊपर होती हैं। यह जीत हम देश और भारतीय सेना को समर्पित करते हैं।
सोशल मीडिया पर लोग इसे भारत का "साइलेंट बॉयकॉट" (सांकेतिक बहिष्कार) बता रहे हैं। मैच के बाद भारतीय खिलाडि़यों ने ड्रेसिंग रूम भी भीतर से बंद कर लिया। उधर हार के मारे पाक खिलाड़ी बाहर मैदान पर इंतजार ही करते रहे।
'पहले बल्ले से ठुकाई फिर जज्बात से धुलाई'
भारतीय टीम द्वारा विरोध और दिली जज्बे के इजहार का यह तरीका एकदम अलग और सुनियोजित था। यानी पहले बल्ले से ठुकाई और बाद में जज्बात से धुलाई। हालांकि बहुत से लोगों को लगता था कि ऑपरेशन सिंदूर का रंग पोंछे हुए अभी 6 महीने भी नहीं कि दुश्मन पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना कौन सी इंसानियत है, कौन सी खेल भावना है।
सौहार्द का जवाब अगर सामने वाला संगीनों से दे तो काहे की आपसदारी? ऐसे दुश्मन का, भले ही वो पड़ोसी क्यों न हो, हर मंच, हर मौके और हर कीमत पर बहिष्कार करना ही विरोध का श्रेष्ठ तरीका है। पाक के साथ खेलना अपने गुस्से पर खुद ही मरहम लगाने जैसा होगा। कहा तो यह भी गया कि बीसीसीआई ने एशिया कप से होने वाली कमाई के लालच में पाक के साथ खेलने से परहेज नहीं किया (इस बारे में बताया जाता है कि बीसीसीआई एसीसी की कमाई में हिस्सा नहीं लेती। यह कमाई दूसरे देशों के क्रिकेट कंट्रोल बोर्डों के बीच बराबर बंटती है)।
इससे भी बढ़कर हैरानी यह थी कि हर मुनासिब मौके पर पाक को कोसने वाली मोदी सरकार ने भी इस तरह खेलने को मंजूरी कैसे दे दी जबकि खुद मोदी ने शंघाई सहयोग सम्मेलन में पाक पीएम शहबाज शरीफ से हाथ मिलाना तो दूर, उनकी तरफ देखा तक नहीं। जबकि यहां भारतीय टीम पैड बांधकर पाक के साथ खेलने पिच पर उतर गई थी।

पूर्व नियोजित मिस्ट्री स्क्रिप्ट
दरअसल एशिया कप के दौरान दुबई की रेतीली जमीन पर घटा यह एपीसोड एक पूर्व नियोजित मिस्ट्री स्क्रिप्ट की तरह था। भारतीय क्रिकेट टीम मानों ऑपरेशन सिंदूर का बदला अपने तरीके से लेने दुबई गई थी। वो शानदार तरीके से भिड़ी और जीत का परचम अपने नाम किया। हकीकत में भारतीय टीम को पाक के साथ खेलने की मंजूरी को ही पाकिस्तान ने अपनी आधी जीत मान लिया था। समझ लिया था कि गेंद और बल्ले का यह मुकाबला आंतकियों द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के त्रासद नरसंहार की पीड़ा को हल्के में बदल देगा।
मैच कोई जीते या हारे, पाकिस्तान गाल बजाता फिरेगा कि वह भारत को फिर दोस्ती के पिच पर ले आया है। यही वही ‘टर्निंग पॉइंट’ होता, जिसे भारत को माइनस करना था और उसने किया। बाद में खुलासा हो गया कि मैच के बाद पाक कप्तान से हाथ न मिलाने का फैसला, टीम, मैनेजमेंट, कोच और परोक्ष रूप से भारत सरकार का था कि पाक को उसकी औकात दिखा दी जाए।
हालांकि इसमें खतरा यह भी था कि भारतीय टीम के रणबांकुरे अगर मैच हार जाते तो क्या होता? क्या यह एपीसोड हो पाता? उस स्थिति में भारतीय कप्तान का पाक कैप्टन से हस्तांदोलन न करना अशिष्टता और ग्लानिवश समझा जाता। लेकिन भारतीय टीम ने वह अप्रिय क्षण आने ही नहीं दिया।
पांच मिनट के घटनाक्रम ने रचा सदियों का इतिहास
दुबई के इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम पर मैच के पश्चात पांच मिनट में घटे उस घटनाक्रम ने मानो सदियों का इतिहास लिख डाला। क्योंकि खेल में भौतिक जीत को नैतिक जीत से अलग नहीं किया जा सकता। किसी भी खेल में जमैच समाप्ति के बाद प्रतिद्वंद्वी खिलाडि़यों का हाथ मिलाना केवल इस सौजन्य का प्रतीक है कि खेल में हार-जीत चलती रहती है, लेकिन दिलों का रिश्ता कायम रहना चाहिए। लेकिन इसका औचित्य तभी है, जब रिश्तों की पवित्रता और विश्वास कायम रखने का प्रयास दोनो तरफ से हो। आज दुनिया में हाथ मिलाना सौजन्य का वैश्विक प्रतीक है।
इसकी शुरूआत तो पश्चिम से हुई, लेकिन अब हाथ मिलाना शिष्टाचार की पहचान बन गया है। हालांकि भारतीय परंपरा में हाथ मिलाना कभी भी सौजन्य, स्नेह और आदर का परिचायक नहीं रहा। यहां पैर छूना आदर का प्रतीक और हाथ जोड़ना सौजन्य का प्रतीक है। यह अलग बात है कि देश में हाथ मिलाने की संस्कृति लोकप्रिय होने के बाद ‘हाथ जोड़ लेना’ भी व्यंग्यात्मक मुहावरा बन गया। कई देशों में हाथ मिलाने से ज्यादा गले मिलना महत्वपूर्ण माना जाता है।
वैसे दुनिया में हाथ मिलाने को विश्व शांति और मानवीय भाई चारे के रूप में भी देखा जाता है। अब तक लोगों से हाथ मिलाने का सबसे लंबा रिकाॅर्ड यूएई के अबू धाबी में 29 जनवरी 2020 को बना, जब वहां के उम्म अल इमरत पार्क में 1817 लोगों ने हाथ मिलाए। इसका आयोजन अबू धाबी पुलिस ने विश्व शांति, साहचर्य और मानव बंधुत्व के दस्तावेज पर हस्ताक्षर की पहली सालगिरह पर किया था। लेकिन रिकॉर्ड बनाने की नीयत से हाथ मिलाना अलग बात है और जज्बात को अभिव्यक्त करने के लिए हाथ मिलाना दूसरी बात।
हाथ और दिल का एक होना परस्पर स्नेहाकांक्षा का प्रतीक है, बशर्ते कि वैसा हो। अगर शायर शाहिद कबीर के लफ्जों में कहें तो ‘दिल से मिलने की तमन्ना ही नहीं जब दिल में हाथ से हाथ मिलाने की जरूरत क्या है..?
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