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जीवन धारा: वेदना के बिना चेतना का जन्म नहीं होता, वहीं से व्यक्तित्व का विकास शुरू
अमर उजाला ब्यूरो
Published by: नितिन गौतम
Updated Mon, 15 Dec 2025 06:31 AM IST
सार
जिस चीज से आपको डर लगता है, वही आपको बढ़ने, खुद को समझने और अपने जीवन के गहरे सत्य को जानने का अवसर देती है, और उसका सामना करना आपका काम है, जो व्यक्तित्व विकास की ओर ले जाता है।
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वेदना के बिना चेतना नहीं
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
कार्ल जंग
जब आप बचपन में ऐसी किसी क्रिया में डूब जाते थे कि समय पलों में गुजर जाता था, वह मेहनत की वजह से नहीं, बल्कि आनंद, स्वाभाविक जिज्ञासा और पूरी तरह जीने की लालसा की वजह से था। बचपन की मासूमियत, लगन और आत्मा की आवाज में ही आपके सांसारिक कार्यों की कुंजी छिपी है। जहां आपका भय है, वहीं आपका कार्य है। इसका सीधा-सा मतलब है कि जिस चीज से आपको डर लगता है, वही चीज आपको बढ़ने, खुद को समझने और अपने जीवन के गहरे सत्य को जानने का अवसर देती है, और उस डर का सामना करना ही आपका असली काम है, जो व्यक्तिगत विकास की ओर ले जाता है।
वेदना के बिना चेतना का जन्म नहीं होता। व्यक्तित्व का असली विकास और आत्म-मिलन वहीं से शुरू होता है, जब हम अपने अचेतन हिस्सों और अपने डर से पर्दा हटाते हैं। यदि आप अपने भीतर की आवाज सुनें, बचपन की उस मासूमियत, उस आनंद, उस भय-रहित जिज्ञासा को फिर से जगाकर अपने जीवन की दिशा बनाएं, तो आपकी यात्रा न केवल अर्थपूर्ण होगी, बल्कि आपकी आत्मा समृद्ध और सच्ची होगी। जब आप किसी भी कार्य को वैसे ही करते हैं, जैसे बचपन में एकाग्र भाव से करते थे, बिना परिणाम की चिंता, बिना दूसरों की राय के, तो आपके कर्म, आपकी राह, आपकी ‘सांसारिक गतिविधियां स्वाभाविक हो जाएंगी। फिर संघर्ष, डर, असफलता भी उस सफर का हिस्सा बन जाएंगे, वे आपको कमजोर नहीं करेंगे, बल्कि आपकी चेतना को और गहरा बनाएंगे। हर वह पल, जब आप पूरी तरह ‘वर्तमान’ में होते थे, तो वह आपकी आत्मा से जुड़ा होता था और तब समय का एहसास नहीं होता था। वही आपकी असली दिशा है।
एक बार जब आपने उस दिशा को पहचान लिया, अपने बाल-सुलभ उत्साह, मासूमियत, जिज्ञासा और सच्ची लगन को, तो आपकी जिंदगी की राह खुद ही बन जाएगी। फिर आप किसी बाहरी मान्यता, किसी बाहरी ‘सफलता’ या ‘स्वीकृति’ के पिंजरे में नहीं बंधेंगे, क्योंकि आपकी दिशा, आपकी मंजिल, आपकी आत्मा की सच्ची पुकार होगी। जीवन का सच्चा जागरण है, अपने भीतर के सत्य के साथ चलना, और उसी के अनुरूप अपने संसार को अर्थ देना। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, प्रवाह की अवस्था में प्रवेश करना अधिक कठिन हो जाता है। हमारी जिम्मेदारियां बढ़ती हैं, हम अधिक दायित्व लेते हैं, तो बचपन की उन गतिविधियों से नाता तोड़ना आसान होता है, जो कभी हमें पूरी तरह से अपने में समाहित कर लेती थीं।
हालांकि, हम ठोस प्रयास से किसी भी उम्र में प्रवाह प्राप्त कर सकते हैं। अपने बचपन की खुशी पर विचार करें और उसी खुशी से वर्तमान गतिविधियों में जुट जाएं। चुनौतियों का पीछा करें, लक्ष्य निर्धारित करें और प्रवाह के शाश्वत आनंद का अनुभव करें। प्रत्येक वयस्क में एक बच्चा छिपा होता है, एक शाश्वत बच्चा, कुछ ऐसा जो हमेशा बनता रहता है, कभी पूरा नहीं होता है, और निरंतर देखभाल, ध्यान और शिक्षा की मांग करता है। यह व्यक्तित्व का वह हिस्सा है, जो हरदम विकसित होना और संपूर्ण होना चाहता है। अपने जीवन काल में इस बचपन को हमेशा जीवित रखने का प्रयास करें।
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जब आप बचपन में ऐसी किसी क्रिया में डूब जाते थे कि समय पलों में गुजर जाता था, वह मेहनत की वजह से नहीं, बल्कि आनंद, स्वाभाविक जिज्ञासा और पूरी तरह जीने की लालसा की वजह से था। बचपन की मासूमियत, लगन और आत्मा की आवाज में ही आपके सांसारिक कार्यों की कुंजी छिपी है। जहां आपका भय है, वहीं आपका कार्य है। इसका सीधा-सा मतलब है कि जिस चीज से आपको डर लगता है, वही चीज आपको बढ़ने, खुद को समझने और अपने जीवन के गहरे सत्य को जानने का अवसर देती है, और उस डर का सामना करना ही आपका असली काम है, जो व्यक्तिगत विकास की ओर ले जाता है।
वेदना के बिना चेतना का जन्म नहीं होता। व्यक्तित्व का असली विकास और आत्म-मिलन वहीं से शुरू होता है, जब हम अपने अचेतन हिस्सों और अपने डर से पर्दा हटाते हैं। यदि आप अपने भीतर की आवाज सुनें, बचपन की उस मासूमियत, उस आनंद, उस भय-रहित जिज्ञासा को फिर से जगाकर अपने जीवन की दिशा बनाएं, तो आपकी यात्रा न केवल अर्थपूर्ण होगी, बल्कि आपकी आत्मा समृद्ध और सच्ची होगी। जब आप किसी भी कार्य को वैसे ही करते हैं, जैसे बचपन में एकाग्र भाव से करते थे, बिना परिणाम की चिंता, बिना दूसरों की राय के, तो आपके कर्म, आपकी राह, आपकी ‘सांसारिक गतिविधियां स्वाभाविक हो जाएंगी। फिर संघर्ष, डर, असफलता भी उस सफर का हिस्सा बन जाएंगे, वे आपको कमजोर नहीं करेंगे, बल्कि आपकी चेतना को और गहरा बनाएंगे। हर वह पल, जब आप पूरी तरह ‘वर्तमान’ में होते थे, तो वह आपकी आत्मा से जुड़ा होता था और तब समय का एहसास नहीं होता था। वही आपकी असली दिशा है।
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एक बार जब आपने उस दिशा को पहचान लिया, अपने बाल-सुलभ उत्साह, मासूमियत, जिज्ञासा और सच्ची लगन को, तो आपकी जिंदगी की राह खुद ही बन जाएगी। फिर आप किसी बाहरी मान्यता, किसी बाहरी ‘सफलता’ या ‘स्वीकृति’ के पिंजरे में नहीं बंधेंगे, क्योंकि आपकी दिशा, आपकी मंजिल, आपकी आत्मा की सच्ची पुकार होगी। जीवन का सच्चा जागरण है, अपने भीतर के सत्य के साथ चलना, और उसी के अनुरूप अपने संसार को अर्थ देना। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, प्रवाह की अवस्था में प्रवेश करना अधिक कठिन हो जाता है। हमारी जिम्मेदारियां बढ़ती हैं, हम अधिक दायित्व लेते हैं, तो बचपन की उन गतिविधियों से नाता तोड़ना आसान होता है, जो कभी हमें पूरी तरह से अपने में समाहित कर लेती थीं।
हालांकि, हम ठोस प्रयास से किसी भी उम्र में प्रवाह प्राप्त कर सकते हैं। अपने बचपन की खुशी पर विचार करें और उसी खुशी से वर्तमान गतिविधियों में जुट जाएं। चुनौतियों का पीछा करें, लक्ष्य निर्धारित करें और प्रवाह के शाश्वत आनंद का अनुभव करें। प्रत्येक वयस्क में एक बच्चा छिपा होता है, एक शाश्वत बच्चा, कुछ ऐसा जो हमेशा बनता रहता है, कभी पूरा नहीं होता है, और निरंतर देखभाल, ध्यान और शिक्षा की मांग करता है। यह व्यक्तित्व का वह हिस्सा है, जो हरदम विकसित होना और संपूर्ण होना चाहता है। अपने जीवन काल में इस बचपन को हमेशा जीवित रखने का प्रयास करें।