Nanda Devi Nuclear Mystery: चीन की जासूसी का मिशन और नंदा देवी पर्वत पर गुम हो चुके न्यूक्लियर डिवाइस की कहानी
आज हम आपको एक अनोखी न्यूक्लियर मिस्ट्री के बारे में बताने जा रहे हैं। ये घटना नंदा देवी पर्वत पर गुम हो चुके प्लूटोनियम कैप्सूल की है। यह न्यूक्लियर डिवाइस आज भी हिमालय के पर्वतों पर कहीं गुम है।
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Nanda Devi Nuclear Device Mystery Explained: सोमवार को भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लेकर गंभीर दावे किए। उन्होंने कहा कि 1960 के दशक में भारत ने कथित तौर पर अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए को हिमालय क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर नजर रखने के उद्देश्य से नंदा देवी पर्वत पर परमाणु ऊर्जा से चलने वालेे एक विशेष निगरानी उपकरण लगाने की अनुमति दी थी।
दुबे के अनुसार यह गोपनीय अभियान अलग-अलग चरणों में संचालित हुआ। उनका दावा है कि इसकी शुरुआत 1964 में नेहरू के कार्यकाल के दौरान हुई, जबकि बाद के चरण 1967 और 1969 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते पूरे किए गए।
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि जब अमेरिकी कर्मियों के वहां से हटने के बाद, परमाणु ऊर्जा से संचालित वह निगरानी उपकरण पर्वत पर ही छोड़ दिया गया। उनका कहना है कि इस वजह से हिमालय जैसे अत्यंत संवेदनशील पर्यावरणीय क्षेत्र में रेडियोधर्मी पदार्थों के फैलने का गंभीर खतरा पैदा हुआ। इसी कड़ी में आज हम आपको एक अनोखी न्यूक्लियर मिस्ट्री के बारे में बताने जा रहे हैं। ये घटना नंदा देवी पर्वत पर गुम हो चुके 7 प्लूटोनियम कैप्सूल्स की है। यह न्यूक्लियर डिवाइस आज भी हिमालय के पर्वतों पर कहीं गुम है। फिलहाल किसी को भी इस डिवाइस के बारे में कुछ नहीं पता। अगर गलती से भी यह डिवाइस गंगा या हिमालयन रेंज से निकलने वाली दूसरी नदियों के स्त्रोतों के संपर्क में आता है, तो इससे करोड़ों लोगों की जान पर खतरा आ सकता है।
ऐसे हुई इस कहानी की शुरुआत
नंदा देवी पर्वत पर गुम हो चुके इस न्यूक्लियर डिवाइस की कहानी की शुरुआत 1960 के दशक में होती है। साल 1964 में चीन अपने पहले न्यूक्लियर टेस्ट को अंजाम देता है। चीन के इस कदम को देखते हुए अमेरिका सतर्क हो जाता है।
गौरतलब बात है कि चीन जिस ऊंचाई वाले क्षेत्र पर अपने न्यूक्लियर टेस्ट को अंजाम दे रहा था, वहां पर सैटेलाइट के जरिए जासूसी करना मुमकिन नहीं था। ऐसे में अमेरिका, चीन की जासूसी करने के लिए भारत का रुख करता है।
1962 भारत-चीन युद्ध और देश की सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए भारत, अमेरिका के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है। इसके बाद जासूसी के लिए भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी पर्वत को चुना जाता है। मिशन को अंजाम देने के लिए ये स्ट्रैटिजिक रूप से काफी महत्वपूर्ण लोकेशन थी।
सीआईए और इंटेलिजेंस ब्यूरो ने मिलकर शुरू किया ज्वाइंट मिशन
इस मिशन की पूरी रूपरेखा तैयार की गई। एक खास तरह के न्यूक्लियर डिवाइस को बनाकर यह तय किया गया कि इसे भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी पर्वत पर ले जाया जाएगा। हालांकि, 56 किलोग्राम के इस डिवाइस को चोटी पर ले जाना काफी चुनौतीपूर्ण काम था।
ऐसे में इस डिवाइस को नंदा देवी पर्वत पर ले जाने की कमान मनमोहन सिंह कोहली को सौंपी जाती है। एम.एस कोहली उस दौरान भारत के मशहूर क्लाइंबर्स में से एक थे। मिशन को अंजाम देने के लिए अमेरिका की सीआईए और भारत की इंटेलिजेंस ब्यूरो साथ आकर एक स्पेशल टीम को तैयार करती है। इस टीम में दोनों देशों के सर्वश्रेष्ठ क्लाइंबर्स, इंटेलिजेंस ऑफिसर, न्यूक्लियर एक्सपर्ट और रेडियो इंजीनियर शामिल होते हैं।
साल 1965 में कैप्टन एम.एस कोहली के नेतृत्व में ये टीम 56 किलो के इस न्यूक्लियर डिवाइस को लेकर नंदा देवी पर्वत की चढ़ाई शुरू करती है। इस डिवाइस में लगभग 10 फीट का एक एंटीना, ट्रांसीवर और एक स्नैप जनरेटर था। इसके अलावा इसमें सात प्लूटोनियम कैप्सूल भी थे।
नंदा देवी पर्वत की चढ़ाई करना काफी मुश्किल काम था। पर्वतारोहण के दौरान जब टीम शिखर के नजदीक पहुंची ही थी कि तभी अचानक एक बड़ा बर्फीला तूफान आ गया। मामले की गंभीरता और टीम के लोगों की जान के खतरे को देखते हुए, एम.एस कोहली उस न्यूक्लियर डिवाइस को वहीं छोड़कर वापस नीचे उतरने का फैसला करते हैं। इस पर टीम की सहमति भी बन जाती है।
स्थिति सामान्य होने के बाद साल 1966 में टीम दोबारा उस न्यूक्लियर डिवाइस को लेने के लिए पर्वत पर जाती है। चौंकाने वाली घटना ये हुई कि जिस जगह पर न्यूक्लियर डिवाइस को रखा गया था, वह वहां पर नहीं मिला। इसके बाद डिवाइस को ढूंढने के लिए कई खोजबीन अभियान चलाए गए। पानी के सैंपलों को लेकर उसमें रेडियो एक्टिविटी की जांच भी की गई। इसके बाद भी न्यूक्लियर डिवाइस के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं मिली। आज भी ये न्यूक्लियर डिवाइस हिमालय के पर्वतों पर कहीं गुम है।
इस मिशन में जिस प्लूटोनियम पीयू 238 का इस्तेमाल किया गया था। उसकी आधी लाइफ अर्थात प्लूटोनियम पीयू 238 रेडियो आइसोटोप्स के आधे भाग को डिके होने में 88 साल लगेंगे, यानी गुम हो चुके इस प्लूटोनियम की आधी लाइफ स्पैन को डिके होने में अभी भी कई साल बचे हैं।
अगर निकट भविष्य में ये प्लूटोनियम, ऋषि गंगा या दूसरी नदियों के संपर्क में आकर उसको दूषित करता है। ऐसे में एक बड़ा संकट देश के समक्ष खड़ा हो सकता है, क्योंकि यही नदियां देश की प्यास बुझाती हैं, अगर ये रेडियोएक्टिव हो गईं, तो परिणाम आप सोच सकते हैं।
इस घटना पर लोकप्रिय फिल्म होम एलोन के डायरेक्टर स्कॉट रोसेनफेल्ट एक फिल्म बनाने की योजना बना रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस फिल्म में रणबीर कपूर कैप्टन कोहली के रूप में नजर आ सकते हैं।
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