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दूसरा पहलू: अतीत को वर्तमान से जोड़ती एक मूर्ति, समय और औचित्य से जुड़े कुछ प्रश्न
पीटर एडवेल
Published by: नितिन गौतम
Updated Wed, 17 Dec 2025 07:49 AM IST
सार
कुछ लोग इसे ईरान के प्रतिरोधी व गौरवशाली अतीत को वर्तमान से जोड़ने का प्रतीक मान रहे हैं। जून में ईरान पर हुई अमेरिकी बमबारी के बाद इसे राष्ट्रीय प्रतिरोध के रूप में भी देखा जा रहा है।
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'नीलिंग बिफोर ईरान' प्रतिमा
- फोटो : amar ujala print/Agency
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विस्तार
ईरान की राजधानी तेहरान के एंघेलाब स्क्वायर में हाल ही में एक मूर्ति का अनावरण किया गया। इसका शीर्षक ‘नीलिंग बिफोर ईरान (ईरान के सामने घुटनों पर)’ है। इसमें एक रोमन सम्राट को फारसी राजा शापुर प्रथम (लगभग 242-270 ईस्वी) के सामने घुटनों के बल झुका हुआ दिखाया गया है। लेकिन सवाल यह है कि यह मूर्ति आई कहां से? और यह अभी ही क्यों लगाई गई है?
तीसरी शताब्दी ईस्वी में प्राचीन ईरान में सासानी वंश सत्ता में आया। इसके पहले राजा अर्दशीर प्रथम ने मेसोपोटामिया में रोमन क्षेत्रों को चुनौती दी। रोमनों ने यह क्षेत्र पार्थियन से छीना था, जो सासानियन के पूर्वज थे। अर्दशीर इन क्षेत्रों को पुनः हासिल करना चाहता था। इसमें उसे कुछ हद तक सफलता भी मिली। उसका पुत्र व उत्तराधिकारी शापुर प्रथम इस संघर्ष को निर्णायक स्तर तक ले गया। 250 के दशक में शापुर ने इराक, सीरिया और तुर्किये के रोमन इलाकों पर आक्रमण किए। दो बड़ी रोमन सेनाएं पराजित हुईं। 253 ईस्वी में शापुर ने एंटिओक पर अधिकार पा लिया, जो रोमन साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण नगर था। उस समय तीरों की ऐसी भयानक वर्षा हुई थी कि थिएटर में मौजूद नागरिक भयभीत होकर भाग गए थे।
एडेसा (आज का दक्षिणी तुर्की) के युद्ध के बाद रोमन सम्राट वैलेरियन को जीवित बंदी बना लिया गया। यह इतिहास में पहली और एकमात्र बार था, जब किसी रोमन सम्राट को दुश्मन ने जिंदा पकड़ा था। वैलेरियन को हजारों बंदियों के साथ फारस ले जाया गया। उसे लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हुईं। एक के अनुसार, उसे शुश्तर में करुण नदी पर पुल निर्माण के लिए मजबूर किया गया, जिसके अवशेष आज भी बंद-ए-कैसर (सम्राट का पुल) के रूप में मौजूद हैं। दूसरी कथा में कहा जाता है कि शापुर ने वैलेरियन को घुटनों के बल झुकाकर अपने घोड़े पर चढ़ने के लिए इस्तेमाल किया था। शापुर ने रोम पर अपनी विजय को पूरे साम्राज्य में शिल्पों व शिलालेखों के माध्यम से दर्शाया।
दक्षिणी ईरान के नक्श-ए-रुस्तम का प्रसिद्ध शिलालेख तीन भाषाओं में इन विजयों का वर्णन करता है। तेहरान की नई मूर्ति इन्हीं सासानी शिल्पों से प्रेरित मानी जाती है। हालांकि, घुटनों पर बैठा व्यक्ति फिलिप प्रथम माना जाता है, पर आधिकारिक रूप से इसे वैलेरियन बताया गया है। नगर सुंदरीकरण संगठन के प्रमुख मेहदी मजहबी के अनुसार, यह मूर्ति ईरान के प्रतिरोधी इतिहास और उसके गौरवशाली अतीत को वर्तमान से जोड़ने का प्रतीक है। जून में ईरान पर हुई अमेरिकी बमबारी के बाद मूर्ति को राष्ट्रीय प्रतिरोध के रूप में भी देखा जा रहा है। शापुर की विजयगाथा 1,700 वर्ष से भी पुरानी है, जबकि ईरान अभी भी उसका जश्न मनाता है।
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तीसरी शताब्दी ईस्वी में प्राचीन ईरान में सासानी वंश सत्ता में आया। इसके पहले राजा अर्दशीर प्रथम ने मेसोपोटामिया में रोमन क्षेत्रों को चुनौती दी। रोमनों ने यह क्षेत्र पार्थियन से छीना था, जो सासानियन के पूर्वज थे। अर्दशीर इन क्षेत्रों को पुनः हासिल करना चाहता था। इसमें उसे कुछ हद तक सफलता भी मिली। उसका पुत्र व उत्तराधिकारी शापुर प्रथम इस संघर्ष को निर्णायक स्तर तक ले गया। 250 के दशक में शापुर ने इराक, सीरिया और तुर्किये के रोमन इलाकों पर आक्रमण किए। दो बड़ी रोमन सेनाएं पराजित हुईं। 253 ईस्वी में शापुर ने एंटिओक पर अधिकार पा लिया, जो रोमन साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण नगर था। उस समय तीरों की ऐसी भयानक वर्षा हुई थी कि थिएटर में मौजूद नागरिक भयभीत होकर भाग गए थे।
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एडेसा (आज का दक्षिणी तुर्की) के युद्ध के बाद रोमन सम्राट वैलेरियन को जीवित बंदी बना लिया गया। यह इतिहास में पहली और एकमात्र बार था, जब किसी रोमन सम्राट को दुश्मन ने जिंदा पकड़ा था। वैलेरियन को हजारों बंदियों के साथ फारस ले जाया गया। उसे लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हुईं। एक के अनुसार, उसे शुश्तर में करुण नदी पर पुल निर्माण के लिए मजबूर किया गया, जिसके अवशेष आज भी बंद-ए-कैसर (सम्राट का पुल) के रूप में मौजूद हैं। दूसरी कथा में कहा जाता है कि शापुर ने वैलेरियन को घुटनों के बल झुकाकर अपने घोड़े पर चढ़ने के लिए इस्तेमाल किया था। शापुर ने रोम पर अपनी विजय को पूरे साम्राज्य में शिल्पों व शिलालेखों के माध्यम से दर्शाया।
दक्षिणी ईरान के नक्श-ए-रुस्तम का प्रसिद्ध शिलालेख तीन भाषाओं में इन विजयों का वर्णन करता है। तेहरान की नई मूर्ति इन्हीं सासानी शिल्पों से प्रेरित मानी जाती है। हालांकि, घुटनों पर बैठा व्यक्ति फिलिप प्रथम माना जाता है, पर आधिकारिक रूप से इसे वैलेरियन बताया गया है। नगर सुंदरीकरण संगठन के प्रमुख मेहदी मजहबी के अनुसार, यह मूर्ति ईरान के प्रतिरोधी इतिहास और उसके गौरवशाली अतीत को वर्तमान से जोड़ने का प्रतीक है। जून में ईरान पर हुई अमेरिकी बमबारी के बाद मूर्ति को राष्ट्रीय प्रतिरोध के रूप में भी देखा जा रहा है। शापुर की विजयगाथा 1,700 वर्ष से भी पुरानी है, जबकि ईरान अभी भी उसका जश्न मनाता है।