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गोवर्धन असरानी की यादें: कभी परदे पर मुस्कुराने वाले इस सितारे ने कहा था- हम लोग जिंदगी को बारीकी से देखते हैं

एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला Published by: लव गौर Updated Wed, 22 Oct 2025 05:52 AM IST
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सार

Memories of Govardhan Asrani: हास्य कलाकार दुखी लोग नहीं होते हैं। हम लोग जिंदगी को बारीकी से देखते हैं। इससे हंसी की एक नई दुनिया खुलती है।
 

Memories of Govardhan Asrani once ths smiling star said we observe life closely excerpts from interview
मशहूर अभिनेता असरानी का 84 साल की उम्र में निधन - फोटो : ANI
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विस्तार
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पहली बार युवावस्था में जब मैं मुंबई गया था, तो एक महीने तक संगीतकार नौशाद को ढूंढता रहा था। मुझे उम्मीद थी कि अभिनय का काम दिलाने में वह मेरी मदद करेंगे। जब कुछ नहीं हुआ, तो मैं अपने गृह शहर जयपुर लौट आया, जहां मेरे माता-पिता ने पारिवारिक कालीन की दुकान पर काम करने के लिए कहा। लेकिन मैं तो अभिनय करना चाहता था, इसलिए मैंने एफटीआईआई में दाखिले के लिए आवेदन किया, और उसके पहले बैच में दाखिला ले लिया। हालांकि, 1966 में मैंने एफटीआईआई का कोर्स पूरा कर लिया, लेकिन यह अभिनेता बनने का पासपोर्ट नहीं था। काम मिलना मुश्किल था। उस समय किसी को यकीन नहीं था कि आप किसी संस्थान से अभिनय सीख सकते हैं, इसलिए मैंने संस्थान में प्रशिक्षक की नौकरी कर ली। लेकिन छह साल तक, हर शुक्रवार शाम, मैं अभिनय के मौके ढूंढने के लिए पुणे से मुंबई डेक्कन क्वीन में जाता था। तब टिकट की कीमत छह रुपये और छह आने थी।
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एक बार हृषिकेश मुखर्जी गुलजार साहब के साथ संस्थान में आए। मैंने उन्हें मुझे काम देने के बारे में याद दिलाया। हृषिदा ने कहा, ‘देगा, काम देगा। पहले ये बताओ जया भादुड़ी कौन है?’ जया तब संस्थान में छात्रा थीं। जया ने सत्यजीत रे के साथ ‘महानगर’ (1963) में काम किया था। रे ने ही हृषिदा से उनकी सिफारिश की थी। जया कैंटीन में चाय पी रही थीं। जब उन्हें बताया गया कि हृषिदा उससे मिलने आए हैं, तो वह उनसे मिलने के लिए दौड़ पड़ीं। जब हृषिदा जाने वाले थे, तो मैंने उनसे पूछा, ‘दादा मेरा?’ उन्होंने जवाब दिया, ‘तुम्हारा कुछ नहीं। जब मैं पत्र भेजूं, तो आना!’ तीन महीने बाद एक चिट्ठी आई, लेकिन वह जया भादुड़ी के लिए थी। संस्थान में हलचल मच गई। लेकिन अंततः मुझे ‘गुड्डी’ में दो सीन का रोल मिल ही गया-एक ऐसे लड़के का, जो हीरो बनने आता है, लेकिन जूनियर आर्टिस्ट बन जाता है। हृषिदा ने मुझे पुणे से मुंबई तक फर्स्ट क्लास में सफर करने के पैसे भी दिए। उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। हृषिदा ने मुझे अपनी सभी फिल्मों में शामिल किया। उनके आखिरी दिनों में जब मैं उनसे मिलने अस्पताल गया, तो उन्होंने एक कागज पर ‘असरानी मुखर्जी’ लिखकर मुझे दिया। उनका मतलब था, ‘तुम मेरे बेटे जैसे हो।’ मेरे जीवन में सबसे बुरा दौर तब आया, जब मैंने ‘चला मुरारी हीरो बनने’ का निर्देशन करना चाहा। कोई भी मेरे साथ काम नहीं करना चाहता था। जिन दोस्तों के साथ मैं उठता-बैठता था, वे ही मेरी फिल्म नहीं करना चाहते थे। मैं एक सह-अभिनेता के रूप में ठीक था, निर्देशक के रूप में नहीं। वे मुझसे बचने के बहाने ढूंढते-‘स्क्रिप्ट अच्छी है, लेकिन इस पर काम करो।’ दरअसल, हीरो एक तरह की उलझन से ग्रस्त होते हैं कि वह तो कॉमेडियन है, उससे हुक्म क्यों लेना?
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मैं स्क्रिप्ट लेकर गुलशन राय के पास भी गया था। उन्होंने मुझे एक ईमानदार सलाह दी, ‘जिस दिन तुमने खुद को निर्देशक के रूप में घोषित दिया, उसी दिन एक अभिनेता के रूप में तुम्हारी विश्वसनीयता खत्म हो गई। आईएस जौहर, महमूद, जॉनी वॉकर, देवेन वर्मा का उदाहरण ले लो।’ मैं समझ गया। इसलिए भले ही मैंने चला मुरारी... फिल्म बनाई, लेकिन मैं अभिनय में लौट आया। मुझे काम के बाद अपने साथियों के साथ घुलने-मिलने की निरर्थकता का एहसास हुआ। आप पूरा दिन एक-दूसरे के साथ रहते हैं। गपशप करते रहते हैं। यह समय और ऊर्जा की बर्बादी है। अगले दिन आपको उनसे फिर मिलना होगा। यह धारणा कि हास्य कलाकार दुखी लोग होते हैं, गलत है। हां, मैं जीवन का एक पर्यवेक्षक हूं और इसी बात ने मेरी कला को आगे बढ़ाने में मदद की है। बड़े निर्देशक आपको अच्छा भुगतान नहीं करते हैं, लेकिन वे आपकी प्रतिभा का खूबसूरती से दोहन करते हैं। ज्यादा बातचीत करने से आपकी रचनात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है। मुझे इसका एहसास देर से हुआ, लेकिन तब तक मैं कई साल बर्बाद कर चुका था। यह एक गलाकाट दुनिया है। लोग आपको नीचे गिराने के लिए तैयार बैठे हैं। इसलिए पेशेवर बने रहें।

(विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित)
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