दूसरा पहलू: मतदान को प्रोत्साहित करता ‘वोट अर्ली डे’.. भारतीय चुनावों में जनभागीदारी के लिए भी मदद मिल सकती है
अमेरिका में इस बार 28 अक्तूबर को ‘वोट अर्ली डे’ का आयोजन होगा, जिसका मतलब है अपनी सुविधानुसार किसी भी दिन वोट डालें। ‘वोट अर्ली डे’ गैर-सरकारी पहल है, जिसकी शुरुआत 2020 में की गई थी, जिसका उद्देश्य सभी की सहभागिता सुनिश्चित करना है। भारत में जहां तमाम प्रयासों के बावजूद मतदान 60-70 प्रतिशत से अधिक नहीं हो पाता है, वहां ‘वोट अर्ली डे’ जैसी पहल चुनावों में जनभागीदारी बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो सकती है।

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अमेरिका में ‘वोट अर्ली डे’ (पूर्व मतदान दिवस) चुनावों में जनभागीदारी बढ़ाने, मतदान को प्रोत्साहित करने और लोकतंत्र की मजबूती की दिशा में एक अभिनव पहल है। अमेरिका में आगामी चार नवंबर को कई राज्यों व स्थानीय निकायों के चुनाव होने वाले हैं। चुनाव से पूर्व 28 अक्तूबर को वहां ‘वोट अर्ली डे’ का आयोजन किया जाएगा, जिसके जरिये लोगों को याद दिलाया जाएगा कि वे सिर्फ मतदान तिथि को ही नहीं, बल्कि अपनी सुविधानुसार एक सप्ताह के भीतर किसी भी दिन अपना वोट डाल सकते हैं।
‘वोट अर्ली डे’ एक गैर-सरकारी पहल है, जिसकी शुरुआत 2020 में की गई थी। यह प्रत्येक मतदाता को मतदान की तिथि से पूर्व अपनी सुविधानुसार मतदान करने की स्वतंत्रता प्रदान करती है। इस पहल का उद्देश्य चुनाव में उस तबके की सहभागिता सुनिश्चित करना है, जो निर्धारित तिथि को किसी कारण से मतदान केंद्र पर जाने में असमर्थ होते हैं। ऐसे लोगों के लिए निर्धारित तिथि से पूर्व व्यक्तिगत रूप से मतदान करने की सुविधा प्रदान की जाती है, जिससे मतदान के आखिरी समय में आने वाली परेशानियों से उन्हें बचाया जा सकता है। यह पहल न सिर्फ मतदान प्रतिशत बढ़ाने में कारगर है, बल्कि मतदान केंद्रों पर भीड़ नियंत्रण, व्यस्तता व यातायात संबंधी परेशानी से बचने और प्रतीक्षा समय घटाने में भी सहायक है।
यह मतदान की एक वैकल्पिक व्यवस्था है, जो नागरिकों को उसके प्रथम राजनीतिक कर्तव्य के पालन का अवसर देती है। यह सुनिश्चित करती है कि लोकतंत्र में वोट देने के अधिकार से कोई नागरिक वंचित न रहे। ‘वोट अर्ली डे’ इस अवधारणा पर आधारित है कि चुनाव किसी एक तिथि की बाध्यता से मुक्त है। इसमें लचीलेपन का समावेश करते हुए इसे नागरिकों की अधिकाधिक सुविधा पर केंद्रित किया गया है। यह लोकतंत्र की रीढ़ समझे जाने वाले मतदाताओं की सहूलियत बढ़ाने के लक्ष्य पर केंद्रित है, जो निश्चित रूप से मतदान प्रतिशत में वृद्धि और जनसहभागिता बढ़ाने पर बल देती है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव के जरिये जनता न सिर्फ सरकार चुनती है, बल्कि अपने भविष्य का निर्धारण भी करती है। भारत में जहां तमाम प्रयासों के बावजूद मतदान 60-70 प्रतिशत से अधिक नहीं हो पाता है, वहां ‘वोट अर्ली डे’ जैसी पहल चुनावों में जनभागीदारी बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो सकती है। यह पहल इसलिए भी विशिष्ट है कि यह चुनाव आयोग की सुविधा के बजाय मतदाताओं की सुविधाओं को केंद्र में रखकर मतदान प्रक्रिया को अधिक सहज और सुलभ बनाती है।