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National Unity Day 2024: राष्ट्रीय एकता के सूत्रधार सरदार बल्लभ भाई पटेल
सार
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के एकीकरण में वल्लभ भाई पटेल ने अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। उनके योगदान और दृढ़ संकल्प को देखते हुए भारत उन्हें ’’लौह पुरूष’’ और ’’भारत के बिस्मार्क’’ की संज्ञा देता है। भारत सरकार ने 2018 में गुजरात में विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति के तौर पर ’’स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’’ वल्लभ भाई पटेल को समर्पित की।
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सरदार पटेल को श्रद्धांजलि देते पीएम मोदी
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
वल्लभ भाई झावर भाई पटेल, जिन्हें सम्पूर्ण संसार प्रेमपूर्वक सरदार पटेल के नाम से जानता है। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के ऐसे अग्रणी महानायक थे। जिनकी दूरदर्शिता, सूझबूझ, राजनैतिक कुशलता एवं सामाजिक समरता स्थापित करने की रणनीति संसार को कायल बनाती थी। आपकी कार्यकुशलता आपके कार्यों में बखूबी देखी जा सकती है। भारतीय इतिहास के सुनहरे पन्ने पलटने से ज्ञात होता है कि ऐसे व्यक्तित्व के धनी महापुरुष सदियों में बमुश्किल जन्म लेते हैं। हम भारतीयों के लिए अत्यंत गौरवान्वित करने की बात है कि इनका जन्म भारत भूमि में हुआ है। भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित आपका सम्पूर्ण जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बना रहेगा।
वल्लभ भाई का जन्म 31 अक्टूबर 1875 ई. को नाडियाद, गुजरात में झवेरभाई पटेल और लाडबा देवी के घर हुआ था। 19वीं सदी के उस दौर में भारत ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी और शोषण की बेडियों में जकडा हुआ था। आपने शिक्षा हासिल कर वकालत का पेशा अपनाया और बैरिस्टर बन भारतीय राष्टृीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के तौर पर देश की सेवा की। भारत गांवों में बसता है इस बात को आत्मसात् कर वल्लभ भाई के संघर्षों का दौर खेडा की भूमि से आरम्भ हुआ। ब्रिटिश हुकूमत से पहला लोहा आपने खेड़ा आन्दोलन में ही लिया। स्वयं से पूर्व राष्टृहित की बेहतरी के विषय में ध्यान केन्द्रित करने वाले वल्लभ भाई पटेल ने स्वतंत्रता के संघर्षों से लेकर स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात् तक ताबूत में लगने वाली अंतिम कील की भांति कार्य किया और अखण्ड भारत के स्वप्न को पूरा करने में भारत के बिस्मार्क की भूमिका निभाई।
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के एकीकरण में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। उनके योगदान और दृढ़ संकल्प को देखते हुए भारत उन्हें ’’लौह पुरूष’’ और ’’भारत के बिस्मार्क’’ की संज्ञा देता है। भारत सरकार ने 2018 में गुजरात में विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति के तौर पर ’’स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’’ वल्लभ भाई पटेल को समर्पित की। जो राष्ट्र की एकता में उनके योगदान के साथ उनके अदम्य शौर्य और साहस का प्रतीक है। राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के हिमायती लौह पुरुष सरदार पटेल का संद्यर्षमयी जीवन आधुनिक युग के लिए प्रेरक भी है और प्रेरणा भी।
भारतीय स्वतंत्रता के गौरवान्वित इतिहास लेखन में सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम एक युग निर्माता के तौर पर अंकित है। अखण्ड भारत के निर्माण की परम्परा के वाहक सरदार पटेल आधुनिक भारत में जाति-धर्म, असामानता, वर्ग-भेद से परे राष्ट्रीय एकता के महान पैरोकार थे। इतिहास में दर्ज उनके संघर्षों को वर्तमान सासम्मान सहेज कर रखेगा। वे एक ऐसे राष्टृ निर्माता थे जिन्होंने भारत को अखण्डता के सूत्र में बांध संसार के समक्ष अहिंसा की अद्वितीय मिशाल पेश की। वल्लभ भाई का बचपन खेतों और खलिहानों में गुजरा और बाद में लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई करने का अवसर प्राप्त हुआ। देश प्रेम उन्हें भारत वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने के लिए प्रेरित कर रहा था। जिसमें उन्हें अत्यंत ही सफलता प्राप्त हुई।
इस दौर में संपूर्ण भारत स्वतंत्रता के आन्दोलनों में गोते लगाने की तैयारियों में एकजुट होने की तैयारी में था। यह दौर महात्मा गांधी के आंदोलन में भागीदारी का था। सरदार पटेल महात्मा गांधी से प्रेरित हो स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागिता की। भारत को स्वतंत्रता दिलाने में सरदार पटेल का विशेष योगदान है। वर्ष 1917 एवं 1918 में प्लेग और अकाल जैसी आपदाएं भारत में घिर आई तब इन्होंने संकट निवारण में अहम् भूमिका निभाई। इन्हें वर्ष 1917 में गुजरात सभा का सचिव चुना गया। जिसने तत्कालीन परिस्थिति में बड़ी राहत का काम किया।
सन् 1918 में प्रारम्भ हुए खेड़ा सत्याग्रह में सरदार पटेल की भूमिका को लेकर महात्मा गांधी ने कहा था- कि यदि वल्लभ भाई की सहायता नहीं होती तो यह अभियान इतनी सफलतापूर्वक नहीं चलाया जाता। 8 अगस्त 1942 को बम्बई में ’अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी’ ने ’भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया तत्पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने वल्लभ भाई को कार्य समिति के अन्य सदस्यों के साथ 9 अगस्त 1942 को गिरफतार कर लिया और महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा गांधी के साथ अहमदनगर किले में नजरबंद कर दिया। सरदार पटेल तीन वर्ष तक जेल में रहे।
वल्लभ भाई पटेल ने तत्कालीन समाज की समस्याओं और शोषण को समाप्त करने के लिए व्यक्तिगत जीवन के सुख-सुविधाओं को दरकिनार कर राष्ट्र सेवा के कार्य किए। सन् 1922 के पश्चात् के दौर में गुजरात के सूरत जिले में स्थित बारदोली राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना हुआ था। देश में उन दिनों साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन जोरों पर थे। तभी बारदोली में किसानों ने लगान वृद्वि के विरूद्व संद्यर्ष आरम्भ कर दिया। यह वह दौर था जब सन् 1926-27 ई. में कपास के मूल्यों में काफी गिरावट होने पर भी सरकार ने बारदोली में राजस्व 22 प्रतिशत बढ़ा दिया था और किसान परेशान होकर अपनी जमीनें बेचने लगे परन्तु मंदी के उस दौर में कोई खरीदार नहीं था।
किसानों की समस्याओं को देख गुजरात कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष केे तौर पर सरदार बल्लभ भाई पटेल 4 फरवरी 1928 को बारदोली पहुंचे और किसानों ने इनके नेतृत्व में इस आन्दोलन का मोर्चा खोला। वल्लभ भाई ने पूरे तालुके में 13 छावनियों की स्थापना कर किसानों को बढ़ी हुई दरों पर भू-राजस्व न अदा करने को कहा। साथ ही ’’कर मत दो’’ का नारा दिया। तभी महात्मा गांधी बारदोली पहुंच गए और अन्ततः न्यायिक जांच बैठायी गई। तत्पश्चात् ब्लूमफील्ड और मैक्सवेल समिति ने किसानों की भू-राजस्व में हुई बढ़ोत्तरी 22 प्रतिशत से घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दी गयी। इस तरह बारदोली सत्याग्रह सफल रहा और वल्लभ भाई पटेल ’गुजरात के नायक’ तथा राष्टृीय स्तर के प्रखर नेता के रूप में उभरे। बारदोली की महिलाओं ने इन्हें ’सरदार’ की उपाधि से विभूषित किया और वल्लभ भाई पटेल सरदार पटेल के रूप में जग विख्यात हुए।
निःसंदेह भारत के लिए 15 अगस्त सन् 1947 का दिन जश्न-ए-आजादी का था। देश में हर ओर खुशियों का माहौल था लोग अपने-अपनों की शहादत को याद कर गौरवान्वित हो रहे थे क्योंकि देशभक्तों की कुर्बानी और शहीदों का खून रंग लाया था लेकिन एक ओर मातम का साया भी दबे पाव चला आया था। एक ओर साम्प्रदायिकता की आग में धधकता भारत दूसरी ओर रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के आभाव में जूझते भारत को मजबूती से खड़ा करने की जददोजहद। इन तमाम समस्याओं के साथ अखण्ड भारत का टूटता स्वप्न।
स्वतंत्र भारत के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। हालांकि इतिहास हमें ऐसे कई पड़ावों से अवगत कराता है जब भारत को एकीकृत करने के लिए राजा-महाराजाओं ने अपने युद्वों और यज्ञों को माध्यम बनाया। उसमें अनगिनत लड़ाईयां लड़ी गयी सन्धियां हुए, रक्त बहाया गया। परन्तु भारत के लिए यह पहला मौका था जब स्वतंत्र भारत ने अखण्ड भारत होने के लिए बिना किसी रक्त पात के रियासतों और रजवाड़ों का विलय किया गया हो। वह सब संभव हो पाया स्वतंत्र भारत के महानायक सरदार वल्लभ भाई पटेल के माध्यम से।
भारत का एकीकरण रजवाड़ों और रियासतों का विलय:- स्वतंत्रता प्राप्ति और विभाजन विभीषिका के मध्य भारत एवं देशी रियासतों को एक शासन के अन्तर्गत लाना सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य था। औपनिवेशिक भारत में लगभग 40 प्रतिशत भू-भाग छोटी और बड़ी रियासतों से घिरा हुआ था जिस पर शासन करने वाले राजाओं को ब्रिटिश हुकूमत ने विभिन्न प्रकार की स्वायत्तता दे रखी थी। 3 जून 1947 को माउण्टबेटन योजना के तहत यह तय हो गया था कि ब्रिटिश सर्वोच्चता अब समाप्त हो जाएगी। साथ ही रियासतों को यह अधिकार होगा की वे पाकिस्तान या भारत में सम्मिलित हो सकती हैं। तभी राष्ट्रीय अस्थाई सरकार में 27 जून 1947 ई. को सरदार पटेल ने नवगठित रियासत विभाग का अतिरिक्त कार्यभार संभाला लिया। सरदार पटेल के मुख्य सहायक सचिव वी0 पी0 मेनन थे।
आजादी के पश्चात् रजवाड़ों की समस्या को लेकर गांधी का भरोसा सरदार पटेल पर अडिग था। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल से कहा था कि ’’रियासतों की समस्या इतनी कठिन है कि आप अकेले ही इसे हल कर सकते हैं।’’ अतः सरदार पटेल और उनके सचिव वी0 पी0 मेनन ने इस समस्या का समाधान करने का निश्चय किया। सरदार पटेल ने भारतीय रजवाड़ों की देशभक्ति को ललकारा भी और अनुरोध भी किया कि वे भारतीय संघ में अपनी रक्षा, विदेशी मामले और संचार व्यवस्था को भारत के अधीनस्थ बनाकर सम्मिलित हो जाएं। 15 अगस्त 1947 तक केवल जूनागढ़, जम्मू-कश्मीर और हैदराबाद को छोड़कर सभी रजवाड़े भारत में सम्मिलित हो गए। इन्हीं तीन रियासतों के विलय में मुख्य समस्या थी। तत्कालीन लगभग 562 रियासतों के विलय परियोजना में सरदार पटेल को लगभग 2 वर्ष का समय लगा।
भारत के लिए जूनागढ़, जम्मू कश्मीर और हैदराबाद रियासतों का विलय करना सहज न था। इन तीनों रियासतों को भारत में सम्मिलित करने के लिए सरदार पटेल को तीन अलग-अलग रणनीति को अपनाना पड़ा। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस कठिन दौर को बड़ी ही सहजता और सूझ-बूझ से पूर्ण किया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वतंत्रता आन्दोलनों के उन महानायकों में से एक हैं, जिनके बिना स्वतंत्रता के संघर्ष की इबारत लिखना असंभव नज़र आता है। सरदार पटेल भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री एवं भारत के प्रथम गृह मंत्री बने। भारत की स्वतंत्रता में उनका जितना योगदान रहा उससे भी कहीं ज्यादा भारत को एक सूत्र में पिरोने में उनकी भूमिका रही। निश्चित तौर पर ऐसे व्यक्तित्व के लोग इस धरती पर सदियों में जन्म लेते हैं।
भारत सरकार ने सरदार पटेल को वर्ष 1991 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ’’भारत रत्न’’ से सम्मानित किया। ’’वसुधैव कुटुंबकम’’ के मंत्र के महत्व को समझाने वाले सरदार पटेल ने संसार को यह पुनः स्मरण कराया कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां बहुधर्मी, बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक लोग एक साथ आपसी सौहार्द एवं सद्भाव से रहते आए हैं। अनेकता में एकता का सटीक उदाहरण देने वाला एकमात्र देश भारत ही है। सरदार पटेल का मानना था कि प्रत्येक नागरिक की यह मुख्य जिम्मेदारी है कि वह यह महसूस करें कि उसका देश स्वतंत्र है और अपने स्वतंत्र देश की रक्षा करना उसका कर्तव्य है। आज 21वीं सदी के दौर के युवा भारत को साहस, शौर्य और समर्पण के सकारात्मक प्रतीक भारत रत्न लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के जीवन को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
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वल्लभ भाई का जन्म 31 अक्टूबर 1875 ई. को नाडियाद, गुजरात में झवेरभाई पटेल और लाडबा देवी के घर हुआ था। 19वीं सदी के उस दौर में भारत ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी और शोषण की बेडियों में जकडा हुआ था। आपने शिक्षा हासिल कर वकालत का पेशा अपनाया और बैरिस्टर बन भारतीय राष्टृीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के तौर पर देश की सेवा की। भारत गांवों में बसता है इस बात को आत्मसात् कर वल्लभ भाई के संघर्षों का दौर खेडा की भूमि से आरम्भ हुआ। ब्रिटिश हुकूमत से पहला लोहा आपने खेड़ा आन्दोलन में ही लिया। स्वयं से पूर्व राष्टृहित की बेहतरी के विषय में ध्यान केन्द्रित करने वाले वल्लभ भाई पटेल ने स्वतंत्रता के संघर्षों से लेकर स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात् तक ताबूत में लगने वाली अंतिम कील की भांति कार्य किया और अखण्ड भारत के स्वप्न को पूरा करने में भारत के बिस्मार्क की भूमिका निभाई।
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स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के एकीकरण में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। उनके योगदान और दृढ़ संकल्प को देखते हुए भारत उन्हें ’’लौह पुरूष’’ और ’’भारत के बिस्मार्क’’ की संज्ञा देता है। भारत सरकार ने 2018 में गुजरात में विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति के तौर पर ’’स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’’ वल्लभ भाई पटेल को समर्पित की। जो राष्ट्र की एकता में उनके योगदान के साथ उनके अदम्य शौर्य और साहस का प्रतीक है। राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के हिमायती लौह पुरुष सरदार पटेल का संद्यर्षमयी जीवन आधुनिक युग के लिए प्रेरक भी है और प्रेरणा भी।
भारतीय स्वतंत्रता के गौरवान्वित इतिहास लेखन में सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम एक युग निर्माता के तौर पर अंकित है। अखण्ड भारत के निर्माण की परम्परा के वाहक सरदार पटेल आधुनिक भारत में जाति-धर्म, असामानता, वर्ग-भेद से परे राष्ट्रीय एकता के महान पैरोकार थे। इतिहास में दर्ज उनके संघर्षों को वर्तमान सासम्मान सहेज कर रखेगा। वे एक ऐसे राष्टृ निर्माता थे जिन्होंने भारत को अखण्डता के सूत्र में बांध संसार के समक्ष अहिंसा की अद्वितीय मिशाल पेश की। वल्लभ भाई का बचपन खेतों और खलिहानों में गुजरा और बाद में लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई करने का अवसर प्राप्त हुआ। देश प्रेम उन्हें भारत वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने के लिए प्रेरित कर रहा था। जिसमें उन्हें अत्यंत ही सफलता प्राप्त हुई।
इस दौर में संपूर्ण भारत स्वतंत्रता के आन्दोलनों में गोते लगाने की तैयारियों में एकजुट होने की तैयारी में था। यह दौर महात्मा गांधी के आंदोलन में भागीदारी का था। सरदार पटेल महात्मा गांधी से प्रेरित हो स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागिता की। भारत को स्वतंत्रता दिलाने में सरदार पटेल का विशेष योगदान है। वर्ष 1917 एवं 1918 में प्लेग और अकाल जैसी आपदाएं भारत में घिर आई तब इन्होंने संकट निवारण में अहम् भूमिका निभाई। इन्हें वर्ष 1917 में गुजरात सभा का सचिव चुना गया। जिसने तत्कालीन परिस्थिति में बड़ी राहत का काम किया।
सन् 1918 में प्रारम्भ हुए खेड़ा सत्याग्रह में सरदार पटेल की भूमिका को लेकर महात्मा गांधी ने कहा था- कि यदि वल्लभ भाई की सहायता नहीं होती तो यह अभियान इतनी सफलतापूर्वक नहीं चलाया जाता। 8 अगस्त 1942 को बम्बई में ’अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी’ ने ’भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया तत्पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने वल्लभ भाई को कार्य समिति के अन्य सदस्यों के साथ 9 अगस्त 1942 को गिरफतार कर लिया और महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा गांधी के साथ अहमदनगर किले में नजरबंद कर दिया। सरदार पटेल तीन वर्ष तक जेल में रहे।
वल्लभ भाई पटेल ने तत्कालीन समाज की समस्याओं और शोषण को समाप्त करने के लिए व्यक्तिगत जीवन के सुख-सुविधाओं को दरकिनार कर राष्ट्र सेवा के कार्य किए। सन् 1922 के पश्चात् के दौर में गुजरात के सूरत जिले में स्थित बारदोली राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना हुआ था। देश में उन दिनों साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन जोरों पर थे। तभी बारदोली में किसानों ने लगान वृद्वि के विरूद्व संद्यर्ष आरम्भ कर दिया। यह वह दौर था जब सन् 1926-27 ई. में कपास के मूल्यों में काफी गिरावट होने पर भी सरकार ने बारदोली में राजस्व 22 प्रतिशत बढ़ा दिया था और किसान परेशान होकर अपनी जमीनें बेचने लगे परन्तु मंदी के उस दौर में कोई खरीदार नहीं था।
किसानों की समस्याओं को देख गुजरात कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष केे तौर पर सरदार बल्लभ भाई पटेल 4 फरवरी 1928 को बारदोली पहुंचे और किसानों ने इनके नेतृत्व में इस आन्दोलन का मोर्चा खोला। वल्लभ भाई ने पूरे तालुके में 13 छावनियों की स्थापना कर किसानों को बढ़ी हुई दरों पर भू-राजस्व न अदा करने को कहा। साथ ही ’’कर मत दो’’ का नारा दिया। तभी महात्मा गांधी बारदोली पहुंच गए और अन्ततः न्यायिक जांच बैठायी गई। तत्पश्चात् ब्लूमफील्ड और मैक्सवेल समिति ने किसानों की भू-राजस्व में हुई बढ़ोत्तरी 22 प्रतिशत से घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दी गयी। इस तरह बारदोली सत्याग्रह सफल रहा और वल्लभ भाई पटेल ’गुजरात के नायक’ तथा राष्टृीय स्तर के प्रखर नेता के रूप में उभरे। बारदोली की महिलाओं ने इन्हें ’सरदार’ की उपाधि से विभूषित किया और वल्लभ भाई पटेल सरदार पटेल के रूप में जग विख्यात हुए।
निःसंदेह भारत के लिए 15 अगस्त सन् 1947 का दिन जश्न-ए-आजादी का था। देश में हर ओर खुशियों का माहौल था लोग अपने-अपनों की शहादत को याद कर गौरवान्वित हो रहे थे क्योंकि देशभक्तों की कुर्बानी और शहीदों का खून रंग लाया था लेकिन एक ओर मातम का साया भी दबे पाव चला आया था। एक ओर साम्प्रदायिकता की आग में धधकता भारत दूसरी ओर रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के आभाव में जूझते भारत को मजबूती से खड़ा करने की जददोजहद। इन तमाम समस्याओं के साथ अखण्ड भारत का टूटता स्वप्न।
स्वतंत्र भारत के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। हालांकि इतिहास हमें ऐसे कई पड़ावों से अवगत कराता है जब भारत को एकीकृत करने के लिए राजा-महाराजाओं ने अपने युद्वों और यज्ञों को माध्यम बनाया। उसमें अनगिनत लड़ाईयां लड़ी गयी सन्धियां हुए, रक्त बहाया गया। परन्तु भारत के लिए यह पहला मौका था जब स्वतंत्र भारत ने अखण्ड भारत होने के लिए बिना किसी रक्त पात के रियासतों और रजवाड़ों का विलय किया गया हो। वह सब संभव हो पाया स्वतंत्र भारत के महानायक सरदार वल्लभ भाई पटेल के माध्यम से।
भारत का एकीकरण रजवाड़ों और रियासतों का विलय:- स्वतंत्रता प्राप्ति और विभाजन विभीषिका के मध्य भारत एवं देशी रियासतों को एक शासन के अन्तर्गत लाना सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य था। औपनिवेशिक भारत में लगभग 40 प्रतिशत भू-भाग छोटी और बड़ी रियासतों से घिरा हुआ था जिस पर शासन करने वाले राजाओं को ब्रिटिश हुकूमत ने विभिन्न प्रकार की स्वायत्तता दे रखी थी। 3 जून 1947 को माउण्टबेटन योजना के तहत यह तय हो गया था कि ब्रिटिश सर्वोच्चता अब समाप्त हो जाएगी। साथ ही रियासतों को यह अधिकार होगा की वे पाकिस्तान या भारत में सम्मिलित हो सकती हैं। तभी राष्ट्रीय अस्थाई सरकार में 27 जून 1947 ई. को सरदार पटेल ने नवगठित रियासत विभाग का अतिरिक्त कार्यभार संभाला लिया। सरदार पटेल के मुख्य सहायक सचिव वी0 पी0 मेनन थे।
आजादी के पश्चात् रजवाड़ों की समस्या को लेकर गांधी का भरोसा सरदार पटेल पर अडिग था। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल से कहा था कि ’’रियासतों की समस्या इतनी कठिन है कि आप अकेले ही इसे हल कर सकते हैं।’’ अतः सरदार पटेल और उनके सचिव वी0 पी0 मेनन ने इस समस्या का समाधान करने का निश्चय किया। सरदार पटेल ने भारतीय रजवाड़ों की देशभक्ति को ललकारा भी और अनुरोध भी किया कि वे भारतीय संघ में अपनी रक्षा, विदेशी मामले और संचार व्यवस्था को भारत के अधीनस्थ बनाकर सम्मिलित हो जाएं। 15 अगस्त 1947 तक केवल जूनागढ़, जम्मू-कश्मीर और हैदराबाद को छोड़कर सभी रजवाड़े भारत में सम्मिलित हो गए। इन्हीं तीन रियासतों के विलय में मुख्य समस्या थी। तत्कालीन लगभग 562 रियासतों के विलय परियोजना में सरदार पटेल को लगभग 2 वर्ष का समय लगा।
भारत के लिए जूनागढ़, जम्मू कश्मीर और हैदराबाद रियासतों का विलय करना सहज न था। इन तीनों रियासतों को भारत में सम्मिलित करने के लिए सरदार पटेल को तीन अलग-अलग रणनीति को अपनाना पड़ा। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस कठिन दौर को बड़ी ही सहजता और सूझ-बूझ से पूर्ण किया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वतंत्रता आन्दोलनों के उन महानायकों में से एक हैं, जिनके बिना स्वतंत्रता के संघर्ष की इबारत लिखना असंभव नज़र आता है। सरदार पटेल भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री एवं भारत के प्रथम गृह मंत्री बने। भारत की स्वतंत्रता में उनका जितना योगदान रहा उससे भी कहीं ज्यादा भारत को एक सूत्र में पिरोने में उनकी भूमिका रही। निश्चित तौर पर ऐसे व्यक्तित्व के लोग इस धरती पर सदियों में जन्म लेते हैं।
भारत सरकार ने सरदार पटेल को वर्ष 1991 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ’’भारत रत्न’’ से सम्मानित किया। ’’वसुधैव कुटुंबकम’’ के मंत्र के महत्व को समझाने वाले सरदार पटेल ने संसार को यह पुनः स्मरण कराया कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां बहुधर्मी, बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक लोग एक साथ आपसी सौहार्द एवं सद्भाव से रहते आए हैं। अनेकता में एकता का सटीक उदाहरण देने वाला एकमात्र देश भारत ही है। सरदार पटेल का मानना था कि प्रत्येक नागरिक की यह मुख्य जिम्मेदारी है कि वह यह महसूस करें कि उसका देश स्वतंत्र है और अपने स्वतंत्र देश की रक्षा करना उसका कर्तव्य है। आज 21वीं सदी के दौर के युवा भारत को साहस, शौर्य और समर्पण के सकारात्मक प्रतीक भारत रत्न लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के जीवन को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।