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यादों में शिवराज पाटिल: एक विद्वान राजनेता की सादगीपूर्ण यात्रा
सार
शिवराज विष्णु पाटिल का जन्म 12 अक्टूबर 1935 को महाराष्ट्र के लातूर जिले के चाकुर गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था।
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पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल का निधन।
- फोटो : ANI
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विस्तार
शिवराज पाटिल चाकुरकर, जिन्हें भारतीय राजनीति में एक सौम्य, विद्वान और नैतिक मूल्यों के प्रतीक के रूप में जाना जाता है, आज भारतीय राजनीतिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया। 12 दिसंबर 2025 को महाराष्ट्र के लातूर जिले में उनके निधन की खबर ने पूरे देश को शोकाकुल कर दिया।
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90 वर्ष की आयु में वे इस दुनिया से विदा हो गए, लेकिन उनके पांच दशक लंबे सार्वजनिक जीवन की विरासत सदैव प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। एक ऐसे नेता, जिन्होंने लोकसभा स्पीकर से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री तक विभिन्न पदों पर अपनी विद्वता और निष्पक्षता का परिचय दिया, शिवराज पाटिल का जीवन सादगी, सेवा और सुधारों की मिसाल है।
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चाकुर के गांव से दिल्ली की सियासत तक
शिवराज विष्णु पाटिल का जन्म 12 अक्टूबर 1935 को महाराष्ट्र के लातूर जिले के चाकुर गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। तत्कालीन हैदराबाद रियासत के इस छोटे से गांव में पले-बढ़े शिवराज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्तर पर पूरी की। विज्ञान में स्नातक करने के बाद उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से विधि की डिग्री प्राप्त की।
कानून की पढ़ाई के बाद वे कुछ समय के लिए कॉलेज में लेक्चरर बने, लेकिन जल्द ही लातूर लौट आए और वकालत शुरू की। इस दौरान उन्होंने सामाजिक मुद्दों पर गहन अध्ययन किया, जो आगे चलकर उनकी राजनीतिक दृष्टि का आधार बने।
शिवराज पाटिल की शादी 1963 में विजया पाटिल से हुई। उनके दो बच्चे थे, पुत्र शैलेश पाटिल, जो कांग्रेस के राज्य सचिव रह चुके हैं, और पुत्री सपना बी. पाटिल, जो एक वकील थीं लेकिन 2002 में आत्महत्या कर लीं। परिवार में पत्नी, पुत्र, पुत्रवधू (जो बीजेपी नेता हैं) और दो पोतियां हैं। शिवराज पाटिल को साहित्य और लेखन का भी शौक था।
उन्होंने 'रिमिनिसेंस एंड रिफ्लेक्शंस', 'विजन ऑफ इंडिया', 'एक्स्टेसी एंड एगोनी ऑफ ए प्रेसिडिंग ऑफिसर', 'फ्रेग्रेंस ऑफ इनर सेल्फ' और 'डायलॉग्स' जैसी पुस्तकें लिखीं, जो उनकी गहन चिंतनशीलता को दर्शाती हैं।
राजनीतिक सफर: घासफूस से संसद तक की उड़ान
शिवराज पाटिल का राजनीतिक सफर 1967 में लातूर म्यूनिसिपल काउंसिल के अध्यक्ष बनने से शुरू हुआ। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ते ही उन्होंने स्थानीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी। 1972 में वे महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य चुने गए और दो कार्यकाल (1972-1979) तक विधायक रहे। इस दौरान वे विधि एवं न्याय, सिंचाई और प्रोटोकॉल विभागों में उपमंत्री बने।
इसके अलावा, पब्लिक अंडरटेकिंग्स कमिटी के चेयरमैन, महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर (1978) और स्पीकर (1979) जैसे महत्वपूर्ण पद संभाले। उनका राष्ट्रीय स्तर पर उनका प्रवेश 1980 में तब हुआ, जब वे लातूर लोकसभा सीट से सात बार लगातार चुने गए (1980 से 2004 तक)।
1991 से 1996 तक वे लोकसभा के 10वें स्पीकर रहे। इस पद पर उन्होंने संसदीय कार्यप्रणाली में क्रांतिकारी सुधार किए—संसद की कार्यवाही का लाइव टेलीकास्ट, कंप्यूटरीकरण और नई संसदीय लाइब्रेरी की स्थापना जैसे कदमों से लोकसभा को आधुनिक रूप दिया।
विवादास्पद मुद्दों जैसे राजनीति में अपराधीकरण और बैंक घोटालों पर बहसों के दौरान भी उन्होंने सदन को शांतिपूर्वक संचालित किया, जिसके लिए उन्हें 'शांतिदूत' कहा गया।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनकी भूमिका भी उल्लेखनीय रही। 1980-1984 के बीच रक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कार्मिक, खेल एवं युवा कल्याण जैसे विभाग संभाले। 1995-1996 में रेल मंत्री बने। 2004 में यूपीए सरकार में वे गृह मंत्री नियुक्त हुए, जो उनका सबसे चर्चित पद था। हालांकि, 2008 के मुंबई हमलों के बाद सुरक्षा चूक की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
इस घटना ने उन्हें 'भारत का नीरो' जैसे कटु उपनाम भी दिए, लेकिन उनकी सादगी और नैतिकता की प्रशंसा भी हुई। 2010 से 2015 तक वे पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक रहे।
नैतिकता के प्रतीक
शिवराज पाटिल का जीवन भारतीय राजनीति में नैतिक मूल्यों की जीती-जागती मिसाल था। वे कभी विवादों से दूर रहे, हमेशा सादगीपूर्ण जीवन जिया। महाराष्ट्र उप-मुख्यमंत्री अजित पवार ने उन्हें 'संस्कृतिपूर्ण और विद्वान व्यक्तित्व' कहा, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके 'सार्वजनिक कल्याण के प्रति समर्पण' की सराहना की।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और गृह मंत्री अमित शाह ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री शिवराज पाटिल चाकुरकर कई दशकों के सार्वजनिक जीवन में अपने ज्ञान और समर्पित सेवा के लिए जाने जाते थे।
वास्तव में उनकी विरासत संसदीय सुधारों, ग्रामीण विकास और राष्ट्रीय एकता में योगदान के रूप में बनी रहेगी। लातूर जैसे छोटे शहर से निकलकर दिल्ली की ऊंचाइयों तक पहुंचने वाली यह यात्रा युवा नेताओं के लिए प्रेरणा है। शिवराज पाटिल चाकुरकर का निधन भारतीय लोकतंत्र के एक सुनहरे युग का अंत है, लेकिन उनकी शिक्षाएं सदैव जीवित रहेंगी।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।