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Indigo Crisis: ‘इंडिगो संकट’ और सात सवाल!

Ajay Bokil अजय बोकिल
Updated Sat, 13 Dec 2025 10:42 AM IST
सार

इंडिगो के पास 1800 से ज्यादा उड़ानें और एविएशन मार्केट का क़रीब 65 फीसदी हिस्सा है (हालांकि अब इसमें 10 फीसदी की कटौती कर दी गई है), लेकिन पायलट 5 हजार से कुछ अधिक ही हैं।

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The Indigo crisis and seven questions
इंडिगो की उड़ानें रद्द होने पर उड्डयन मंत्री सख्त - फोटो : ANI
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विस्तार
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देश की सबसे बड़ी विमान कंपनी इंडिगो के संकट ने कई सबक दिए हैं। पहला तो विमान क्षेत्र को केवल निजी क्षेत्र के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, दूसरा किसी भी विमान का कंपनी का एकाधिकार होने का अर्थ है यात्री हितों को तिलांजलि, तीसरा है कोई भी निजी विमान कंपनी सरकारी डीजीसीए (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन) के आदेशों को इतना हल्के में कैसे ले सकती है कि उसे किसी दंडात्मक कार्रवाई का डर न हो, चौथे देश में करीब पंद्रह दिनों तक विमान सेवाओं में मचे हाहाकार के बावजूद इंडिगो कंपनी के माथे पर शिकन तक नहीं तो क्यों, पांचवा कंपनी ने यात्रियों को टिकट राशि पूरी तरह रिफंड करने की जगह ट्रैवल वाउचर देने की पेशकश की, लेकिन क्या इससे यात्रियों को मानसिक यातना भुगतनी पड़ी उसका क्या, छठे देश में विमान यात्री हित सुरक्षा का कानून कब बनेगा? और सातवां यह कि क्या सरकार अब जागेगी, क्योंकि डीजीसीए ने तुरंत प्रभावी कार्रवाई करने के बजाए शुरू में अपना ही आदेश वापस लेकर कंपनी के आगे सिर नवाया।

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कार्रवाई हुई मगर देरी से 

दरअसल, भारत में इंडिगो विमान सेवा के ध्वस्त होने का गलत संदेश पूरी दुनिया में चला गया है, जिसे सुधरने में वक्त लगेगा। इस मामले में डिजीसीए ने भी कड़ी कार्रवाई की मगर देर से। आज इंडिगो घरेलू उड़ानों की सबसे बड़ी विमान कंपनी है।
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इंडिगो के पास 1800 से ज्यादा उड़ानें और एविएशन मार्केट का क़रीब 65 फीसदी हिस्सा है (हालांकि अब इसमें 10 फीसदी की कटौती कर दी गई है)। लेकिन पायलट 5 हजार से कुछ अधिक ही हैं। 

इतनी बड़ी कंपनी किस तरह कम खर्च और तगड़ी मुनाफा वसूली के साथ कैसे ग्राहकों को ठग रही थी, इसकी कहानी अब सामने आ रही है। कंपनी का डीजीसीए में भी कितना रसूख था, यह भी साफ हो रहा है। 

यही नहीं कंपनी के कुप्रबंधन के देखते हुए नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एयरलाइन के विंटर शेड्यूल में कम से कम 10% कट लगाने का निर्णय बरकरार रखा, जिसका मतलब यह था कि प्रतिदिन 200 से अधिक उड़ानें अस्थायी तौर पर नेटवर्क से बाहर की जा सकती हैं। इसी बीच, डीजीसीए ने एक आठ सदस्यीय ओवरसाइट टीम भी बना दी। इस टीम के दो अधिकारी अब रोजाना इंडिगो के गुरुग्राम स्थित एयरलाइन हाउस में तैनात रहेंगे।

इनमें एक अधिकारी फ्लीट, पायलट के नंबर, एवरेज स्टेज लेंथ, नेटवर्क, क्रू की तैनाती, प्रशिक्षण, डेडहेडिंग, स्प्लिट ड्यूटी जैसे मैट्रिक्स की निगरानी करेगा, जबकि दूसरा फ्लाइट कैंसलेशन, रिफंड, ऑन टाइम परफॉर्मेंस, बैगेज रिटर्न की स्थिति पर रिपोर्ट तैयार करेगा। दोनों टीमें रोजाना शाम छह बजे तक डीजीसीए के जॉइंट डीजी को अपनी रिपोर्ट सौपेंगे। इस बीच डिजीसीए ने अपने चार फ्लाइट आॅपरेशन इंस्पेक्टरों को भी निलंबित कर दिया है। 

इंडिगो का जवाब 

उधर डीजीसीए के कारण बताओ नोटिस के जवाब में  इस अव्यवस्था के लिए  इंडिगो ने टेक्निकल ग्लिच, विंटर शेड्यूल री अलाइनमेंट, खराब मौसम, एयर ट्रैफिक कंजेशन और एफडीटीएल फेज 2 के अनुसार क्रू की उपलब्धता को मेल्टडाउन का कारण बताया है। रिपोर्ट में इंडिगो ने दावा किया है कि नियमों के मुताबिक पैसेंजर्स को मील कूपन, होटल, लोकल ट्रांसपोर्ट और रिफंड की सहूलियतें दी गई हैं।

इंडिगो द्वारा खुद पैदा किए गए इस संकट से कंपनी को 1 हजार करोड़ रू. से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। 10 दिनों 5 हजार से ज्यादा फ्लाइटें निरस्त हो चुकी हैं। जिससे हजारों यात्री परेशान हुए। कैंसल फ्लाइटों के टिकट की राशि भी ठीक से रिफंड नहीं की जा रही है। गौरतलब है कि इंडिगो का यह संकट 2 दिसंबर से शुरू हुआ, जब पर्याप्त स्टाफ के अभाव में धड़ाधड़ फ्लाइट कैंसल होना शुरू हुई।

यह संकट गहराता ही चला गया और यात्री भयावह रूप से परेशान होते रहे। हालांकि कंपनी कहना है कि वह उन कस्टमर्स को फ्लाइट के ब्लॉक टाइम के आधार पर 5000 से 10000  रू. तक का मुआवजा देगी, जिनकी फ्लाइट डिपार्चर टाइम के 24 घंटे के अंदर कैंसल हो गई थी। लेकिन यह मुआवजा भी नाकाफी और आधा अधूरा है। 

नया एफडीटीएल आदेश

इस अराजकता के पीछे असल कारण केन्द्र सरकार का वह आदेश था, जिसे एफडीटीएल (फ़्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन) कहते हैं। इसके तहत विमान कंपनियों से कहा गया कि वो अपने पायलटों को सप्ताह में 48 घंटे का आराम दें। साथ ही रात में लैंडिंग की सीमा भी छह से घटाकर दो कर दी गई।

यह आदेश भी दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश परिप्रेक्ष्य में था, जिसमें तेरह साल पहले मई 2010 में दुबई से मैंगलोर जा रहा एयर इंडिया एक्सप्रेस का एक विमान मैंगलोर हवाई अड्डे पर उतरते वक्त क्रैश हो गया था।

इस हादसे में 158 लोगों की मौत हुई थी। हादसे की जांच में उजागर हुआ कि पायलट को झपकी आ जाने से यह भीषण हादसा हुआ। जांच रिपोर्ट के मुताबिक  प्लेन को उड़ा रहे एक सर्बियाई पायलट उड़ान की तीन घंटे की अवधि के दौरान ज़्यादातर वक़्त सोए रहने की वजह से भ्रमित (डिसओरिएंटेड) हो गए थे।

इसके बाद पहली बार भारत में पायलट की थकान और उसकी वजह से यात्रियों की सुरक्षा को होने वाले ख़तरों का मुद्दा एक चर्चा का विषय बना। दो साल बाद कई पायलट संगठनों ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि भारत में उड़ानों का शेड्यूल इस तरह बनाया जाता है कि पायलटों को बहुत ज़्यादा काम करना पड़ता है, जिससे उड़ानों की सुरक्षा खतरे में पड़ती है।

इन संगठनों की मांग थी कि इन संगठनों ने मांग की कि पायलटों की थकान से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक़ नियम लागू किए जाएं। इसी तारतम्य में जनवरी 2024 में डीजीसीए ने नए ड्यूटी नियम लागू किए ताकि उन्हें वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाया जा सके। एयरलाइनों को इन्हें दो चरणों में अपनाना था- जुलाई और नवंबर, 2025 में।

इंडिगो की लापरवाही

लेकिन इंडिगो ने इस आदेश को गंभीरता से नहीं लिया और नई व्यवस्था के लिए जरूरी अतिरिक्त स्टाफ की भरती नहीं की। इसके बाद भी डीजीसीए ने कोई सख्त कार्रवाई कंपनी के खिलाफ नहीं की। दूसरी तरफ कम स्टाफ के कारण फ्लाइटों का पूरा शिड्यूल बिगड़ता गया और फ्लाइटें कैंसिल करनी पड़ीं। जबकि अन्य विमान कंपनियों ने आवश्यक स्टाफ की भर्ती समय रहते कर ली, जिससे उन्हें अपनी फ्लाइटें कैंसल नहीं करनी पड़ीं। 

नई व्यवस्था बने 

अब अहम सवाल यह है कि भविष्य में इंडिगो जैसा कोई संकट पैदा न हो, इसके लिए क्या किया जाना चाहिए? एक सुझाव यह है कि भारत को नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में हाइब्रिड माॅडल अपनाना चाहिए। पहले एयर इंडिया सरकारी क्षेत्र की कंपनी थी, जिसे मोदी सरकार ने भारी घाटे और विनिवेश नीति के तहत वापस टाटा को बेच दिया। उसके बाद सरकार के हाथ पूरी तरह खाली हो गए। वरना इंडिगो संकट के दौरान कोई सार्वजनिक क्षेत्र की विमान कंपनी होती तो यात्रियों को कुछ तो राहत पहुंचाई जा सकती थी।

साथ ही इंडिगो संकट  में अवसर खोज कर यात्रियों को लूटने वाली दूसरी विमान कंपनियों पर भी अंकुश रखा जा सकता था। हैरानी की बात यह है कि मोदी सरकार ने पूर्व में अपनी नीति में इस बात का वकालत की थी कि हर क्षेत्र में एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी रहेगी। लेकिन एविएशन सेक्टर को पूरी तरह निजी कंपनियों के भरोसे छोड़ दिया गया।

दूसरे, विमान कंपनियों के कामकाज और प्रबंधन की सख्त निगरानी होनी चाहिए। तीसरे, देश में विमान यात्री हित रक्षा के कड़े कानून जरूरी हैं। क्योंकि यदि कंपनी किसी कारण से फ्लाइट कैंसिल करती है तो उसका पर्याप्त मुआवजा कंपनी को देना आवश्यक है।

हकीकत में इंडिगो संकट ने भारत में विमानन की लचर व्यवस्था को दुनिया के सामने बेनकाब कर दिया है।  इसे सुधारने में वक्त लगेगा। यह भी विडंबना ही है कि कहां हम दुनिया तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था बनने का दावा कर रहे हैं और कहां एक निजी विमान कंपनी सरकार को झुकने पर मजबूर कर देती है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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