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विजय दिवस विशेष: दो युद्ध, दो लक्ष्य, एक लक्षित
सार
इन दोनों संघर्षों को साथ रखकर देखने से न सिर्फ सैन्य रणनीति का विकास समझ में आता है, बल्कि यह भी साफ होता है कि भारत ने समय के साथ अपने “प्रिवेंटिव एक्शन” को कैसे बदला और परिष्कृत किया।
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विजय दिवस
- फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
इतिहास में कुछ तारीखें केवल अतीत नहीं होतीं, वे वर्तमान को चेताती और भविष्य की दिशा तय भी करती हैं। 1971 का युद्ध और 2025 का आपेरेशन सिंदूर दोनों अलग-अलग युगों की उपज होते हुए भी एक साझा सूत्र से जुड़े हैं। भारत की वह रणनीतिक चेतना, जो खतरे को सीमा पर पहुंचने से पहले रोकने में विश्वास रखती है। एक संघर्ष ने एक नए राष्ट्र को जन्म दिया, दूसरा परमाणु युग में आतंकवाद के खिलाफ भारत की बदली हुई युद्ध-भाषा को परिभाषित करता है।
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यह एक तरह से परमाणु धमकियों की पराजय ही थी। 13 दिनों के पूर्ण युद्ध और चार दिनों की सीमित सैन्य कार्रवाई के बीच का यह अंतर केवल समय का नहीं, बल्कि राजनीति, तकनीक, कूटनीति और वैश्विक शक्ति-संतुलन में आए गहरे बदलाव का भी दर्पण है।
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देखा जाए तो भारत-पाकिस्तान संबंधों के इतिहास में 1971 और 2025 दो ऐसे पड़ाव हैं, जो अलग-अलग समय, तकनीक और वैश्विक परिस्थितियों में लड़े गए संघर्षों का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक ओर 1971 का 13 दिनों का पूर्ण युद्ध था, जिसने एशिया का राजनीतिक नक्शा बदल दिया, वहीं दूसरी ओर 2025 का चार दिन का सीमित आपरेशन था, जिसने परमाणु युग में युद्ध की नई परिभाषा गढ़ी।
इन दोनों संघर्षों को साथ रखकर देखने से न सिर्फ सैन्य रणनीति का विकास समझ में आता है, बल्कि यह भी साफ होता है कि भारत ने समय के साथ अपने “प्रिवेंटिव एक्शन” को कैसे बदला और परिष्कृत किया।
1971 का युद्ध किसी सीमित सैन्य घटना का परिणाम नहीं था। यह पूर्वी पाकिस्तान में चले ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ की परिणति ही था जिसके दौरान हुए भीषण जनसंहार में लाखों लोग मारे गए और एक करोड़ से अधिक शरणार्थी भारत में आ गए थे। भारत के लिए यह केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि मानवीय हस्तक्षेप का प्रश्न भी था।
इसके विपरीत 2025 का संघर्ष पहलगाम में हुए आतंकी हमले से उपजा, जिसमें 25 भारतीय नागरिक मारे गए जिसकी जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली। फर्क साफ है, 1971 का संघर्ष मानवाधिकार संकट से उपजा था, जबकि 2025 प्रॉक्सी वॉर और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई का उदाहरण है।
अवधि और पैमाने में भी दोनों संघर्ष बिल्कुल अलग हैं। 1971 में 13 दिनों के युद्ध के बाद 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया और बांग्लादेश का जन्म हुआ। यह न केवल भारत की अब तक की सबसे निर्णायक सैन्य विजय थीए अपितु विश्व के युद्धों के इतिहास का एक जगमगाता पन्ना भी था।
इसके मुकाबले 2025 की कार्रवाई चार दिनों तक सीमित रही जिसमें करीब 14 लक्षित स्ट्राइक्स, नौ आतंकी कैंप ध्वस्त हुये मगर कोई भू-क्षेत्रीय बदलाव नहीं, जो भारत की मनशा भी नहीं थी।
यह परमाणु हथियारों के साये में लड़े जा रहे “लिमिटेड वॉर” का उदाहरण था, जहां लक्ष्य जीत नहीं, बल्कि विरोधी की क्षमता को बाधित करना था। आपरेशन सिन्दूर ने पाकिस्तान की बार-बार की परमाणु हमले की धमकियों की हवा भी निकाल दी।
अंतरराष्ट्रीय भूमिका भी दोनों दौर में बदली हुई दिखती है। 1971 में भारत को सोवियत संघ का स्पष्ट समर्थन प्राप्त था, जबकि अमेरिका और चीन पाकिस्तान के पक्ष में खड़े थे। 2025 में तस्वीर ज्यादा जटिल है। अमेरिका और चीन दोनों मध्यस्थ की भूमिका में दिखते हैं, जबकि चीन खुले तौर पर पाकिस्तान को ड्रोन और तकनीकी सहायता देता रहा है।
फर्क यह है कि 1971 में भारत एक विकासशील अर्थव्यवस्था था, जबकि 2025 में एक मजबूत अर्थव्यवस्था के साथ भारत की वैश्विक सौदेबाजी की क्षमता भी कहीं अधिक मजबूत है। रणनीति और तकनीक के स्तर पर बदलाव सबसे गहरा है।
1971 का युद्ध टैंक, तोप और पारंपरिक वायुसेना अभियानों पर आधारित था, जिसका अंतिम परिणाम एक नए राष्ट्र का निर्माण था। 2025 में ड्रोन, सटीक मिसाइलें, सैटेलाइट इंटेलिजेंस और साइबर क्षमताएँ निर्णायक रहीं। ब्रह्मोस जैसी प्रणालियों और रियल-टाइम इंटेलिजेंस ने यह दिखाया कि अब युद्ध की तैयारी महीनों नहीं, घंटों में होती है।
इन दानों युद्धों के परिणामों की तुलना करें तो 1971 की विजय के बाद शिमला समझौता हुआ, लेकिन कई विशेषज्ञ मानते हैं कि युद्धबंन्दियों को रणनीतिक दबाव के रूप में पूरी तरह इस्तेमाल न करना एक चूकी हुई थी।
2025 में भारत ने कोई क्षेत्र नहीं लिया, लेकिन आतंकी ढांचे को नुकसान पहुंचाकर रणनीतिक संदेश दिया। पाकिस्तान ने एक बार फिर “मॉरल विक्टरी” का दावा ठीक उसी तरह किया जैसे 1971 में 120 भारतीय विमानों को मार गिराने का झूठा प्रचार किया गया था।
फर्क यह है कि आज सूचना युद्ध में झूठ ज्यादा देर नहीं टिकता। 2025 के संघर्ष में पाकिस्तान अब उसी तरह चीन का “फ्रंट फेस” बन चुका है, जैसे 1971 में वह अमेरिका के लिए था। सैन्य विश्लेषकों के अनुसार, पाक-चीन-तुर्की धुरी का उभार भविष्य की रणनीति को और जटिल बनाएगा।
साथ ही, सोशल मीडिया ने युद्ध और इतिहास की व्याख्या का नया मंच बना लिया है, जहाँ विजय और पराजय के दावे तुरंत चुनौती के घेरे में आ जाते हैं।यह साफ होता है कि साहस, नेतृत्व और स्पष्ट उद्देश्यकृये तत्व दोनों दौर में समान हैं, भले ही साधन बदल गए हों।
भविष्य के लिये इन संघर्षों का सबक स्पष्ट हैं। 1971 ने सिखाया कि राष्ट्रीय एकता और तेज निर्णय ऐतिहासिक परिणाम दे सकते हैं। 2025 चेतावनी देता है कि प्रॉक्सी वॉर के दौर में केवल सर्जिकल स्ट्राइक काफी नहीं, लंबी रणनीति, कूटनीति और खुफिया नेटवर्क उतने ही जरूरी हैं।
इतिहास बताता है कि शांति केवल ताकत से नहीं, बल्कि सतर्कता और समझदारी से आती है। विजय दिवस की स्मृति में 1971 की शहादत और 2025 की कार्रवाई दोनों हमें यही याद दिलाती हैं कृअतीत की सीख ही भविष्य की सबसे मजबूत ढाल है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।