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पाकिस्तान की मदद का अमेरिकी खेल : पेंटागन छिपे तौर पर हथियार निर्माताओं का समर्थन करता है

प्रशांत दीक्षित Published by: प्रशांत दीक्षित Updated Tue, 30 Jul 2019 06:42 AM IST
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American game to Pakistan aid
इमरान खान और डोनाल्ड ट्रंप - फोटो : a

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच इसी महीने हुई बैठक के कुछ दिन बाद पेंटागन ने अमेरिकी संसद को पाकिस्तान को 12.5 करो़ड़ डॉलर मूल्य की सैन्य बिक्री को मंजूरी देने संबंधी अपने फैसले की जानकारी दी। अमेरिकी सरकार का दावा है कि यह सहायता 60 अमेरिकी कॉन्ट्रैक्टरों को वेतन दिए जाने के लिए विदेशी सैन्य बिक्री कार्यक्रम के तहत दी जा रही है और यह केवल एफ-16 विमान के उपयोग की निरंतर निगरानी के लिए है, जैसा कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हुए समझौते के उद्देश्य के तहत वर्णित है।


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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच इसी महीने हुई बैठक के कुछ दिन बाद पेंटागन ने अमेरिकी संसद को पाकिस्तान को 12.5 करो़ड़ डॉलर मूल्य की सैन्य बिक्री को मंजूरी देने संबंधी अपने फैसले की जानकारी दी। अमेरिकी सरकार का दावा है कि यह सहायता 60 अमेरिकी कॉन्ट्रैक्टरों को वेतन दिए जाने के लिए विदेशी सैन्य बिक्री कार्यक्रम के तहत दी जा रही है और यह केवल एफ-16 विमान के उपयोग की निरंतर निगरानी के लिए है, जैसा कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हुए समझौते के उद्देश्य के तहत वर्णित है।

कितनी अजीब बात है! सबसे पहली बात, पेंटागन अपने निरीक्षकों को अपने काम के लिए सीधे भुगतान क्यों नहीं करता है? और दूसरी बात, उस स्वीकारोक्ति के बारे में क्या कहना है, जिसमें अमेरिका ने कहा है कि यह तकनीकी और लॉजिस्टिक सेवा सहायता जारी रखने के पाकिस्तान के अनुरोध के जवाब में है?

जाहिर तौर पर एक खेल खेला जा रहा है। मुझे संदेह है कि ये कॉन्ट्रैक्टर एफ-16 विमान की निर्माता कंपनी लॉकहीड मार्टिन के इंजीनियर होंगे और वे एफ-16 विमान के जरूरी बुनियादी ढांचे को उन्नत बना रहे होंगे, ताकि वे वर्तमान संस्करण की तुलना में हवा से हवा में मार करने वाली बियॉन्ड विजुअल रेंज (बीवीआर) मिसाइलों के उन्नत संस्करणों को ले जाने में सक्षम हों, जो बालाकोट और उसके बाद हवाई हमलों का सामना करने में पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं था।

आधुनिक हवाई हमले को बीवीआर मिसाइल युद्ध के रूप में देखा जाता है, जहां 150 किलोमीटर तक के लक्ष्य को विमान के अपने रडार का उपयोग करके आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। जाहिर है, पाकिस्तान ने भारत को रूस द्वारा दी गई लंबी दूरी के मिसाइलों के अलावा डीआरडीओ द्वारा विकसित, अस्त्र, बीवीआर मिसाइलों, जो सुखोई 30 एमकेआई और मिग-29 जैसे अग्रिम पंक्ति के लड़ाकू विमानों पर बिल्कुल फिट बैठता है, पहले से मौजूद मिराज 2000 के उतने ही खतरनाक मिसाइलों और हाल में वायुसेना में शामिल किए सबसे खतरनाक राफेल पर लगे मिसाइलों को बेहद गंभीरता से लिया होगा।

दरअसल भारत के पुराने मिग-बायसन विमान द्वारा एफ-16 विमान को मार गिराए जाने के बाद न केवल पाकिस्तानी खेमे में खलबली मच गई, बल्कि लॉकहीड मार्टिन समूह भी बदनामी के डर से बेहद भयभीत था। उसी समय अमेरिकी पत्रिका फॉरेन पॉलिसी उसके समर्थन में खड़ी हो गई और लारा सैलिगमैन का एक आलेख प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने दो वरिष्ठ अमेरिकी रक्षा अधिकारियों के हवाले से बताया कि अमेरिकी कर्मियों ने हाल ही में इस्लामाबाद स्थित एफ-16 विमान की गिनती की और कोई भी विमान गायब नहीं था।

वह स्पष्ट रूप से पेंटागन के इशारे पर ऐसा कह रही थीं। इस महिला पत्रकार ने वर्षों तक वायुसेना को कवर किया था और वह पेंटागन एवं लॉकहीड मार्टिन के बेहद करीब थी, उसकी पेंटागन में गहरी पैठ थी। वस्तुतः पेंटागन छिपे तौर पर हथियार निर्माताओं का समर्थन करता है।

पाकिस्तान को अमेरिकी शस्त्र सहायता रोका जाना अपने आप में विरोधाभासपूर्ण है। अमेरिकी सरकार ने हथियार देने के लिए बस एक चाल चली है। अमेरिका ने आतंकवादियों से लड़ने के लिए पाकिस्तान को एफ-16 विमान दिया। इस तर्क में ही कई खामियां हैं। पहाड़ी इलाके में छिपने वाले आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाकू विमानों का कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है? यह झूठ तब सामने आया, जब बालाकोट के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान द्वारा एफ-16 विमान इस्तेमाल किए जाने पर सवाल उठाया और साक्ष्य के रूप में एफ-16 पर प्रयुक्त दुर्घटनाग्रस्त एएमआरएएएम मिसाइल के टुकड़े पेश किए।

उसी समय भारत ने अमेरिकी सरकार को ध्यान दिलाया कि यह उसके साथ किए गए समझौते के उद्देश्यों का सरासर उल्लंघन है। इसका जवाब देने में अमेरिकी सरकार ने कई महीने लगाए और सिर्फ इतना कहा कि चूंकि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच समझौता पूरी तरह से गोपनीय है, इसलिए वह न तो इस पर टिप्पणी करेगी और न ही समझौते की प्रकृति का खुलासा करेगी।

हमें यह मान लेना चाहिए कि पाकिस्तान के जन्म की शुरुआत से ही अमेरिका ने उसे अग्रिम पंक्ति का देश माना है। हम सेन्टो (सेंट्रल ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन) को याद कर सकते हैं। वह शीतयुद्ध का सबसे अजीब और इसीलिए विफल गठबंधन था। वह संगठन बड़े पैमाने पर ईरान, इराक, पाकिस्तान, तुर्की और ब्रिटेन के असंभव पंचमेल का परिणाम था। वर्ष 1955 में इस गठबंधन की स्थापना से ही अमेरिका अभिन्न रूप से इससे संबद्ध था, लेकिन वह कभी उसका सदस्य नहीं बना।

फिर रीगन डॉक्ट्रिन (सिद्धांत) आया। यह सिद्धांत 1980 के दशक की शुरुआत से शीतयुद्ध की समाप्ति (1991) तक अमेरिकी विदेश नीति का केंद्र बिंदु था। रीगन सिद्धांत के तहत अमेरिका ने अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में सोवियत समर्थित कम्युनिस्ट समर्थक सरकारों को पलटने वाले आंदोलनों तथा कम्युनिस्ट विरोधी गुरिल्लों को खुले और छिपे तौर पर सहायता प्रदान की।

यह सिद्धांत शीतयुद्ध जीतने के लिए प्रशासन की समग्र रणनीति के हिस्से के रूप में इन क्षेत्रों में सोवियत प्रभाव को कम करने के लिए तैयार किया गया था। और अफगानिस्तान में पाकिस्तान इस सिद्धांत का सहयोगी था, जो अपनी खुफिया एजेंसी आईएसआई की मिलीभगत से सीआईए द्वारा प्रशिक्षित मुजाहिदीन योद्धाओं की ताकत बढ़ाने में जुट गया था। इसने सोवियत संघ की कमर तोड़ दी थी।

आतंकियों से संबंध रखने के कारण कथित मौजूदा नाराजगी के बावजूद पाकिस्तान अमेरिका के लिए उपयोगी बना रहेगा। हालांकि अमेरिका और भारत का संबंध वैश्विक स्तर पर  रणनीतिक केंद्रबिंदु माना जाता रहा है, लेकिन यह केवल व्यवसाय को लेकर है या उससे अधिक? अमेरिका से रक्षा खरीद वर्ष 2017 में 13 अरब डॉलर से अधिक हो गई थी और इसमें 13 सी 130 जे हरक्यूलस विमान, 10सी-17 ग्लोबमास्टर, बोइंग के 12 पी-8 पोसिडॉन विमान, 22 एएच 64 अपाचे हेलिकॉप्टर, 15 सीएच 47 चिनुक हेलिकॉप्टर, 145 एम 777 हॉवित्जर शामिल हैं।
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