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जानना जरूरी है: स्वप्न में क्यों दिखते हैं मृत स्वजन, बताएंगे संस्कृति के पन्ने
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सार
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अमर उजाला
विस्तार
वनवास के दौरान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण की भेंट महर्षि अत्रि से हुई। श्रीराम ने अत्रि मुनि को प्रणाम कर पूछा, ‘ऋषिवर, क्या इस पृथ्वी पर ऐसा कोई तीर्थ है, जहां जाने से मनुष्य को अपने प्रियजनों से वियोग सहना न पड़े? कृपया उसके बारे में बताइए।’ अत्रि मुनि बोले, ‘राम! मेरे पिता ब्रह्मा ने पुष्कर नामक पवित्र स्थान की रचना की है। वहां दो पर्वत हैं-मर्यादा पर्वत और यज्ञ पर्वत। इनके बीच तीन पवित्र कुंड हैं-ज्येष्ठ, मध्यम और कनिष्ठ पुष्कर। वहां तुम अपने पिता दशरथ को पिंडदान कर संतोष प्राप्त करो।पुष्कर वह तीर्थ है, जहां पितरों की मुक्ति अवश्य होती है। वहां ‘अवियोगा’ नाम की एक दिव्य बावली है। जो भी वहां पहुंचता है, वह संबंधियों से मिलता है और उसका वियोग नष्ट हो जाता है। उसका दर्शन तुम्हारे लिए शुभ होगा।’ फिर श्रीराम ने पुष्कर यात्रा का निश्चय किया। वह लक्ष्मण और सीता जी के साथ यज्ञ पर्वत पहुंचे। वहां से आगे बढ़े और मध्यम पुष्कर में पहुंचकर स्नान किया। देवताओं और पितरों को तर्पण किया। उसी समय महर्षि मार्कण्डेय शिष्यों के साथ वहां आए। श्रीराम ने उन्हें प्रणाम कर कहा, ‘मैं दशरथ पुत्र राम हूं। महर्षि अत्रि की आज्ञा से ‘अवियोगा’ बावली का दर्शन करने आया हूं।’
मार्कण्डेयजी प्रसन्न होकर बोले, ‘रघुनंदन, तुमने अत्यंत शुभ कार्य किया है। यह तीर्थ-यात्रा तुम्हें महान फल देगी।’ मुनि के वचन सुनकर राम को अपने पिता, माताओं, भरत और अयोध्या के जनों की स्मृतियां उमड़ आईं। संध्या होते-होते वे सब चिंतन में डूबे रहे और रात वहीं रुके। रात्रि में राम ने सपने में देखा कि वह अयोध्या में हैं तथा उनके पिता दशरथ, भाई भरत, शत्रुघ्न, माताएं और सभी परिजन उनके सामने खड़े हैं। प्रातःकाल राम ने मुनियों को स्वप्न बताया, तो ऋषि बोले, ‘रघुनंदन, यह स्वप्न सत्य है। मृत पुरुष स्वप्न में प्रकट होकर श्राद्ध की इच्छा जताते हैं। संतान के अभ्युदय की कामना रखने वाले तथा अन्न चाहने वाले पितर ही भक्त संतान को स्वप्न में दर्शन देते हैं। तुम्हें दशरथ का श्राद्ध करना चाहिए। हम सब इस कार्य में सहभागी होंगे। तुम इंगुदी की खली, बेर, आंवला, पके बेल और विविध मूल आदि आवश्यक सामग्री जुटाओ।’ लक्ष्मण तुरंत सारी सामग्री ले आए। सीता जी ने भोजन तैयार किया। राम स्नान कर अवियोगा बावली पहुंचे और मुनियों की प्रतीक्षा करने लगे। कुछ देर में सभी मुनि वहां पहुंच गए। अचानक सीता दूर हट गईं और झाड़ियों की ओट में बैठ गईं। इस बीच राम ने स्मृतियों के अनुसार, श्राद्ध विधि पूर्ण की तथा ब्राह्मणों को भोजन कराया, पिंड दान और वैदिक क्रियाएं संपन्न कीं। अनुष्ठान पूरा करके राम ने सीता से पूछा, ‘प्रिये, मुनियों को देखकर तुम छिप क्यों गई थीं?’
सीता ने विनम्र स्वर में कहा, ‘नाथ, मैंने ब्राह्मणों के शरीर में आपके पिता महाराज दशरथ और दो अन्य पुरुषों को देखा। वे तेजस्वी तथा आभूषणों से विभूषित थे। उन्हें देखकर मुझे लज्जा आ गई। इसलिए मैं दूर हो गई। आपके पुकारे जाने पर वे पितर प्रसन्न होकर आए थे।’ यह सुनकर श्रीराम ने सीता को हृदय से लगाया। भोजन के बाद तीनों ने वहीं रात बिताई। अगले दिन वे पश्चिम दिशा में चले और ज्येष्ठ पुष्कर पहुंचे। तभी आकाशवाणी हुई-‘रघुनंदन, यह तीर्थ अत्यंत पवित्र है। कुछ समय यहां निवास करो। फिर तुम्हें देवकार्य सिद्ध करना है।’ राम ने लक्ष्मण से कहा, ‘हमें देवों का आशीर्वाद मिला है। मैं यहां व्रत करके एक मास रहूंगा।’ व्रत पूर्ण करके वे तीनों मर्यादा पर्वत पहुंचे, जहां उन्होंने शिव की भावपूर्ण स्तुति की। प्रसन्न होकर महादेव प्रकट हुए और बोले, ‘राम, तुम देवस्वरूप हो। चौदह वर्ष बाद जब तुम अयोध्या लौटोगे, तो तुम्हारे दर्शन से मनुष्य स्वर्ग का लाभ पाएंगे।’
शिवजी का आशीर्वाद लेकर राम आगे बढ़े। फिर उन्होंने नर्मदा तट पर स्नान कर पितरों को तर्पण किया और देवताओं को प्रणाम किया। फिर वे अपनी यात्रा पर आगे बढ़ गए।