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सांस की लड़ाई: गंभीर पर्यावरणीय समस्या से जूझ रहा दिल्ली-एनसीआर, रिकॉर्ड तोड़ रहा एक्यूआई
अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नितिन गौतम
Updated Tue, 16 Dec 2025 05:55 AM IST
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दिल्ली-एनसीआर बना गैस चैंबर
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अमर उजाला
विस्तार
राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में, खासकर सर्दियों के दौरान, प्रदूषित हवा एक आम समस्या है, लेकिन हफ्ते की पहली सुबह यहां का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित सीमा से तकरीबन तीस गुना अधिक होना दर्शाता है कि दिल्ली-एनसीआर इन दिनों एक गंभीर पर्यावरणीय संकट से जूझ रहा है। दिल्ली का एक्यूआई पिछले 11 वर्षों में दिसंबर महीने का दूसरा सर्वाधिक दर्ज आंकड़ा है। इससे सटे नोएडा, गाजियाबाद और ग्रेटर नोएडा में भी स्थिति गंभीर बनी हुई है।घनी विषैली धुंध ने पूरे क्षेत्र को अपनी चपेट में लिया हुआ है, जिससे, खासकर सुबह के वक्त, दृश्यता न के बराबर हो जाती है और लोगों की सांसों पर भी संकट खड़ा हो गया है। विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और सांस की बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए तो यह स्थिति और भी चिंताजनक है। लेकिन जो स्वस्थ हैं, उनके लिए भी लंबे समय तक खराब हवा में रहने के नतीजे खतरनाक हो सकते हैं। खुद केंद्र सरकार ने इस महीने की शुरुआत में संसद को बताया था कि 2022 और 2024 के बीच दिल्ली के छह सरकारी अस्पतालों में सांस की गंभीर बीमारियों के दो लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए, क्योंकि राजधानी बढ़ते प्रदूषण के स्तर से जूझ रही थी।
ताजा आपात स्थिति को देखते हुए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने रविवार को ही ग्रेडेड रेस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रेप) के तीसरे चरण को बढ़ाकर चौथे चरण पर पहुंचा दिया, जो इस सर्दी का सबसे सख्त कदम है और जो तब उठाया जाता है, जब एक्यूआई कुछ अधिक ही गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है। अमूमन औद्योगिक उत्सर्जन, वाहनों से निकलने वाले धुएं, गिरते तापमान, हवा की कम गति और पड़ोसी राज्यों में मौसमी तौर पर फसल के अवशेषों को जलाने जैसे कई कारकों को इस समस्या की वजह माना जाता है, जो सही भी है। लेकिन इस बार इसकी मुख्य वजह उत्तर-पश्चिम भारत की ओर से आ रहे पश्चिमी विक्षोभ को बताया जा रहा है।
हवा की कम गति और सर्दी के मौसम में निचले वायुमंडल में नमी की मात्रा बढ़ने से प्रदूषक फैल नहीं पाते और वहीं फंसे रह जाते हैं। मुश्किल यह है कि अब हर वर्ष सर्दी आते ही दिल्ली गैस चैंबर बनने लगती है। ग्रेप जैसे अस्थायी उपाय जरूरी हैं, पर दीर्घकालिक समाधान के लिए सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करना, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना, उद्योगों में उत्सर्जन मानकों का सख्ती से लागू होना, पड़ोसी राज्यों के साथ समन्वय और हरित क्षेत्र बढ़ाना जरूरी है। यह नागरिकों की भी जिम्मेदारी है, क्योंकि असली बदलाव सामूहिक इच्छाशक्ति से ही आएगा।