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नीति: संस्थानों को जवाबदेह बनना होगा, विकास की योजना करनी होगी सार्वजनिक

डॉ. (श्रीमती) पंकज मित्तल Published by: नितिन गौतम Updated Wed, 17 Dec 2025 07:37 AM IST
सार
भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि हर उच्च शिक्षण संस्थान को अपने विकास की योजना सार्वजनिक करनी होगी।
 
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Policy Institutions must be accountable opinion development plans must be made public
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : Adobe Stock

विस्तार
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भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां उससे केवल डिग्रियां प्रदान करने की नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण, नवाचार, वैश्विक प्रतिस्पर्धा व सामाजिक समावेशन की अपेक्षा की जा रही है। इसी पृष्ठभूमि में प्रस्तुत विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025 भारतीय उच्च शिक्षा के लिए एक ऐतिहासिक और संरचनात्मक परिवर्तन का दस्तावेज है। यह विधेयक राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के लक्ष्यों को कानूनी रूप प्रदान करता है और देश को 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की ओर ले जाने में मानव संसाधन की भूमिका को सुदृढ़ करता है ।


कई दशकों से विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों को शैक्षणिक नवाचार के बजाय अनुपालन पर अधिक समय व संसाधन खर्च करने पड़ते रहे। परिणामस्वरूप, पाठ्यक्रम समयानुकूल नहीं हो पाए, संस्थागत स्वायत्तता सीमित रही, गुणवत्ता में असमानता बढ़ी और छात्र हितों की प्रभावी सुरक्षा नहीं हो सकी। नया विधेयक इन चुनौतियों को देखते हुए स्पष्ट करता है कि नियमन का उद्देश्य नियंत्रण नहीं, बल्कि गुणवत्ता और विश्वास स्थापित करना होना चाहिए। इस विधेयक के अंतर्गत विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान (वीबीएसए) की स्थापना की गई है, जो उच्च शिक्षा के लिए एक शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करेगा। इसके अंतर्गत तीन स्वतंत्र परिषदों का गठन किया गया है-नियमन, प्रशासनिक अनुपालन और संस्थागत निगरानी के लिए विकसित भारत शिक्षा विनियमन परिषद, मान्यता तथा गुणवत्ता आश्वासन के लिए विकसित भारत शिक्षा गुणवत्ता परिषद एवं शैक्षणिक मानक, पाठ्यक्रम ढांचे व अधिगम परिणाम के लिए विकसित भारत शिक्षा मानक परिषद। यह संरचना पारदर्शिता, निष्पक्षता और दक्षता सुनिश्चित करती है तथा हितों के टकराव को खत्म करती है। अब संस्थानों का मूल्यांकन केवल भवन, स्टाफ संख्या या प्रक्रियाओं के आधार पर नहीं, बल्कि छात्र अधिगम परिणाम, शैक्षिक गुणवत्ता, सुशासन, वित्तीय पारदर्शिता व सामाजिक योगदान के आधार पर भी किया जाएगा।


हर उच्च शिक्षण संस्थान को अपनी संस्थागत विकास योजना सार्वजनिक करनी होगी, जिसमें उसके सभी लक्ष्यों का स्पष्ट उल्लेख होगा। इससे संस्थान परिणामों के प्रति जवाबदेह बनेंगे। विधेयक के प्रावधान के अनुसार, अब विश्वविद्यालय या महाविद्यालय बिना मान्यता के संचालित नहीं हो सकेंगे। इससे छात्रों को न्यूनतम गुणवत्ता मानकों की कानूनी गारंटी मिलेगी, कमजोर और भ्रामक संस्थानों से सुरक्षा होगी तथा डिग्रियों की राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता बढ़ेगी। विधेयक उच्च शिक्षण संस्थानों को बाध्य करता है कि वे संकाय की योग्यता और संख्या, पाठ्यक्रम व अधिगम परिणाम, अवसंरचना, शुल्क संरचना, व मान्यता स्थिति जैसी प्रमुख जानकारियां सार्वजनिक करें। इससे शिक्षा के व्यावसायीकरण पर प्रभावी अंकुश लगेगा।

विधेयक राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप उच्च शिक्षण संस्थानों को स्वायत्त व बहुविषयक बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाता है। उच्च प्रदर्शन करने वाले महाविद्यालयों को चरणबद्ध रूप से डिग्री प्रदान करने की स्वायत्तता दी जाएगी। इससे छात्रों को आधुनिक और उद्योग-संगत पाठ्यक्रम, नवाचारपूर्ण शिक्षण पद्धतियां और तेज व लचीली अकादमिक प्रक्रियाओं जैसे लाभ मिलेंगे। विधेयक में कहा गया है कि किसी भी दंडात्मक कार्रवाई का प्रतिकूल प्रभाव छात्रों पर नहीं पड़ेगा। यदि किसी संस्थान पर जुर्माना, स्वायत्तता में कटौती या बंदी जैसी कार्रवाई होती है, तो छात्रों की पढ़ाई बाधित नहीं होगी, उनकी डिग्रियों व प्रमाणपत्रों की वैधता सुरक्षित रहेगी एवं आर्थिक नुकसान से उन्हें बचाया जाएगा। प्रत्येक संस्थान में मजबूत, निष्पक्ष व पारदर्शी शिकायत निवारण प्रणाली अनिवार्य होगी।

विधेयक के तहत प्रतिष्ठित विदेशी विश्वविद्यालय भारत में परिसर स्थापित कर सकेंगे और उच्च प्रदर्शन वाले भारतीय विश्वविद्यालय विदेश में परिसर खोल सकेंगे। इससे छात्रों को देश में ही वैश्विक स्तर की शिक्षा उपलब्ध होगी और भारतीय डिग्रियों की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता बढ़ेगी। मानक परिषद को यह दायित्व सौंपा गया है कि वह पाठ्यक्रमों में भारतीय ज्ञान परंपरा, भाषाओं और कलाओं को समाहित करे, साथ ही वैश्विक मानकों से सामंजस्य बनाए रखे।
विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025 भारतीय उच्च शिक्षा को नियंत्रण आधारित व्यवस्था से निकालकर विश्वास, गुणवत्ता और परिणाम आधारित प्रणाली की ओर ले जाता है। यह छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सूचित चयन की स्वतंत्रता, लचीले शैक्षणिक मार्ग, वैश्विक अवसर और कानूनी संरक्षण प्रदान करता है। यह विधेयक भारत की युवा शक्ति को सशक्त बनाकर, देश को ज्ञान आधारित महाशक्ति बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। - लेखिका भारतीय विश्वविद्यालय संघ (नई दिल्ली) की महासचिव हैं।
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