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खगोल विज्ञान: अंतरिक्ष संसाधनों के खनन की होड़... इस दोहन को नियंत्रित करना जरूरी

मार्टिना एलिया विटोलोनी Published by: दीपक कुमार शर्मा Updated Sat, 12 Jul 2025 07:09 AM IST
सार
विज्ञान-कहानियों की तर्ज पर जब चंद्रमा या क्षुद्रग्रहों पर खनन हकीकत बनने जा रहा है, तो इस दोहन को नियंत्रित करना जरूरी हो गया है।
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Astronomy Competition for mining space resources It is important to control this exploitation
अंतरिक्ष और मार्टिना एलिया विटोलोनी - फोटो : अमर उजाला प्रिंट

विस्तार
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विज्ञान-कथा कहानियों में, अक्सर कंपनियों द्वारा चंद्रमा या क्षुद्रग्रहों पर खनन का जिक्र मिलता है, जो अब ‘हकीकत’ बनता जा रहा है। चंद्रमा जैसे खगोलीय पिंडों में बहुमूल्य संसाधन मौजूद हैं, जैसे लूनर रेगोलिथ (चंद्रमा की धूल) और हीलियम-3। इनका उपयोग रॉकेट प्रणोदक, ऊर्जा उत्पादन और लंबी अंतरिक्ष यात्राओं को संभव बनाने में हो सकता है, जिससे अंतरिक्ष और पृथ्वी, दोनों को लाभ होगा।



इसके लिए सबसे पहले जापान की अंतरिक्ष कंपनी आईस्पेस ने 2020 में नासा के साथ एक अनुबंध किया था, जिसमें चंद्र धूल को इकट्ठा करने और इसके स्वामित्व को हस्तांतरित करने की बात थी। हाल ही में, आईस्पेस ने अपने रेजिलिएंस लूनर लैंडर को चंद्रमा पर उतारने की कोशिश की, जो विफल रही। फिर भी, यह प्रयास अंतरिक्ष संसाधनों के व्यवसायीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम था। ऐसे में सवाल उठता है, अंतरिक्ष संसाधनों के दोहन को नियंत्रित करने वाले नियम क्या हैं? अंतरिक्ष गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए 1967 में आउटर स्पेस ट्रीटी की गई थी, जिसे बाह्य अंतरिक्ष संधि कहते हैं। इस संधि के बाद से अंतरिक्ष गतिविधियां बदल चुकी हैं। 1957 में स्पूतनिक-1 (पहला उपग्रह) के लॉन्च के बाद 60 वर्षों में हर साल 500 से कम अंतरिक्ष पिंड प्रक्षेपित किए गए। लेकिन 2018 के बाद यह संख्या हजारों में पहुंच गई, और 2024 में करीब 3,000 लॉन्च हुए। इस कारण, आउटर स्पेस ट्रीटी को संसाधन दोहन की वर्तमान जटिलताओं से निपटने के लिए अपर्याप्त माना जाता है।  स्थिति यह है कि संधि का अनुच्छेद दो केवल भू-क्षेत्र के विनियोजन पर प्रतिबंध लगाता है, संसाधनों के खनन पर नहीं।


अब हम अंतरिक्ष कानून के विकास के अहम मोड़ पर हैं। इसलिए बहस छोड़कर यह सुनिश्चित करें कि अंतरिक्ष संसाधनों का खनन सुरक्षित और जिम्मेदारी से हो। अंतरिक्ष संसाधनों के प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण प्रगति ‘आर्टेमिस समझौता’ रहा है, जिस पर जून 2025 तक 55 देशों ने हस्ताक्षर किए। इसकी धारा 10 स्पष्ट करती है कि संसाधनों का दोहन विनियोग नहीं माने जाने के कारण संधि का उल्लंघन नहीं करता है। बहुपक्षीय वार्ताओं की धीमी गति को देखते हुए कुछ देशों ने अपने राष्ट्रीय कानून भी बनाए हैं, जो निजी कंपनियों को अंतरिक्ष संसाधन खनन की अनुमति देते हैं। अब तक छह देशों-अमेरिका, लग्जमबर्ग, संयुक्त अरब अमीरात, जापान, ब्राजील और इटली ने ऐसे कानून पारित किए हैं।

इनमें से, लग्जमबर्ग का कानून सबसे पूर्ण है, यह अंतरिक्ष संसाधनों के दोहन का अधिकार देने के लिए कई जरूरी शर्तें निर्धारित करता है। इसी व्यवस्था के तहत आईस्पेस को अंतरिक्ष खनन का लाइसेंस मिला है। वहीं अलग-अलग देश अलग-अलग मानक और दृष्टिकोण अपना रहे हैं। एक समन्वित वैश्विक दृष्टिकोण की जरूरत को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र की शांतिपूर्ण अंतरिक्ष उपयोग समिति ने एक कार्य समूह बनाया है। मई 2025 में इसके अध्यक्ष स्टीवन फ्रीलैंड ने कुछ सिद्धांतों का मसौदा पेश किया कि अंतरिक्ष में गतिविधियां सुरक्षित होनी चाहिए और पर्यावरण की सुरक्षा भी हो। यह समूह 2027 तक अपनी अंतिम रिपोर्ट देगा, लेकिन इन सिद्धांतों की गैर-बाध्यकारी प्रकृति चिंताएं पैदा करती है। जैसे-जैसे इन्सान अंतरिक्ष संसाधनों के दोहन और उपयोग के करीब पहुंच रहा है, वैसे-वैसे एक सुसंगत और जिम्मेदार शासन प्रणाली की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गई है। (द कन्वर्सेशन से)

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