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जानना जरूरी है: संस्कृति के पन्ने बताएंगे, धर्म-रक्षा से मृत बालक हुआ जीवित

Ashutosh Garg आशुतोष गर्ग
Updated Sun, 21 Dec 2025 07:17 AM IST
सार
श्रीराम ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘शंबूक, तुम्हारा यह कर्म त्रेता युग के नियमों के विरुद्ध है। शास्त्र-विरुद्ध कार्य करना अधर्म है और मेरे राज्य में अधर्म के लिए कोई स्थान नहीं है।’ इतना कहकर श्रीराम ने शंबूक का वध कर दिया।
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mythological tale of the dead boy who was brought back to life through the protection of righteousness
प्रतीकात्मक तस्वीर - फोटो : अमर उजाला प्रिंट

विस्तार
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रामराज्य का समय था। अयोध्या में चारों ओर सुख-शांति और समृद्धि ऐसे फैली थी, मानो धरती पर स्वर्ग उतर आया हो। गलियों में हंसी की गूंज थी, साधु-संत तृप्त थे और राजा राम न्याय, धर्म और करुणा के दीप की तरह पूरे राज्य को उजाला दे रहे थे। ऐसे में, किसी को कल्पना भी न थी कि एक दिन राजप्रासाद के द्वार पर हृदय-विदारक घटना घटेगी। एक बूढ़ा ब्राह्मण, अपने इकलौते मृत पुत्र को बांहों में उठाए राजप्रासाद के सामने आ खड़ा हुआ। उसका चेहरा शोक से विह्वल था। वह बोला, ‘बेटा! ऐसा कौन-सा पाप मैंने किया कि तुझे आज इस अकाल मृत्यु का भागी बनना पड़ा? निश्चय ही यह मेरे राजा का दोष है! अगर राज्य में किसी निर्दोष की मृत्यु हो जाए, तो उसके पाप का हिस्सेदार राजा भी बनता है। रघुनंदन! अब मैं भी अपनी पत्नी सहित प्राण त्याग दूंगा। तब महाराज श्रीराम पर बालहत्या, स्त्रीहत्या और ब्रह्महत्या-तीन पाप एक साथ चढ़ेंगे।’


उसकी करुण पुकार सुनकर श्रीराम का हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने ब्राह्मण को सांत्वना दी और कहा, ‘हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! आपका यह दुख मेरा अपना दुख है। बताइए, मैं इस बालक को कैसे जीवनदान दूं? मैं कौन-सा प्रायश्चित करूं?’


तभी सभा में देवर्षि नारद जी प्रकट हुए। वह मुस्कुराते हुए बोले, रघुनंदन ! इस बालक की अकाल मृत्यु का कारण साधारण नहीं है। सतयुग में केवल ब्राह्मण ही तपस्या करते थे, इसलिए सभी दीर्घायु थे।

त्रेता युग में ब्राह्मणों और क्षत्रियों को तप का अधिकार मिला। द्वापर में वैश्यों को भी, लेकिन इन तीनों युगों में निचली जाति के लोग तप नहीं कर सकते थे। कलियुग में उन्हें यह अधिकार मिलेगा।

उन्होंने आगे कहा कि आपके राज्य की दक्षिण सीमा पर आसुरी भाव से, सिद्धि पाने की लालसा में निचली जाति का एक व्यक्ति कठोर तप कर रहा है। उसी के प्रभाव से इस ब्राह्मण-पुत्र की मृत्यु हुई है। राज्य में जो भी अधर्म होता है, उसका चतुर्थांश राजा को लगता है। अतः आपको तुरंत जाकर उसका नाश करना चाहिए। तभी यह बालक जीवित हो उठेगा। श्रीराम को अत्यंत आश्चर्य हुआ, पर देवर्षि के वचनों पर उन्हें पूर्ण विश्वास था। उन्होंने तुरंत लक्ष्मण को बुलाकर कहा, ‘सौम्य! जाओ, ब्राह्मण को सांत्वना दो। बालक के शरीर को तेल-भरी नाव में रखवाओ। जब तक मैं लौटकर न आऊं, उसका ध्यान रखना।’

लक्ष्मण ने आज्ञा मानकर ब्राह्मण को संभाला। श्रीराम अस््र लेकर दक्षिण की ओर चल पड़े। आगे चलकर उन्होंने देखा कि एक तालाब के किनारे एक व्यक्ति उल्टा लटककर कठोर तपस्या में लीन था। श्रीराम उसके पास जाकर बोले, ‘मैं दशरथनंदन राम हूं। बताओ, तुम क्यों तप कर रहे हो? तुम कौन हो? तपस्या तीन प्रकार की कही गई है-सात्विक, राजस और तामस। परोपकार के लिए किया गया तप सात्विक, वीर्य व तेज प्राप्ति के लिए किया गया तप राजस, और दूसरों के विनाश के लिए किया गया तप आसुरी या तामस कहलाता है। तुम्हारा तप मुझे आसुरी प्रतीत होता है।’

राम की बात सुनकर तपस्वी ने आंखें खोलीं और बोला, नृपश्रेष्ठ राम! आपका दर्शन करके मैं धन्य हुआ। मैं मानता हूं कि मैं निचली जाति का हूं। मैं देवलोक पाने की इच्छा से तप कर रहा हूं। मेरा नाम शंबूक है।’ श्रीराम ने उसका उत्तर सुना। उन्होंने शांत, किंतु दृढ़ स्वर में कहा, ‘शंबूक, तुम्हारा यह कर्म त्रेता युग के नियमों के विरुद्ध है। शास्त्र-विरुद्ध कार्य करना अधर्म है और मेरे राज्य में अधर्म के लिए कोई स्थान नहीं है।’ इतना कहते ही रघुनाथ ने तलवार निकाली और शंबूक का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। शंबूक की मृत्यु हुई, तो आकाश से देवताओं की जयध्वनि गूंज उठी!  देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। उसी क्षण अयोध्या में उस ब्राह्मण का मृत बालक भी जीवित हो उठा। इस प्रकार, श्रीराम ने राजधर्म की रक्षा करते हुए प्रजा को पुनः भयमुक्त किया।
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