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अर्थव्यवस्था: आईपीओ में बढ़ता निवेशकों का भरोसा

P.S. Vohra पी. एस वोहरा
Updated Sat, 20 Dec 2025 07:21 AM IST
सार
जब कंपनियां एक के बाद एक लगातार आईपीओ ला रही हैं, तो यह साफ संकेत है कि भारत का पूंजी बाजार अब भरोसे और भागीदारी का केंद्र बन चुका है।
 
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Economy: Investors' confidence in IPOs is growing
आईपीओ (प्रतीकात्मक) - फोटो : एएनआई

विस्तार
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वर्ष 2025 जाते-जाते भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी खुशखबरी देकर जा रहा है कि आईपीओ के जरिये भारतीय पूंजी बाजार शतक पूरा करने के बहुत नजदीक है। दिसंबर के प्रथम सप्ताह की समाप्ति तक कुल 96 कंपनियों के आईपीओ भारतीय पूंजी बाजार में आ चुके हैं और आने वाले कुछ दिनों में चार से ज्यादा आईपीओ पाइपलाइन में हैं। इतनी बड़ी संख्या में आईपीओ के आने के बाद अब भारत विश्व मानचित्र में अमेरिका, हांगकांग, चीन के बाद खड़ा है। इस वर्ष बहुत-सी बड़ी कंपनियों के आईपीओ भी आए हैं। इतनी बड़ी तादाद में कंपनियों का भारतीय पूंजी बाजार में आईपीओ लेकर आना इस बात का संकेत है कि कंपनियों और स्टार्टअप्स को यह भरोसा है कि अब आम निवेशकों की पहली प्राथमिकता पूंजी बाजार बनता जा रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें मुख्य रूप से इस प्रक्रिया में अधिकतम सात से 10 दिन का लगने वाला समय है।


दूसरा मुख्य आकर्षण, सेबी के नियमों के तहत आईपीओ लॉट साइज की कीमत 10 से 15 हजार रुपये के बीच में ही रहती है, जो इसकी छोटी अवधि के लिए निवेशकों को जोखिम नहीं देती। हालांकि, अगर कंपनियों की स्टॉक मार्केट पर सूचीबद्धता (लिस्टिंग) आईपीओ के मूल्य से कम में होती है, तो यह निवेशकों के लिए एक आर्थिक नुकसान होता है। लेकिन वर्ष 2025 में तकरीबन 63 कंपनियों ने स्टॉक मार्केट पर सूचीबद्ध होने के समय अपने आईपीओ के तय मूल्य से काफी अधिक मुनाफा निवेशकों को दिया है। फिर भी इस संबंध में आम निवेशकों को अपनी सोच पर दो तरह से डटे रहने की आवश्यकता है।


एक-अगर वे सूचीबद्ध होने की तिथि पर ही मुनाफा कमाने का मकसद रखते हैं, तो उन्हें सूचीबद्ध होने वाले दिन ही अपने शेयरों को बेच देना चाहिए, ताकि सेकेंडरी मार्केट की उठापटक के चलते छोटे निवेशकों को घाटा न उठाना पड़े। कंपनियों के बहुत अधिक मशहूर होने के बावजूद सेकेंडरी मार्केट की उठापटक निवेश को हमेशा सुरक्षित नहीं रख पाती है, पर आईपीओ के मार्केट में यह पक्ष अभी बहुत सकारात्मक बना हुआ है। इसलिए छोटे निवेशकों को सूचीबद्ध होने की तिथि पर ही मुनाफा कमा कर निकल जाना चाहिए।

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, आईपीओ के माध्यम से जुटाए गई रकम का तकरीबन 29 प्रतिशत हिस्सा कंपनियां अपने कर्ज के भुगतान में और 12 प्रतिशत हिस्सा अपने दिन-प्रतिदिन के खर्चे (कार्यशील पूंजी) के लिए कर रही हैं। मात्र एक-चौथाई से कम हिस्से का उपयोग ही कंपनियां पूंजीगत खर्चों के लिए कर रही हैं, जिसके माध्यम से वे नई परियोजनाओं या संपत्तियों को खरीदती हैं, जिससे कंपनियों के कुल राजस्व और मुनाफे में आने वाले समय में बढ़ोतरी होगी। ये आंकड़े दीर्घकालिक अवधि तक कंपनियों में निवेश करने वाले निवेशकों के लिए बड़े महत्वपूर्ण हैं। स्टॉक मार्केट में स्थापित कंपनियां अगर नए आईपीओ लाती हैं, तो यह जरूरी नहीं कि उसका उपयोग उनके राजस्व में बढ़ोतरी के लिए ही हो। इसलिए निवेशकों के लिए आईपीओ के माध्यम से कंपनी के बुनियादी ढांचे में कितना विस्तार होगा, इस बात का विश्लेषण करना आवश्यक है।

भारतीय पूंजी बाजार आईपीओ के जरिये सकारात्मक रुख बनाए हुए है। चालू वित्तीय वर्ष में वैश्विक आर्थिक नीतियों के दबाव के चलते सेकेंडरी मार्केट में निफ्टी व बीएसई सेंसेक्स, दोनों ने बहुत आकर्षक मुनाफा नहीं दिया है। लेकिन इसके बावजूद आईपीओ के बाजार में आकर्षण बना हुआ है, जो कि भारत के निवेशकों की सकारात्मक सोच को दर्शाता है। निश्चित तौर पर यह भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से बढ़ते वैश्विक कद में एक बहुत बड़ा सहारा है।       edit@amarujala.com
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