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अशांति की नई लहर: बांग्लादेश में राजनीतिक हिंसा और तनाव, पड़ोसी मुल्क में स्थिरता अभी भी दूर की कौड़ी

अमर उजाला Published by: लव गौर Updated Sat, 20 Dec 2025 07:12 AM IST
सार
बांग्लादेश में हो रही यह हिंसा कोई नई या अचानक हुई घटना नहीं है। 2024 के तख्तापलट के बाद से यहां राजनीतिक हिंसा में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं, जिसमें सर्वाधिक दर्द अल्पसंख्यकों को झेलना पड़ रहा है।
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new wave of political violence and unrest has erupted in Bangladesh following osman Hadi murder
बांग्लादेश में अशांति की नई लहर - फोटो : ANI Photos

विस्तार
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बांग्लादेश में युवा नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद भड़की राजनीतिक हिंसा और अशांति की नई लहर दर्शाती है कि पड़ोसी मुल्क में स्थिरता अभी भी दूर की कौड़ी है। गौरतलब है कि हादी 2024 में छात्र आंदोलन के बहाने हुई क्रांति के एक प्रमुख नेता और इंकलाब मंच के प्रवक्ता भी थे। उनकी हत्या के बाद भड़की अराजकता में मीडिया कार्यालयों पर हमले, संपत्ति की तोड़-फोड़ तथा भारत विरोधी प्रदर्शन-ये सब मिलकर भय और अस्थिरता का माहौल पैदा कर रहे हैं।


हालांकि, बांग्लादेश में हो रही यह हिंसा कोई नई या अचानक हुई घटना नहीं है। 2024 के तख्तापलट के बाद से यहां राजनीतिक हिंसा में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं, जिसमें सर्वाधिक दर्द अल्पसंख्यकों को झेलना पड़ रहा है। ताजा हिंसा में भी एक अल्पसंख्यक युवक को मारकर पेड़ से लटका देने की खबरंे मिल रही हैं। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेशी जमीन पर भारत विरोधी प्रदर्शनों के बीच, समुद्र में भी तनाव बढ़ता जा रहा है। पिछले दो महीनों में जिस तरह से बंगाल की खाड़ी में भारतीय जलक्षेत्र में बांग्लादेशी मछली पकड़ने वाले जहाजों की संख्या जिस असामान्य ढंग से बढ़ी है, उससे संशय ही पैदा होता है।


मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश को इस पूरे क्षेत्र में समुद्र का संरक्षक बता चुके हैं और ताजा हिंसा पर भी वह सिर्फ औपचारिक बयान देते दिख रहे हैं। अगर यूनुस वाकई असहाय हो गए हैं, और कट्टरपंथी तत्व अराजकता फैलाने के लिए स्वतंत्र हैं, तो यह भी बांग्लादेश के लिए कोई अच्छी स्थिति नहीं है। इससे भी अधिक चिंताजनक आरोप यह है कि अशांति जानबूझकर फैलाई गई है। यह कहा जा रहा है कि बांग्लादेश में हिंसा और भारत विरोधी भावनाओं को साजिश के तहत उकसाया जा रहा है, ताकि फरवरी में होने वाले चुनावों को असुरक्षित बताकर टाला जा सके। इससे कट्टरपंथी ताकतें मजबूत होंगी और अंतरिम सरकार को सत्ता में रहने का बहाना मिल जाएगा।

विरोध प्रदर्शनों में कट्टरवादी तत्वों की भागीदारी और प्रशासन तंत्र की चयनात्मक सख्ती इन आरोपों को बल भी देती है। यह स्थिति भारत के लिए भी एक गंभीर कूटनीतिक सुरक्षा और चिंता का विषय है। संसद की एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में भी कहा है कि बांग्लादेश में हो रहे घटनाक्रम 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद से भारत के लिए ‘सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती’ हैं। जाहिर है कि नई दिल्ली यही चाहेगी कि बांग्लादेश भय के साये से बाहर निकले, क्योंकि पड़ोस में शांति ही उसकी सबसे बड़ी रणनीतिक पूंजी है।
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