शांति के नोबेल से युद्धोन्माद तक: यूनुस जिन्ना की तरह धर्मयुद्ध छेड़ने के इच्छुक लग रहे, कटघरे में बांग्लादेश
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विस्तार
पूरी दुनिया में उन्हें भारी श्रद्धा और सम्मान हासिल हुआ है। इतना सम्मान मिलने पर खराब आदमी भी अच्छा होने की कोशिश करता है, लेकिन मोहम्मद यूनुस में कोई बदलाव नहीं आया। वह शुरू में भी बुरे आदमी थे, बाद में भी बुरे ही रहे। उनकी काबिलियत इसी में है कि अपनी असलियत को उन्होंने इतने शानदार मुखौटे में छिपा रखा था कि दुनिया में कोई उन्हें पहचान ही नहीं पाया। गरीब देश की गरीबी ही मोहम्मद यूनुस का मूलधन थी। चूंकि नारी गरीबों में भी गरीब होती है, इसलिए जीवन में ऊंचाई हासिल करने के लिए उन्होंने स्त्रियों का इस्तेमाल सीढ़ी की तरह किया। दुनिया के लोगों को वह यह समझाने में सफल रहे कि उन्होंने गरीब बांग्लादेश की गरीबी दूर की है, सर्वोपरि उन्होंने स्त्रियों की गरीबी का हल निकाला है, इसलिए वह महामानव हैं। लेकिन जिन्होंने यूनुस के मामले की जांच की, उन्हीं को मालूम चला कि उन्होंने ग्रामीण बैंक को अपनी कमाई का केंद्र बना रखा था। और जिन महिलाओं ने उन्हें महामानव समझा था, उन्हें यूनुस की असलियत तब समझ में आई, जब उन्होंने जमाती, जिहादी, आदि आतंकी और कट्टरवादी तत्वों के कंधे पर सवार होकर बांग्लादेश को कब्जे में लिया। बदलाव के नाम पर पिछले कुछ महीनों में बांग्लादेश को उन्होंने नर्क बना डाला है।
बांग्लादेश में जिस छात्र आंदोलन ने शेख हसीना को देश से बाहर कर दिया, उस आंदोलन के नेताओं ने, जिन्हें समन्वयक कहा जाता है, अब भ्रष्टाचार कर करोड़ों रुपये इकट्ठा किए हैं। सलाहकारों ने भी अपनी जेबों में हजारों करोड़ रुपये भर लिए हैं। परिवर्तन के नाम पर देश के गौरवशाली इतिहास को मिट्टी में मिला दिया गया है। लेकिन महिला परिवर्तन कमेटी में कुछ ऐसे लोग आए हैं, जिन्होंने हाल ही में धार्मिक कानून स्थगित कर समान अधिकार पर शादी, तलाक और उत्तराधिकार से संबंधित कानून बनाने की मांग की है। इस बारे में जानकारी मिलते ही इस्लामी कट्टरवादी चारों ओर से चीख रहे हैं कि अगर यूनुस ने महिलाओं के हित में प्रस्तावित कानून के दस्तावेज पर दस्तखत किया, तो वे उन्हें सत्ता से बाहर कर देंगे। चूंकि यूनुस कट्टरवादियों की मदद से ही सत्ता में आए हैं, इसलिए शुरू से ही वह जिहादियों के हित में कदम उठाते आए हैं। अब जिहादी लोग चूंकि कानून बदलने के रास्ते में रोड़ा डाल रहे हैं, ऐसे में, यह मानने का कोई कारण नहीं है कि यूनुस इस्लाम पर आधारित पारिवारिक कानून में बदलाव की कोशिश भी करेंगे। यूनुस नास्तिक होते हुए भी जिन्ना की तरह कट्टर जिहादियों के हित में काम कर रहे हैं। सरकार के प्रधान सलाहकार की जिम्मेदारी उन्होंने अच्छे काम करने के लिए नहीं ली है। उन्होंने चुनाव कराने का वादा किया था, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई सुगबुगाहट नहीं दिखाई दी है। बांग्लादेश में चुनाव होने का मतलब उनका सत्ता से हट जाना ही होगा। यूनुस बखूबी जानते हैं कि सत्ता के इस सर्वोच्च पद से उनके हट जाने का मतलब होगा, कहीं दूर निकल जाना। यही वह नहीं चाहते। वह अपना शेष जीवन सत्ता से जुड़े रहते हुए बिताना चाहते हैं। देश रसातल में जाए, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन राष्ट्रीय मर्यादा के साथ उनका अंतिम संस्कार हो, यही वह चाहते हैं। मैंने मोहम्मद यूनुस को चिट्ठी लिखकर कहा था, 'जिहादी अलगाववादी चाहे जितनी चीख-पुकार मचाएं, आप कम से कम एक अच्छा काम तो बांग्लादेश के लिए कीजिए। धार्मिक आधार पर बने पारिवारिक कानूनों को रद्द कीजिए और स्त्री-पुरुष के समानाधिकार की बुनियाद पर बने दीवानी कानून ले आइए, ताकि विवाह, तलाक और उत्तराधिकार के मामलों में स्त्री-पुरुषों में कोई फर्क न रहे। आपके अनुचर लोगों ने विषमता-विरोधी नारे के साथ सड़क पर उतरकर आपकी शानदार छवि बना दी है। यह अलग बात है कि आज तक आपने या आपके समर्थकों ने विषमता खत्म करने के लिए एक भी कदम नहीं उठाया है। पूरे देश में लोग भारी विषमता के शिकार हैं। अलग राजनीतिक सोच, भिन्न धार्मिक विचार-कुछ भी बर्दाश्त नहीं किया जा रहा। समन्वयकों और कुछ सलाहकारों ने लूट मचा रखी है। कम से कम इस समय तो आप यह कानून पारित कराइए। दशकों से इसे रोककर रखा गया है।' लेकिन यूनुस मेरी बात क्यों सुनेंगे? मैं सही सलाह देती हूं। लेकिन वह अच्छी सलाह लेते नहीं।
यूनुस अगर अच्छे आदमी होते, तो जिहादियों का समर्थन नहीं करते। तुरंत चुनाव के जरिये राजनेताओं के कंधों पर सरकार चलाने की जिम्मेदारी डालकर वह निकल लेते। पिछले दिनों वह सैन्य तैयारी देखने गए। वहां वह सभी को युद्ध के लिए तैयार रहने की बात कहकर आए हैं। वह देश भर में कहते फिर रहे हैं कि सबको युद्ध के लिए तैयार रहना होगा। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की आशंका जताई जा रही है। वैसी स्थिति में क्या वह पाकिस्तान की तरफ से भारत के खिलाफ युद्ध लड़ना चाहते हैं? उन्होंने उस अराकान आर्मी को गलियारा दे दिया है, जिसे म्यांमार आतंकी संगठन घोषित कर चुका है। लोग कह रहे हैं कि बांग्लादेश का आधा हिस्सा पाकिस्तान हड़प लेगा, आधा अराकान आर्मी हड़प लेगी।
युद्ध की बात करने वाले इस आदमी को शांति का नोबेल मिला है। दुनिया भर से कई और पुरस्कार इस आदमी ने झटक लिए हैं। दरअसल बड़े पुरस्कार के बाद छोटे-छोटे पुरस्कार झोली में ऐसे ही आ गिरते हैं। पश्चिमी दुनिया अगर इस आदमी को वाकई पहचानती, तो यों सिर पर नहीं चढ़ाती। यूनुस से मेरा सवाल यह है कि अगर आज दो देशों के बीच सचमुच युद्ध छिड़ता है, तो वह किसके साथ खड़े होंगे। पिछले करीब नौ महीनों में मैंने भांप लिया है कि यूनुस पाकिस्तान समर्थक हैं। बांग्लादेश की सत्ता पर नियंत्रण हासिल करते ही उन्होंने कुख्यात पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई को आमंत्रित किया। वह पूर्वोत्तर भारत पर कब्जे की बात कर रहे हैं। बांग्लादेश में पाकिस्तान से हथियारों से लदे जहाज आ चुके हैं, पाक कलाकार कव्वाली गाने बांग्लादेश पधार चुके हैं, ढाका स्थित प्रेस क्लब में यूनुस प्रेमियों ने जिन्ना का जन्मदिन मनाया। यूनुस ने पाकिस्तान के साथ व्यापारिक संबंधों की शुरुआत की है, और भारत की तुलना में महंगे दाम पर पाकिस्तान से खाद्य पदार्थ खरीद रहे हैं।
ऐसा लगता है कि जिन्ना की तरह यूनुस भी धर्मयुद्ध छेड़ने के इच्छुक हैं। माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमान मिलकर भारत के खिलाफ युद्ध करना चाहते हैं। इसमें वे रजाकार यूनुस की मदद कर रहे हैं, जो 1971 में पराजित भले हो गए थे, लेकिन तब उन्होंने पाकिस्तानी सेना की मदद की थी। अच्छा होता, अगर नोबेल कमेटी यह कहते हुए कि ध्वंस, हत्या, निर्ममता, बर्बरता और अशांति के सूत्रधार यूनुस नोबेल शांति पुरस्कार के योग्य नहीं हैं, उनसे सम्मान वापस ले लेती।