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मुद्दा: आतंक से आंसुओं तक, दुनिया को देखना चाहिए पाकिस्तान का ये नाटक
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जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) प्रमुख मसूद अजहर
- फोटो :
पीटीआई
विस्तार
मौलाना मसूद अजहर के बुरे कर्मों का नतीजा उसे मिल गया है और भारत द्वारा किए गए ऑपरेशन सिंदूर में उसके कई रिश्तेदारों को जान गंवानी पड़ी है। यह वही मसूद अजहर है, जिसने कश्मीर में अनगिनत बेगुनाह लोगों के नरसंहार की साजिश रची और जिसके खून से सने हाथ उसके आतंक के भयावह प्रमाण हैं। वर्षों तक वह मौत का तांडव मचाता रहा है और उसकी विकृत विचारधारा को पाकिस्तानी सेना का संरक्षण मिला।
नौ आतंकी शिविरों के विनाश के दौरान बहावलपुर में मरकज सुभान अल्लाह पर भारतीय सेना के हमले ने उसके आतंक के गढ़ को मिट्टी में मिला दिया। उसके परिवार के दस सदस्यों का सफाया हो गया, जिससे अजहर शोक में डूब गया। उसकी आवाज दुख से कांप रही थी। पाकिस्तानी सेना के लिए यह महज एक आंकड़ा है। दशकों से वे अपने नागरिकों, दिग्भ्रमित युवाओं और कश्मीरियों की जान को अपने घातक खेल में बर्बाद करते आ रहे हैं। रावलपिंडी में बैठे जनरल शांति के पैरोकार होने का दिखावा करते हुए वैश्विक मंचों पर मुस्कराते हैं और हाथ मिलाते हैं, जबकि उनके प्रतिनिधि भीड़ भरे बाजारों में बम धमाके करते हैं और निर्दोष लोगों को गोली मारते हैं।
वास्तव में, दुनिया को पाकिस्तान के इस नाटक को देखना चाहिए। तथाकथित ‘स्वतंत्रता सेनानी’ पाकिस्तान की लहू, झूठ और विश्वासघात पर आधारित योजना में मोहरे से ज्यादा कुछ नहीं हैं। और इसके केंद्र में मसूद अजहर जैसा कायर है। जब उसके अपने परिवार के लोगों का खात्मा हुआ, तो दुख की घड़ी में उसे क्षण भर के लिए एहसास हुआ होगा कि जिस हिंसा की आग को उसने वर्षों तक भड़काया है, वह अब उसे ही भस्म करने की धमकी दे रही है। दशकों से कश्मीर की शांत घाटी को मासूमों का खून बहाकर दागदार किया गया है और इसके पीछे है पाकिस्तानी आतंकी सरगनाओं और वहां के सैन्य आकाओं के बीच का गठजोड़। इस नापाक गठजोड़ के केंद्र में मसूद अजहर है, जिसने हथियार की तरह आतंक का इस्तेमाल किया है और पाकिस्तान हुकूमत के संरक्षण में भारतीय धरती पर क्रूर हमलों की साजिश रची है।
मसूद अजहर चर्चा में 1999 में तब आया, जब भारत को अपने एयरलाइंस की उड़ान आईसी-814 में सवार 176 बंधकों की सुरक्षित वापसी के बदले में उसे और दो अन्य खूंखार आतंकवादियों को रिहा करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसे पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने अपहृत कर लिया था। काठमांडो से यात्रा शुरू करने वाले विमान को कंधार, अफगानिस्तान की ओर मोड़ दिया गया, जो तब तालिबान के नियंत्रण में था। निर्दोष लोगों की जान बचाने के लिए बेताब भारत के पास आतंकवादियों से बातचीत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। मसूद अजहर की रिहाई एक राष्ट्रीय त्रासदी बन गई। यह एक ऐसा निर्णय था, जो देश को परेशान करता रहता है।
भारतीय जेल से रिहा होने के बाद अजहर ने अपना जहर उगलने में देर नहीं लगाई। उसने जैश-ए-मुहम्मद नामक एक आतंकी संगठन की स्थापना की, जो जल्द ही खून-खराबे का पर्याय बन गया। उसके गुर्गों ने पुलवामा में आत्मघाती बम विस्फोट से लेकर सैनिकों और नागरिकों की निर्मम हत्याओं तक क्रूर हमलों को अंजाम दिया।
जैश-ए-मुहम्मद के मुख्य वास्तुकार के रूप में, उसने संगठन को मौत की फैक्टरी में बदल दिया, जिहाद के बहाने नफरत और हिंसा फैलाई। सबसे खतरनाक बात यह है कि वह बेखौफ होकर काम कर रहा है-उसे उन्हीं पाकिस्तानी सैन्य जनरलों ने शरण दी, पैसे दिए और हथियार दिए, जिन्हें उसकी निंदा करनी चाहिए थी।
पिछले दो दशकों से पाकिस्तान की सेना और उसकी कुख्यात खुफिया शाखा आईएसआई ने आतंकवाद को रणनीतिक हथियार के रूप में बढ़ावा दिया है। 1990 के दशक में आतंकवादियों को गुप्त समर्थन देने से शुरू हुआ यह सिलसिला जल्द ही एक पूर्ण विकसित राज्य प्रायोजित आतंकवादी तंत्र में बदल गया। पाकिस्तान के जनरलों ने अपने वातानुकूलित वार रूम में बैठकर मौत के नक्शे बनाए, नियंत्रण रेखा के पार दिग्भ्रमित युवाओं को तैनात किया, उनसे तबाही के बदले में जन्नत का वादा किया। हजारों लोगों को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) क्षेत्र में फैले शिविरों में प्रशिक्षित किया गया, उनके दिमाग में नफरत का जहर भरा गया, उनके हाथों में बंदूकें दी गईं।
बहावलपुर में देवबंदी मदरसा व आतंक का कारखाना मरकज सुभान अल्लाह एक प्रमुख प्रशिक्षण स्थल बन गया। यहां आईएसआई अधिकारियों और कट्टर आतंकवादियों के मार्गदर्शन में, युवाओं को हत्या की मशीनों में ढाला गया। यहीं पर मसूद अजहर को अपना लक्ष्य मिला। और फिर भाग्य के क्रूर मोड़ में, मौत के रचयिता को दुख की कड़वाहट का स्वाद चखने के लिए मजबूर होना पड़ा। आतंक के इसी अड्डे पर भारतीय हमले में अजहर के परिवार के दस सदस्य मारे गए।