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गोवा नाइट क्लब अग्निकांड: कहानी वही, त्रासदी नई और शासन का चरित्र भी पुराना
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सार
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गोवा नाइटक्लब में आग
- फोटो :
पीटीआई
विस्तार
गोवा के नाइट क्लब में लगी हालिया आग, जिसमें कई लोगों की जान चली गई, सिर्फ एक स्थानीय त्रासदी नहीं है। यह भारत की नियामक विफलताओं, सरकारी लापरवाही और बुनियादी सुरक्षा मानकों के प्रति उस लापरवाह रवैये का राष्ट्रीय अभियोग है, जो अब देश भर के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में आम हो चुका है। लकड़ी और बांस से बने क्लब में लगी इस आग ने न सिर्फ उस ढांचे की कमजोरी को उजागर किया, बल्कि नागरिकों के जीवन के अधिकार की रक्षा करने के मामले में शासन की कमजोरी को भी सामने ला दिया।जांच में कई उल्लंघन सामने आए हैं, जिन्हें किसी भी कीमत पर जारी नहीं रहने देना चाहिए था। क्लब बिना अग्नि सुरक्षा के अनापत्ति प्रमाणपत्र लिए ही चल रहा था। आग बुझाने के यंत्र, अलार्म, स्प्रिंकलर और धुआं निकासी की व्यवस्था या तो थी ही नहीं या फिर दिखावटी रूप में थी। वह इमारत बारूद का ढेर थी, जिसमें सिर्फ एक संकरा, भीड़भाड़ वाला रास्ता था। अधिकांश पीड़ितों की मौत जलने से नहीं, बल्कि दम घुटने से हुई, क्योंकि वे बिना खिड़की वाली बेसमेंट किचन में फंस गए थे, जहां न तो वेंटिलेशन था और न ही दूसरी सीढ़ी। मारे गए पच्चीस लोगों में से बाईस क्लब के कर्मचारी थे, जिनमें से कई झारखंड, बिहार, असम और नेपाल के प्रवासी मजदूर थे। पांच लोग दिल्ली और कर्नाटक के पर्यटक थे। आपदा राहत कार्य भी गंभीर लापरवाही के कारण पूर्णतः पंगु हो गया था। क्लब को एक सपनों जैसे ‘आइलैंड वेन्यू’ के रूप में प्रचारित किया गया था, जहां पहुंचने का रास्ता सिर्फ एक लेन वाली कच्ची सड़क थी। आग बुझाने वाली गाड़ियों को चार सौ मीटर दूर ही रुकना पड़ा।
नियामकीय चूकें चौंकाने वाली थीं। स्थानीय पंचायत ने नमक के मैदान पर अवैध निर्माण को गिराने का नोटिस जारी किया था। जून 2024 में अवैध जमीन पर कब्जे का मामला सामने आया था। गोवा तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण ने इसी वर्ष कारण बताओ नोटिस भी दिया था। लेकिन हर आदेश या तो रोका गया, टाला गया या फिर फाइलों में दफना दिया गया। ट्रेड लाइसेंस मार्च 2024 में खत्म हो गया था, फिर भी क्लब हर हफ्ते सैकड़ों लोगों को ‘अस्थायी’ कागजों पर इकट्ठा करता रहा, जिनकी किसी ने जांच-पड़ताल करने की जरूरत नहीं समझी। अब तीन वरिष्ठ अधिकारियों को निलंबित किया गया है और पांच कर्मचारियों को गिरफ्तार। लेकिन क्लब के मालिक, सौरभ और गौरव लूथरा तुरंत थाईलैंड भाग गए, जिन्हें वहां हिरासत में ले लिया गया है। विडंबना यह है कि वे उसी इंडिगो की फ्लाइट से भागे, जो इन दिनों उड़ानें रद्द होने के कारण आलोचनाओं के केंद्र में है।
यह कोई अकेली घटना नहीं है। मई 2024 में राजकोट में एक गेमिंग जोन में 27 लोग (जिनमें अधिकतर बच्चे थे) जिंदा जल गए। अप्रैल 2025 में कोलकाता के एक होटल में चौदह मेहमानों का दम घुट गया, क्योंकि आग से बचने के सभी रास्ते बंद थे। 2017 में मुंबई के कमला मिल्स में जन्मदिन मनाने वाले 14 लोग छत से कूद गए या उस टॉयलेट में फंसकर मर गए, जिसे उन्होंने गलती से बाहर निकलने का रास्ता समझ लिया था। 1997 में दिल्ली के उपहार सिनेमा में 59 लोगों की मौत हो गई थी, क्योंकि आपातकालीन रास्ते अवैध रूप से लगाई गई सीटों के कारण बाधित थे, और आग बुझाने में देरी हुई। हर बार की कहानी की ‘पटकथा’ एक जैसी ही होती है, अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) का अभाव, बंद रास्ते, ज्वलनशील ‘सजावट’, संकरी सड़कें, और लाइसेंस की फाइल, जो अस्थायी विस्तारों से मोटी और रिश्वतों से पतली हो जाती है। हरेक बार राज्य ‘कड़ी कार्रवाई’ का वादा तो करता है और फिर अगली घटना तक सो जाता है।
भारत के पास राष्ट्रीय भवन संहिता है, अग्नि-सुरक्षा नियम हैं और आपदा प्रबंधन के दिशा-निर्देश भी हैं। 2025 की पहली छमाही में ही गोवा में 55 लाख पर्यटक आए। हर जमीन का टुकड़ा पार्टी जोन बनने की होड़ में है और हर पार्टी को तेजी से पैसा कमाना होता है, लेकिन क्या सुरक्षा ऑडिट को सिर्फ छोटी-मोटी समस्या माना जाना चाहिए, जिसे एक फोन कॉल से आसानी से निपटाया जा सकता है?
मृतकों को अक्सर उपेक्षित मानकर आसानी से भुला दिया जाता है। मारे गए पच्चीस में से बीस कम वेतन वाले कर्मचारी थे, जो किराये के साझा कमरों में रहते थे और अपने घर-गांव पैसे भेजते थे, अब उनके परिवार हमेशा के लिए उनका इंतजार करेंगे। गोवा सरकार ने प्रत्येक मृतक के परिजनों के लिए पांच लाख रुपये और प्रत्येक घायल व्यक्ति के लिए पचास हजार रुपये के मुआवजे की घोषणा की है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से अलग से हर मृतक के परिवार को दो-दो लाख रुपये और हर घायल को पचास हजार रुपये मुआवजे का एलान किया गया है।
गोवा सरकार ने वागाटोर और आस-पास के तटीय इलाकों में लूथरा भाइयों द्वारा चलाए जा रहे सभी क्लबों और कैफे को गिराने का फैसला किया है। पंचायतों को कार्रवाई के लिए नए नोटिस जारी करने को कहा गया है। बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें इस घटना की कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की गई है। सरकार ने हर बार की तरह रस्म के तौर पर खुद ऑडिट की घोषणा की है, जिसे ‘कैमरे’ के हटते ही भुला दिया जाता है।
जब तक राष्ट्रीय भवन संहिता को अनिवार्य नहीं किया जाता, गलत प्रमाणपत्र जारी करने पर जवाबदेही तय नहीं की जाती, और जब तक हर व्यावसायिक स्थल को थर्ड-पार्टी बीमा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जाता, तब तक कुछ भी नहीं बदलेगा। गोवा नाइट क्लब के अग्निकांड ने एक बार फिर भारत के सुरक्षा मानकों में व्यापक समस्याओं को उजागर कर दिया है, क्योंकि हमारी प्रणाली में नियमों के पालन में सुस्ती, नियामक खामियां और सार्वजनिक सुरक्षा के बजाय मुनाफे को प्राथमिकता देने की संस्कृति गहराई तक मौजूद है।
इस दुखद घटना से पता चला है कि भले ही कागजों पर नियम मौजूद हैं, लेकिन उनका पालन अक्सर ठीक से नहीं होता है और जब तक कोई आपदा नहीं होती, तब तक जवाबदेही भी तय नहीं होती। गोवा के नाइट क्लब में लगी जानलेवा आग की कहानी दुनिया में भर में सुर्खियां बटोर रही है। भारत को एक बुनियादी सच्चाई को गांठ बांध लेने की जरूरत है कि जब भी सुरक्षा की अनदेखी की जाती है, तब कोई बड़ी दुर्घटना सामने आती है, इससे न सिर्फ जनता में आक्रोश बढ़ता है, बल्कि ग्राहकों एवं निवेशकों का भरोसा भी खत्म होता है।